क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ  | पर्यावरणीय शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व | क्रियात्मक अनुसन्धान का लक्ष्य
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क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ  | पर्यावरणीय शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व | क्रियात्मक अनुसन्धान का लक्ष्य
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क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ  | पर्यावरणीय शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व | क्रियात्मक अनुसन्धान का लक्ष्य

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ

क्रियात्मक अनुसंधान शैक्षिक अनुसंधान का ही एक अंग है जिसमें कक्षा तथा विद्यालयी समस्याओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। यह कक्षा तथा विद्यालयों में प्रतिदिन उठने वाली समस्याओं का एक समाधान है। दूसरे शब्दों में, क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने या तेजी से विकास करने का एक प्रयास है जिसमें समस्या का हल अपेक्षाकृत शीघ्रता से प्राप्त होता है। स्टीफेन एम. कोरी के अनुसार, “क्रियात्मक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अन्वेषक अपनी समस्याओं को निर्देशित करने के लिए, ठीक करने के लिए तथा उनके निर्णय एवं कार्य के मूल्यांकन करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन करता है।” यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पाठ्यक्रम के क्षेत्र में किये गये प्रयोगों के संदर्भ में ही क्रियात्मक अनुसंधान की तकनीकी विकसित हुई है।

पर्यावरणीय शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व

क्रियात्मक अनुसंधान पर्यावरण-शिक्षा को समुन्नत बनाने की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण तकनीकी है। इसका सर्वाधिक उपयोग पर्यावरण-शिक्षा की युक्तियों, रचना-कौशलों तथा शिक्षण-अधिगम की व्यवस्थाओं की प्रभावकारिता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके निरंतर प्रयोग से शिक्षकों की व्यावसायिक कुशलता में अभिवृद्धि सुनिश्चित होती है, पर्यावरण शिक्षा की नवीन तकनालॉजी का विकास एवं विस्तार हो सकता है तथा पर्यावरण से सम्बन्धित पाठ्यक्रमों में निहित अधिगम लक्ष्यों को प्राप्त करने के मितव्ययी तरीकों का पता चल सकता है।

पर्यावरण शिक्षा के विविध आयामों में अपेक्षित परिवर्तन लाने हेतु भी क्रियात्मक अनुसन्धान की विधि अत्यन्त उपयोगी प्रमाणित हो सकती है। यह विधि परिस्थिति सापेक्ष, समस्या-समाधान की ओर उन्मुख तथा गतिशील एवं लचीली (dynamic and flexible) होने के कारण पर्यावरण-शिक्षा के लिए अपेक्षित शिक्षण व्यवहार के आशोधन, परिवर्द्धन एवं विस्तार हेतु बहुत ही लाभदायक होती है। अब भारतीय सन्दर्भ में भी क्रियात्मक अनुसन्धान के जरिये शिक्षकों के व्यवहार को आशोधित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसीलिए महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में ‘क्रियात्मक अनुसन्धान’ की पद्धति को विशेष महत्व दिया जा रहा है। 10वीं पंचवर्षीय योजना में प्रस्तावित पर्यावरण सुधार एवं पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन की दृष्टि से भी यह विशेष महत्व रखती है।

