ज्ञान का वर्गीकरण | Classification of Knowledge in Hindi
ज्ञान का वर्गीकरण (Classification of Knowledge)
ज्ञान को परिभाषित करना उतना मुश्किल कार्य नहीं है जितना इसका वर्गीकरण करना। विभिन्न दृष्टिकोणों एवं मतों के अनुसार ज्ञान को निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1) ज्ञान प्राप्ति के साधनों के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Resources of Knowledge) –
प्लेटो ने ज्ञान प्राप्ति के साधनों के आधार पर तीन प्रकार का ज्ञान बताया है-
i) इन्द्रिय जनित ज्ञान (Sensory Knowledge)- हमारी पाँच इन्द्रियाँ हैं- आँख, कान, नाक, त्वचा, जीभ। ये इन्द्रियाँ भी ज्ञान प्राप्ति के साधन हैं। बालक जब छोटा होता है तब वह इन्द्रियों के माध्यम से सूचनाएँ एकत्रित करता है और इन्हीं सूचनाओं के आधार पर उसका मस्तिष्क ज्ञान का सृजन करता है लेकिन सिर्फ बालक ही नहीं बल्कि बड़े होकर भी हम इन्द्रियों पर आधारित ज्ञान प्राप्त करते हैं लेकिन इस प्रकार का ज्ञान ज्यादा विश्वसनीय नहीं होता है।
ii ) अनुभव जन्य या सम्मति जन्य ज्ञान (Experience Based Knowledge) – इस प्रकार का ज्ञान वातावरण से अनुभव प्राप्त करके मिलता है। यह ज्ञान (सम्मति जन्य ज्ञान) कई बार वैध (Valid) नहीं होता है क्योंकि कई बार घटनाओं को देखने का हमारा दृष्टिकोण हमारे अपने विश्वास और मान्यताओं पर आधारित होता है। प्रत्यक्षीकरण (Perception) में त्रुटि होने के कारण इस प्रकार के ज्ञान में वैधता एवं विश्वसनीयता में कमी पाई जाती है।
iii) चिन्तन जन्य ज्ञान (Knowledge Based on Proper Thinking)- इस प्रकार का ज्ञान तब प्राप्त होता है जब हम समुचित चिन्तन द्वारा ज्ञान प्राप्ति करते हैं। इसमें विश्लेषण की क्रिया सन्निहित होती है विश्लेषण के उपरान्त प्राप्त ज्ञान वैध एवं विश्वसनीय होता है।
2) शंकराचार्य के अनुसार ज्ञान का वर्गीकरण (Classification of Knowledge According to Shankaracharya)
i) अपरा ज्ञान- अपरा ज्ञान को हम अपने अनुभवों के माध्यम से प्राप्त करते हैं। विशेषकर जब हम अपने भौतिक वातावरण के साथ अन्तःक्रिया करते हुए सांसारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो वह अपरा ज्ञान कहलाता है। इस प्रकार का ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान भी कहलाता है। इस प्रकार के ज्ञान के अन्तर्गत भौतिक वस्तुओं, मानव व्यवहार एवं समाज के साथ अंतःक्रिया से प्राप्त ज्ञान आदि आते हैं। इस प्रकार के ज्ञान से हम अपने व्यावहारिक ज्ञान को उपयोगी बना सकते हैं।
ii) परा ज्ञान- इस प्रकार के ज्ञान को शुद्ध एवं आध्यात्मिक ज्ञान की श्रेणी में रखा जाता है। इस प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति गुरू, वेद, साहित्य, उपनिषद् एवं धार्मिक ग्रन्थों के माध्यम से होती है। यह ज्ञान वास्तविक जीवन में आध्यात्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति में काम आता है।
3) जैन दर्शन के अनुसार ज्ञान का वर्गीकरण (Classification of Knowledge According to Jainism)
i) मति ज्ञान- इस प्रकार का ज्ञान, मन और इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है।
ii) श्रुति ज्ञान- किसी के वचन एवं प्रवचन के आधार पर प्राप्त ज्ञान, श्रुति ज्ञान की श्रेणी में आता है।
iii) अवधि ज्ञान- इस प्रकार का ज्ञान प्रारम्भिक ज्ञान और मन की दीर्घकालिक अवधि में प्राप्त ज्ञान की अन्तःक्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होता है। यह अन्तःदृष्टि (Insight) पर आधारित ज्ञान है।
4) काण्ट के अनुसार ज्ञान का वर्गीकरण (Classification of Knowledge According to Kant)
i) प्रागनुभाविक ज्ञान (Priori Knowledge)- काण्ट का मानना है कि मनुष्य के अन्दर कुछ जन्मजात ज्ञान उपस्थित होता है जो उसके जीवन के प्रारम्भिक दिनों में अधिक काम आता है। परन्तु जीवन पर्यन्त भी यह ज्ञान काम आता रहता है। मैक्डुगल ने इसे स्वाभाविक ज्ञान (Instinct knowledge) कहा है।
ii) आनुभाविक ज्ञान (Post Priori Knowledge)- इस प्रकार का ज्ञान जन्म लेने के उपरान्त प्राप्त अनुभवों से मिलता है। यह जीवन भर प्राप्त होता है।
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