ज्ञान का प्रकृति एंव उद्देश्य
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ज्ञान का प्रकृति एंव उद्देश्य

ज्ञान का प्रकृति

ज्ञान की प्रकृति पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो इसे दो रूपों में व्यक्त किया जा सकता है-

1. ज्ञान एक साध्य के रूप में – एक साध्य के रूप में ज्ञान को तब माना जाता है जब उसे हम प्राप्त करना चाहते हैं। ज्ञान स्वतन्त्र रूप में उपस्थित होता है परन्तु जब तक उसका अर्जन न किया जाए. तब तक उसका उपयोग न व्यक्ति के लिए और न ही समाज के लिए किया जा सकता है। परम्परागत रूप में ज्ञान को एक साध्य के रूप में ही देखा जाता है जिसकी प्राप्ति प्राचीन काल में घर के सदस्यों द्वारा की जाती थी। प्राचीन काल में शिक्षा गुरुकुलों में प्रदान की जाती थी और शिक्षण विधि के रूप में मौखिक प्रणाली का प्रयोग किया जाता था परन्तु बाद में ज्ञानार्जन के लिए लिखित प्रणाली का प्रयोग किया जाने लगा। वर्तमान काल में प्राचीन काल की तुलना में मशीनों का अधिक प्रयोग होने लगा है। ज्ञानार्जन के लिए पाठ्यक्रम में निरन्तर वृद्धि तथा परिवर्तन होता जा रहा है।

वर्तमान समय में स्कूलों में प्रदान किये जाने वाले ज्ञान का क्षेत्र पहले की तुलना में अधिक विस्तृत हो गया है अर्थात् ज्ञान एक साध्य के रूप में अधिक विस्तृत हो गया है। वर्तमान समय में ज्ञान की मात्रा में ही नहीं अपितु उसके स्वरूप में भी परिवर्तन आ गया है। आजकल नये-नये तथा आधुनिक ज्ञान भी दिये जाने लगे है। जैसे विदेशी भाषाओं का ज्ञान, कम्प्यूटर का ज्ञान आदि। स्कूली पाठ्यक्रम में प्राथमिक कक्षाओं से ही कम्प्यूटर पढ़ाया जाने लगा है। इण्टर स्तर तक के छात्रों के लिए आई. टी. आई. भी औद्योगिक व्यवस्थाओं के रूप में तकनीकी ज्ञान रखने वालों के लिए उपलब्ध है। ज्ञान साध्य के रूप में तब भी बन जाता है जब कोई छात्र ज्ञानार्जन इसलिए करता है ताकि उच्चतर स्तर का ज्ञान प्राप्त कर सके। प्रत्येक स्तर पर दिया जाने वाला ज्ञान अपने से पहले स्तर पर दिये गये ज्ञान से अधिक व्यापक तथा एक दूसरे से किसी-न-किसी रूप में सम्बन्धित होता है । साध्य के रूप में ज्ञान व्यवस्थित, क्रमिक पाठ्यक्रम का एक भाग बनाकर दिया जाता है।

2. ज्ञान एक साधन के रूप में- ज्ञान एक साधन के रूप में तब बन जाता है जब ज्ञान प्राप्त करके किसी प्रत्यय की समझ विकसित करनी हो, जैसे-अधिगम का सिद्धान्त ज्ञान के रूप में तब साधन बन जाता है जब इसका प्रयोग सीखने की प्रक्रिया को समझने हेतु किया जाए। जब हम कुछ सीखते या समझते हैं तब ज्ञान का प्रयोग एक साधन के रूप में करते है। समझने के लिए सैद्धान्तिक ज्ञान का प्रयोग करना पड़ता है। मानव में बोध उत्पन्न करने हेतु वैध ज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। क्योंकि वैध ज्ञान की मदद से ही किसी अवधारण के नियमों को समझा जा सकता है। किसी भी व्यक्ति या वस्तु या प्रकरण का ज्ञान अर्जित करके इसका अनुप्रयोग करने हेतु उसका व्यावहारिक जीवन में प्रयोग किया जाए। इस प्रकार ज्ञान का किसी वास्तविक परिस्थिति में प्रयोग किया जाए।

