क्रियात्मक अनुसन्धान की पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में भूमिका
क्रियात्मक अनुसन्धान की पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में भूमिका
क्रियात्मक अनुसन्धान यथार्थ की धरती से जुड़ा शोध है जिसका सीधा सम्बन्ध प्रतिदिन की परिस्थितियों से है। पर्यावरणीय समस्याएँ, यथा-पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार, पर्यावरण की सम्भावनाओं का समुचित उपयोग एवं पर्यावरणजन्य ऐसी विकृतियाँ जो औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं आधुनिक टेक्नालॉजी के अनुप्रयोग से सम्बन्धित हैं, क्रियात्मक अनुसन्धान के माध्यम से बहुत हद तक हल की जा सकती हैं। क्रियात्मक अनुसन्धान की पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में तीन प्रकार की भूमिका
1. निदानात्मक (Diagnostic ) — जिससे तात्पर्य है कि क्रियात्मक अनुसन्धान के माध्यम से मुख्य है भिन्न प्रकार की पर्यावरणीय विकृतियों एवं पर्यावरण प्रदूषणों- जल, वायु, ध्वनि एवं मृदा आदि के कारणों का पता लगाने में मदद ली जा सकती है।
2. सुधारात्मक (Remedial) – जिसका भाव यह है कि पर्यावरण में अपेक्षित सुधार एवं उसकी गुणवत्ता में सुधार लाने हेतु भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में क्रियात्मक अनुसन्धान की योजनाओं को विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थाओं के स्तरों पर लगातार लागू करना।
3. प्रसार परक (Extension oriented ) — जिसका अर्थ यह है कि पर्यावरण के बारे में सरकारी एवं गैर सरकारी स्तरों पर निर्मित योजनाओं के प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन में क्रियात्मक अनुसन्धान की युक्ति एवं प्रणाली का व्यापक रूप में अनुप्रयोग करना । इससे इन योजनाओं के प्रभावों का आँकलन करने में भी बहुत मदद मिलेगी। पिछड़ी बस्तियों में पर्यावरण चेतना जगाने, वृक्ष मित्र, वृक्षारोपण एवं पर्यावरण सुन्दरीकरण की योजनाओं में क्रियात्मक अनुसन्धान की प्रणाली अपनाए जाने से व्यापक सुधार सुनिश्चित किया जा सकता है।
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