अभिवृत्ति और पर्यावरण शिक्षा | पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों में अभिवृत्ति विकास सम्बन्धी कार्यक्रम
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अभिवृत्ति और पर्यावरण शिक्षा

अभिवृत्ति किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना के प्रति एक खास ढंग से अनुक्रिया करने की एक मानसिक तत्परता होती है। यह वस्तु अथवा व्यक्ति के प्रति लगाव या अलगाव की स्थिति को व्यक्त करती है। अभिवृत्ति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि अभिवृत्ति अर्जित होती है और यह कक्षा में विभिन्न तरह के शिक्षण को प्रभावित करती है। अभिवृत्ति में परिवर्तन का अर्थ व्यक्ति में भाव, आवश्यकता एवं आत्म-संप्रत्यय में परिवर्तनों से है। शायद इन्हीं कारणों से अभिवृत्ति परिवर्तन एक कठिन कार्य होता है। फिर भी, शिक्षण-परिस्थितियों में शिक्षकों को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है जिसमें उनके लिए छात्रों की अभिवृत्ति में परिवर्तन कर उसकी जगह एक अधिक स्वस्थकर एवं शिक्षामुखी अभिवृत्ति विकसित करना अनिवार्य होता है।

अभिवृत्ति का स्वरूप धनात्मक और नकारात्मक दोनों होता है। जब किसी विषय वस्तु या व्यक्ति के प्रति धनात्मक अभिवृत्ति का निर्माण होता है, तब उसमें व्यक्ति की अभिरुचि बढ़ जाती है और उसे व्यक्ति पसन्द करने लगता है। नकारात्मक अभिवृत्ति की दशा में व्यक्ति की विषय या वस्तु के प्रति नापसंदगी या अरुचि प्रकट होती है। पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण के प्रति लगाव, उसकी सुरक्षा के उपायों के प्रति संवेदना या इससे सम्बन्धित क्रिया-कलापों में संलग्नता पर्यावरण के प्रति धनात्मक अभिवृत्ति का सूचक है। इस समय शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण-शिक्षा का महत्त्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और इसके प्रति सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर यह प्रयास किया जा रहा कि पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों के मन में जिज्ञासा और रुचि बढ़े जिससे स्वस्थ अभिवृत्ति का निर्माण हो सके। पर्यावरण के प्रति छात्रों की अभिवृत्ति का विकास होने से पर्यावरण शिक्षा का कार्यक्रम बहुत दूर तक प्रभावित होगा ।

पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों में अभिवृत्ति विकास सम्बन्धी कार्यक्रम

पर्यावरण की विकृति और उसमें उपलब्ध प्रदूषण के कारण पृथ्वी का सम्पूर्ण जीव-जगत बुरी तरह प्रभावित है। पारिस्थितिकी तन्त्र का सन्तुलन निरन्तर बिगड़ता जा रहा है जिसको लेकर पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक चिंतित हैं। वे उन उपायों की खोज में लगे हुए हैं जिनके कारण पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। वैश्विक स्तर पर पर्यावरण-संरक्षण की चिन्ता व्याप्त है। वास्तव में, प्रत्येक व्यक्ति का प्रत्यक्ष सम्बन्ध अपने स्थानीय पर्यावरण से है। विद्यालय में अध्ययनरत छात्र-छात्राएँ अपने आस-पास के पर्यावरण में घटने वाली घटनाओं से प्रभावित होते रहते हैं। पर्यावरणजनित खतरे उन्हें भी पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चिंतित करते रहते हैं। इस स्थिति में दो प्रश्न उत्पन्न होते हैं- (1) पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों की अभिवृत्ति को कैसे उन्मुख किया जाए? और (2) इस अभिवृत्ति-परिवर्तन के लिए कौन-कौन पर्यावरण-शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम लिए जायें?

पर्यावरण के प्रति विद्यार्थियों की अभिवृत्ति उत्पन्न करने के लिए तीन प्रकार के उपाय उपयोगी सिद्ध होंगे—

  1. शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा की व्यवस्था ।
  2. उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग।
  3. पाठ्यक्रम से इतर अन्य कार्यक्रमों की व्यवस्था ।

1. शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर पाठ्यक्रम में पर्यावरण-शिक्षा की व्यवस्था – प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और स्नातक स्तर पर पाठ्यक्रम के विषयों के साथ पर्यावरण शिक्षा देने से विद्यार्थियों की अभिवृत्ति पर्यावरण-शिक्षा में विकसित होगी। शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर पाठ्यक्रम में पर्यावरण-शिक्षा की व्यवस्था का स्वरूप निम्नवत् होगा-

प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम- पर्यावरण संतुलन एवं संरक्षण की शिक्षा बाल्यकाल से ही प्रारम्भ होनी चाहिए जिससे बच्चों के दिल-दिमाग में यह बात घर कर ले कि सन्तुलित पर्यावरण ही उनके सुखी और सुरक्षित जीवन का विकल्प है। बालकों को ऐसे ढंग से प्रशिक्षित किया जाए कि वे अपने आस पास के वृक्षों, फूलों, पशु-पक्षियों, नदी और पहाड़ियों को साधारण न समझें। इनके महत्त्व को जानते हुए उन्हें सुरक्षित रखने में अपना सहयोग दें। पर्यावरण-संरक्षण की अभिवृत्तियों का विकास उनके संस्कारों में आरोपित करना होगा। हमें पृथ्वी और प्राकृतिक संसाधनों के सहारे ही रहना है। इसलिए प्रकृति को प्रतिकूल बनाकर नहीं रहा जा सकता। इन बातों का ज्ञान बाल्यकाल से ही होना चाहिए। ऐसा करने से बच्चों की अभिवृत्ति पर्यावरण के प्रति होगी।

अतः प्राथमिक स्तर की पाठ्यवस्तु में भाषा, विज्ञान, गणित और सामाजिक विषयों के माध्यम से पास-पड़ोस के पर्यावरण का ज्ञान दिया जाना चाहिए। विभिन्न जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों, नदी-तालाबों तथा मिट्टी का ज्ञान देना चाहिए। भारत सरकार द्वारा पर्यावरण शिक्षा को प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिए विज्ञान विषय से सम्बन्धित करके पढ़ाने के लिए पाठ्य पुस्तकों को तैयार कराया जा रहा है।

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