ज्ञान का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा उत्कृष्ट पहलू यही है कि ज्ञान की मदद से समझ विकसित करने के पश्चात् जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में उत्पन्न स्थिति में इस ज्ञान का प्रयोग किया जा सकता है। जब हम ज्ञान का वास्तविक जीवन में प्रयोग करके अपने कार्य को आसान एवं उपयोगी बनाते हैं तब ज्ञान सक साधन के रूप में हमारी मदद करता है। विज्ञान के नियमों को जब हम अपने जीवन में प्रयोग करते हैं तब इस ज्ञान को एक सघन के रूप में ही समझा जाता है। भाषा के ज्ञान का अनुप्रयोग हम व्यावहारिक संचार के रूप में करते हैं। इंजीनियरिंग से सम्बन्धित ज्ञान को व्यावहारिक रूप में मशीनों एवं घरों के निर्माण में प्रयोग करना आदि सिद्ध करता है कि ज्ञान एक साधन है। ज्ञान का प्रयोग विश्लेषण हेतु भी किया जाता है। विश्लेषण की योग्यता यदि उद्देश्य हो तो ज्ञान एक साधन के रूप में इसमें सहायक सिद्ध होता है। ज्ञान का प्रयोग कई बार हम परिस्थितियों के विश्लेषण हेतु भी कहते हैं। ऐसा ज्ञान जो विश्लेषण करने के काम आता है, साधन के यप में ही होता है। ज्ञान का प्रयोग संश्लेषण के लिए भी किया जाता है। संश्लेषण की प्रक्रिया कुछ नवीन सृजन करने से सम्बन्धित होती है। इस प्रक्रिया में ज्ञान एक साधन के रूप में सहायता प्रदान करता है। ज्ञान का प्रयोग मूल्यांकन कार्यों के लिए किया जाता है और इसके द्वारा निष्कर्ष भी निकाले जाते हैं।

यह वर्तमान से लेकर भविष्य तक चलता है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए सदैव परिमार्जित एक संशोधित रूप में हस्तान्तरित होता है। ज्ञान की यदि प्रकृति पर ध्यान दिया जाए तो इसके विषय में निम्नलिखित बातें कहीं जा सकती हैं-

1. ज्ञान किसी परिस्थिति और प्रक्रिया से सम्बन्धित तथ्य और सत्य है। इसे सत्य से अलग नहीं किया जा सकता है।

2. यह अनुभवों की समझ पर आधारित सूचनाएँ हैं।

3. ज्ञान आत्मगत होता है। इसका हस्तान्तरण नहीं होता है।

4. ज्ञान वह सूचना है जो मस्तिष्क में प्रेषित हो जाती है।

5. ज्ञान सम्पूर्ण समाज के लिए उपयोगी साबित होता है। यह केवल व्यक्ति को ही लाभ नहीं पहुँचाता है बल्कि सम्पूर्ण समाज को लाभ पहुँचाता है इसलिए यह सबके लिए उपयोगी माना जाता है।

6. ज्ञान को संश्लेषण तथा विश्लेषण के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

7. ज्ञान को मूल्यांकन की प्रक्रिया में प्रयोग किया जाता है।

8. क्रियात्मक स्तर का ज्ञान भी विभिन्न क्रियाओं को कुशलतापूर्वक करने में उपयोगी होता है। खेल-कूद, कुछ वस्तुओं का निर्माण, जीवन के लिए उपयोगी क्रियाओं से सम्बन्धित ज्ञान इसी श्रेणी में आता है।

9. ज्ञान औपचारिक, अनौपचारिक तथा निरौपचारिक तीनों प्रकार की शिक्षा के लिए विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। परन्तु औपचारिक शिक्षा में इसका स्वरूप व्यवस्थित नहीं होता है बल्कि अनुभव तथा प्रत्यक्षीकरण पर आधारित होता है।

10. ज्ञान शिक्षा का स्थान ले सकता है।

11. शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना होता है।

12. ज्ञान साधन एवं साध्य दोनों ही रूपों में प्रयोग किया जाता है।

13. ज्ञान को सभी प्रकार की शिक्षा का प्रमुख आधार माना जाता है।

14. ज्ञान प्राप्त करके ही किसी प्रत्यय की समझ विकसित होती है।

15. ज्ञान स्वतन्त्र रूप में उपस्थित होता है परन्तु जब तक उसका अर्जन न किया जाय तब तक उसको अपने लिए या समाज के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

ज्ञान के उद्देश्य

ज्ञान के उद्देश्य अधोलिखित प्रकार हैं-

1. व्यक्तिगत विकास करना – ज्ञान का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्ति का व्यक्तिगत विकास करना है। व्यक्तिगत विकास के सभी पक्ष; जैसे- व्यवहार में सुधार, सकारात्मक अभिवृत्तियों का विकास, व्यक्तित्व को आकर्षक बनाना तथा भाषा पर नियन्त्रण रखना एवं कौशलों का विकास सम्मिलित होता है।

2. व्यक्तिगत अनुभवों को सुदृढ़ करना – ज्ञान का एक अन्य उद्देश्य व्यक्तिगत अनुभवों को सुदृढ़ता प्रदान करना है। जब तक हमारे व्यक्तिगत अनुभव प्रत्यक्षीकरण के द्वारा मानसिक तन्त्रिका तन्त्र का एक भाग नहीं बनते हैं तब तक उनको ज्ञान नहीं कहा जा सकता है।

