B.Ed. notes

ज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा

ज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा
ज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा

ज्ञान से आप क्या समझते हैं ?

ज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा

ज्ञानेन्द्रियों से बौद्धिक अनुभव को ज्ञान कहते हैं। ज्ञान प्राप्ति के निमित्तं बुद्धि का होना परम आवश्यक है। अतः स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष अनुभव, प्रायोगिक कौशल और जानकारी के द्वारा किसी तथ्य, तत्व अथवा वस्तु से परिचित होना ही ज्ञान है। पृथ्वी पर मनुष्य ही एक मात्र ऐसा चेतन प्राणी है, जो विचार, चिन्तन, मनन, मंथन और अनुभव प्राप्त करने में समर्थ है जिसके आधार पर वह नये तथ्यों व तत्वों से अवगत होता है और ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान उत्पत्ति में दो प्रमुख पक्ष होते हैं-ज्ञाता और ज्ञेय। जब मनुष्य वस्तु एवं विचारों अर्थात् ज्ञातव्यों से परिचित हो जाता है तो ज्ञान की उत्पत्ति होती है ज्ञान ज्ञाता के ही इर्द-गिर्द घूमती है, अतः ज्ञाता के अभाव में ज्ञान का अस्तित्व सम्भव नहीं है। जब मनुष्य किसी वस्तु अथवा विचार को अनुभूति बोध विश्वास, तर्क और अनुभव के आधार पर स्वीकार कर लेता है। तभी ज्ञान का सृजन होता है, इस क्रम के निरन्तर चलते रहने से ज्ञान की वृद्धि होती है। और नित्यप्रति ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में नवीन उपलब्धियाँ होती रहती हैं और उसी के साथ-साथ ज्ञान का विस्तार होता है। ज्ञान का विकास निरन्तर होता रहता है। नवीन विचारों तथ्यों और सूचनाओं के आधार पर व्यावहारिक शोध का चक्र चलता रहता है, नवीन विषय क्षेत्रों का उदय होता है जो ज्ञान की उत्पत्ति में काफी सहायक होते हैं।

ज्ञान की अवधारणा, क्षेत्र और प्रकृति काफी विस्तृत है। अतः इसे किसी परिभाषा के अन्तर्गत सीमित नहीं किया जा सकता। ज्ञान जगत असीम और इसका विकास बहुघातीय है, अतः इसके परिमाप को बताना असम्भव तो नहीं परन्तु जटिल अवश्य है। कुछ विद्वानों द्वारा दी गयी ज्ञान की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

एस. आर. रंगनाथन के शब्दों में- “ज्ञान सभ्यता संरक्षित सूचना का समग्र योग होता है।”

वेबस्टर्स न्यू इंटरनेशनल डिक्शनरी ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज के अनुसार- “ज्ञान वास्तविक अनुभव व्यावहारिक अनुभव, कार्यकुशलता आदि के द्वारा प्राप्त जानकारी है। “

जे. एस. शेरा के शब्दों में “ज्ञान बौद्धिक पद्धति द्वारा निस्पादित प्रक्रिया का परिणाम है।”

प्लेटो के शब्दों में– “ज्ञान चिर सत्य है। सत्य की ओर उन्मुख सम्बन्धी उसकी इस अनिवार्य विशेषता से यह सम्भव हो पाता है कि उसके लिय सक्रिय बुद्धि, इन्द्रियानुभव मूल अनुभूति और उसकी चेतना के संदर्भ में ज्ञान और अज्ञान, सत्य और अनुमान के मध्य भेद पर सकते हैं।”

रसेल के शब्दों में- “मस्तिष्क सच्ची अथवा झूठी धारणा निर्मित नहीं करता। मस्तिष्क विश्वास निर्मित करता । जब विश्वास से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त हो जाते हैं तब विश्वास सत्य में परिणित हो जाता और यदि सम्बन्धित तथ्य प्राप्त नहीं होते जो विश्वास गलत सिद्ध हो जाता है। अतः यह कह सकते हैं. कि ज्ञान सत्यता पर आधारित विश्वास है।”

ज्ञान की उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि “वह निश्चित जानकारी अथवा विचार समूह जिसे मनुष्य अर्जित कर सुरक्षित करता है जिससे कि इसे निरंतर दूसरे अन्य जिज्ञासुओं को प्रदान किया जा सके, ज्ञान कहलाता है।”

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Nikhil

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