स्वास्थ्य शिक्षा की अवधारणा | स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र | स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व
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स्वास्थ्य शिक्षा की अवधारणा
स्वास्थ्य शिक्षा तथा स्वास्थ्य विज्ञान (Hygiene) दोनों शब्दों का महत्त्व समान है। (Hygiene) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक देवी हाइजिया से हुई है जिसका अभिप्राय स्वास्थ्य से है।
अतः यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य या स्वास्थ्य शिक्षा विज्ञान, “वह विज्ञान है जिसके अन्तर्गत मानव शरीर का पूर्ण अध्ययन किया जाता है।”
स्वास्थ्य के नियमों को जानना और उनके अनुकूल छात्रों के स्वास्थ्य की देखभाल करना स्वास्थ्य शिक्षा कहलाता है विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम द्वारा विद्यार्थियों को स्वास्थ्य के नियमों से परिचित करवाया जाता है। विद्यालय में स्वस्थ वातावरण के निर्माण के लिए शिक्षा द्वारा विभिन्न प्रयास किये जाते हैं।
स्वास्थ्य शिक्षा की परिभाषा
थॉमस डी. वुड ने स्वास्थ्य शिक्षा की परिभाषा देते हुए कहा है कि “स्वास्थ्य शिक्षा जन-अनुभवों का योग है जो व्यक्ति, समुदाय तथा प्रजाति के स्वास्थ से सम्बन्धित आदतों, वृत्तियों तथा ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”
इसी तरह ग्राउट ने कहा है कि “स्वास्थ्य शिक्षा शैक्षिक प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति तथा समुदाय के स्वास्थ्य सम्बन्धी व्यवहार के विषय में जो कुछ है उनका अनुवाद हैं।”
सोफी के अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े व्यवहार से सम्बन्धित है।
स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति की कमेटी, न्यूयार्क (1973) के अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा वह प्रक्रिया है जो कि स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और स्वास्थ्य से जुड़ी प्रथाओं व आदतों के बीच के अन्तराल को दूर करती है। स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति को जानकारी ग्रहण करने और इसे अमली जामा पहनाने में अपने आप को तंदरुस्त रखने के योग्य बनाती है और उन कार्यवाइयों से बचने के लिए प्रेरित करती है जो नुकसानदेह हो सकती है।
स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र
स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। स्वास्थ्य शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना है जिससे प्रत्येक व्यक्ति व सम्पूर्ण समाज स्वास्थ्य एवं जागरूक रहे। इसीलिए स्वास्थ्य शिक्षा के अध्ययन में वे सभी परिस्थितियाँ शामिल है जो कि आन्तरिक व बाह्य जगत में मिलती हैं तथा जिनका स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव होता है। इसके साथ ही यह परिस्थितियों में नियन्त्रण में सहायक होती हैं जिनसे मानव शरीर व मस्तिष्क दोनों सुचारु रूप से कार्य कर सकें।
जब मानव शरीर के कार्य में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियाँ जन्म लेती हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को शरीर की रचना तथा कार्य का ज्ञान हो। इसके साथ ही यह ज्ञान होना भी आवश्यक है कि वातावरण के साथ शरीर इस प्रकार क्रिया करे, उपरोक्त ज्ञान का सम्बन्ध स्वयं स्वास्थ्य शिक्षा के अन्तर्गत आता है। साथ ही साथ दूसरा भाग प्रत्येक मानव के बाहर है जिसमें उसका सामाजिक वातावरण आता है और उसके स्वास्थ्य से सम्बन्धित है, का अध्ययन भी कम आवश्यक नहीं है। इसको स्वास्थ्य शिक्षा का सामाजिक सम्बन्ध कहते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में ही उपरोक्त दोनों दृष्टिकोण आते हैं।
स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व
स्वास्थ्य का विकास धीरे-धीरे होता है तथा प्रत्येक समय इसमें कुछ परिवर्तन दिखाई देते हैं। इसलिए जन्म से लेकर प्रौढ़ावस्था तक व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य की रक्षा करना अनिवार्य होता है। शरीर की वृद्धि में किसी प्रकार की बाधा नहीं आनी चाहिए। स्वास्थ्य की रक्षा मुख्य रूप से बाल्यावस्था में अधिक अनिवार्य हैं। क्योंकि इस अवस्था में विकास क्रम अन्य अवस्थाओं से तीव्र गति से होता है। जो कुछ स्वास्थ्य किसी भी अवस्था में हो, उसको बनाये रखना चाहिए ताकि शरीर में अंगों का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे और उसमें किसी प्रकार का दोष उत्पन्न न हो जाये। इसके लिए उपयुक्त भोजन, वायु तथा अन्य तत्व मिलते रहने चाहिए। ये वस्तुएँ व्यक्ति की आयु, शरीर की बनावट तथा कार्य की प्रगति पर आधारित हैं। इस प्रकार प्रत्येक बालक को अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए विशेष प्रकार का ध्यान रखना आवश्यक हैं।
वैसे तो स्वास्थ्य का विकास एक निश्चित आयु तक ही सम्भव है, फिर भी यह विकास का रूप जीवन पर्यन्त चलता ही रहता है। यदि स्वास्थ्य के विकास में किसी प्रकार की रूकावट आ जाये तो समझ लेना चाहिए कि कहीं कोई कमी है। जहाँ तक स्वास्थ्य विकास का प्रश्न है, यह बाल्यावस्था में तीव्र गति से होता है। इस अवस्था में आसानी से यह अनुभव हो जाता है कि स्वास्थ्य का विकास ठीक प्रकार से चल रहा है या नहीं। यहाँ पर माता-पिता तथा विद्यालय का विशेष दायित्व है।
साधारणतया हमारे आस-पास के वातावरण में विभिन्न प्रकार के रोग देखने को मिलते हैं। बालक मुख्य रूप से घर तथा विद्यालय में रोगग्रस्त हो जाते हैं। इससे उनकी वृद्धि तथा स्वास्थ्य रक्षा पर प्रभाव पड़ता है। बालक के माता-पिता तथा अध्यापक को इन रोगों का सामान्य ज्ञान होना आवश्यक है ताकि वे अपनी तथा बालकों की विभिन्न रोगों से सुरक्षा कर सकें। इसके अन्तर्गत यह ज्ञान भी आता है कि बीमारियाँ कौन-कौन सी हैं, कैसे फैलती हैं तथा उनका सामान्य उपचार किस प्रकार सम्भव है।
पिछले कुछ सालों से स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह यह है कि मीडिया की ओर से सामाजिक व स्वास्थ्य समस्याओं पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। इससे लोगों में स्वास्थ्य सुविधा दुनिया भर के देशों के लिए सामाजिक उद्देश्य ही बन गयी है। स्वास्थ्य शिक्षा का महत्व इसलिए है क्योंकि इसका मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के लिए सर्वोत्तम, सर्वपक्षीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करना है। ऐसे सर्वपक्षीय स्वास्थ्य में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व भावनात्मक आयामों समेत लगभग सभी पक्ष शामिल है, जो कि व्यक्ति को स्वस्थ व अच्छा नागरिक बना सकते है। यही कारण है कि स्वास्थ्य शिक्षा को शिक्षा की सबसे अहम कड़ी माना जाने लगा है।
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