3. समस्याओं के समाधान में सहायक – ज्ञान का एक उद्देश्य समस्याओं का समाधान करने में सहायक होना भी है। ज्ञान के अभाव में न तो हम समस्याओं को पहचान सकते हैं और न ही उनका समाधान ही कर सकते हैं। उदाहरण के लिए शैक्षिक समस्याओं का समाधान शिक्षा सम्बन्धी ज्ञान से ही सम्भव है। उसी प्रकार सभी क्षेत्रों की समस्याओं का समाधान उस क्षेत्र-विशेष के ज्ञान से ही सम्भव है।

4. इतिहास, संस्कृति एवं समाज का विकास- ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य इतिहास, संस्कृति तथा समाज का विकास करना है। इतिहास आगे बढ़ता है पर इतिहास को समझने हेतु एक विशेष प्रकार का ज्ञान आवश्यक होता है; जैसे-पुरातत्व सम्बन्धी ज्ञान के विकसित होने से पूर्व इतिहास तो विद्यमान था परन्तु इतिहास का विकास नहीं हो पाया था। इतिहास के तथ्यों का विश्लेषण करने में ज्ञान महत्त्वपूर्ण है। संस्कृति ज्ञान पर निर्भर है, बिना ज्ञान के संस्कृति की प्रगति सम्भव नहीं है। कार्य करने का ढंग, व्यवहार का तरीका आदि संस्कृति से सम्बन्धित पहलुओं का विकास ज्ञान का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।

5. सामाजिक- आर्थिक और राजनैतिक विश्लेषण-ज्ञान सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक विश्लेषण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। यह विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों का विश्लेषण करने तथा वृद्धि एवं विकास की मात्रा और दिशा निश्चित करने में सहायक होता है।

6. मानसिक सम्पदा का उत्पादन – मानव जो भी विचार करता है, उस कार्य रूप में परिणित करने का प्रयास करता है, उसका विकास कर मस्तिष्क में सृजित करता है जो उसकी मानसिक सम्पदा माना जाता है। इस मानसिक सम्पदा को सम्पदा के रूप में विकसित करना ज्ञान का प्रमुख उद्देश्य होता है। ऐसी मानसिक सम्पदाएँ सम्पूर्ण समाज के कल्याण के काम आती हैं और व्यक्तिगत मानसिक सम्पदा के रूप में स्थापित रहती हैं।

7. सिद्धान्त एवं नियमों का निर्माण- प्रत्येक क्षेत्र की सूचनाओं से ही सिद्धान्तों तथा नियमों का निर्माण होता है जो सामान्यीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित होते हैं। इन सिद्धान्तों तथा नियमों का निर्माण करना ज्ञान का महत्त्वपूर्ण कार्य है। इस प्रकार सिद्धान्तों तथा नियमों का निर्माण करना तथा सूचनाओं का सामान्यीकरण करके उन्हें नियमों और सिद्धान्तों में रूपान्तरित करना भी ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है।

8. व्याख्या करना – ज्ञान का एक उद्देश्य किसी भी प्रक्रिया, घटना या अवलोकन को देखना, समझना तथा उसकी व्याख्या करना भी है। ज्ञान के माध्यम से ही जटिलता तथा कठिनता की व्याख्या की जाती है जिसे वह बोधगम्य हो सके।

9. क्रिया के लिए उपयुक्त क्षमता का विकास- किसी भी क्रिया को उपयुक्त तरीके से करने के लिए क्षमता विकसित करना ही ज्ञान का एक उद्देश्य है।

10. सूचनाओं को व्यवस्थित करना – ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण कार्य सूचनाओं को व्यवस्थित करके उन्हें एक निश्चित रूप प्रदान करना है। सूचनाएँ यहाँ-वहाँ बिखरी पड़ी होती हैं। ज्ञान ही उन्हें व्यवस्थित क्रम में ग्रहण करता है।

11. मानसिक विकास के लिए अवसर प्रदान करना- ज्ञान मानसिक विकास हेतु उपयुक्त अवसर प्रदान करता है। यह हमारे मस्तिष्क के समक्ष ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है जिससे हमारी बुद्धि की सहायता से मानसिक क्षमताओं का विकास होता है; जैसे—अंकगणित, तर्कशक्ति तथा प्रश्न और विश्लेषण आदि के कारण हमारी मानसिक क्षमताओं में निरन्तर वृद्धि होती रहती है।

12. प्रत्ययों का निर्माण- कोई भी प्रत्यय हमारे समक्ष ज्ञान के कारण ही आता है। प्रत्यय ही हमारी समझ का विकास करते हैं। यह प्रत्यय सम्पूर्ण समाज में अधिगम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए रखे जाते हैं। ज्ञान का यह प्रमुख उद्देश्य है कि समस्त महत्त्वपूर्ण अवलोकनों तथ्यों एवं वस्तुओं से सम्बन्धित प्रत्ययों का निर्माण करे।

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