क्रियात्मक अनुसन्धान का लक्ष्य

पर्यावरण – शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्देश्य पर्यावरण शिक्षकों, और पर्यावरण पाठ्यक्रम से सम्बन्धित शिक्षण-अधिगम की परिस्थितियों, विद्यालयों, पाठ्यक्रमों, शिक्षण विधियों, युक्तियों तथा रचना-कौशलों में सुधार एवं प्रयोजन बद्धता लाना है। जान डब्ल्यू बेस्ट (John W. Best) ने बताया है कि “क्रियात्मक अनुसन्धान का लक्ष्य सिद्धान्त विकसित करना या सामान्य अनुप्रयोग न होकर तात्कालिक उपयोग होता है। यह स्थानीय सन्दर्भ में मूर्त एवं मौजूदा समस्याओं के. अध्ययन पर बल देता है। इसके परिणामों की उपयोगिता स्थानीय सन्दर्भों में होती है न कि सार्वभौमिक वैधता निर्धारण के रूप में। इसका लक्ष्य विद्यालयों की कार्य-पद्धतियों तथा अभ्यास कर्ताओं में सुधार लाना है। यह कार्य-पद्धति अनुसन्धान कार्य तथा शिक्षक एवं पर्यावरण-गुणवत्ता के विकास को एक साथ जोड़ देती है जिससे समस्या का हल प्राप्त होने के अलावा पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में शिक्षक की वस्तुनिष्ठता, शोध प्रक्रियाओं में उसकी दक्षता, चिन्तन की सही आदतें, दूसरों के साथ मिल जुलकर कार्य करने की क्षमता तथा व्यावसायिक भावना का विकास होता है। “

इस सम्बन्ध में कोहेन तथा मैनियन (Cohen and Manion) ने क्रियात्मक अनुसन्धान के अधोलिखित पाँच लक्ष्यों का विशेष रूप से उल्लेख किया है जिन्हें पर्यावरण शिक्षा से सम्बन्धित किया जा सकता है-

1. क्रियात्मक अनुसन्धान पर्यावरण एवं पर्यावरण शिक्षा को विशिष्ट परिस्थितियों में दृष्टिगोचर समस्याओं का हल प्राप्त करने का साधन तथा उपलब्ध परिस्थिति को किसी-न-किसी रूप में सुधारने का तरीका ।

2. यह सेवा-कालीन शिक्षकों के प्रशिक्षण का एक ढंग है जिसकी सहायता से शिक्षकों में पर्यावरण की समस्याओं से निपटने के लिए कई कुशलताओं तथा विधियों के प्रयोग करने की क्षमता उत्पन्न होती है, उनमें सम्बद्ध मुद्दों के सूक्ष्म विश्लेषण की शक्ति उभरती है और आत्मबोध भी विकसित होता है ।

3. प्रचलित व्यवस्था जो कुछ समय बाद रूढ़िबद्ध हो जाती है तथा प्रगति के लिए अपेक्षित परिवर्तन एवं नवीकरण के लिये अवरोधक बन जाती है, उसमें पर्यावरण से जुड़े शिक्षण तथा अधिगम के नवीन उपागमों का समावेश कराने हेतु क्रियात्मक अनुसन्धान एक प्रबल माध्यम है।

4. अभ्यासकर्ता शिक्षक तथा मौलिक शोधकर्ता के मध्य सामान्यतया उपलब्ध अपर्याप्त सम्प्रेषण तथा तालमेल को सुधारने तथा परम्परागत अनुसन्धान की त्रुटियों का निराकरण करने हेतु यह एक प्रभावी साधन है।

5. वास्तविक रूप में प्रयुक्त ‘वैज्ञानिक शोध’ की कठोरता का अभाव होते हुए भी क्रियात्मक अनुसन्धान में पूर्ण व्यक्तिनिष्ठता नहीं होती तथा प्रथम प्रभाव के आधार पर विकसित उपागम (Impressionistic Approach) के जरिए कक्षा-शिक्षण की समस्याओं का हल प्राप्त करने की विधियों की तुलना में यह एक वांछनीय विकल्प है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि क्रियात्मक-अनुसन्धान की प्रणाली का उपयोग पर्यावरण तथा पर्यावरण-शिक्षा से जुड़ी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं एवं कठिनाइयों का सन्तोषजनक हल प्राप्त करने हेतु किया जा सकता है। इसके द्वारा पर्यावरण-शिक्षा के लिए गठित शैक्षिक परिस्थिति में सुधार होने के साथ-साथ उसमें भाग लेने वाले शिक्षक की व्यावसायिक निपुणता में भी पर्याप्त विकास होना सम्भव है।

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