जैव-विविधता का संरक्षण एंव महत्त्व
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जैव-विविधता का संरक्षण एंव महत्त्व

जैव-विविधता का संरक्षण

जैव-विविधता के संरक्षण के दो तरीके हो सकते हैं। पहला यह है कि जीव-जन्तुओं को उनके प्राकृतिक आवास में ही रहने दिया जाये तथा उपयुक्त स्थानों की प्रभावी प्रबन्ध से सुरक्षा-कर पारिस्थितिक तन्त्र को संरक्षित रखने में मदद की जाये। दूसरा तरीका यह है कि विलुप्त होती वनस्पति एवं जन्तुओं की प्रजातियों को मनुष्य द्वारा निर्मित किसी बाहरी (कृत्रिम) पारिस्थितिक तन्त्र में स्थान दिया जाये, जैसे चिड़िया घर, वनस्पति उद्यान, जर्म प्लास्म बैंक (जिसमें बीज तथा ऊतक दोनों उपलब्ध हों) आदि। पहले तरीके को ‘स्व स्थाने संरक्षण विधि’ और दूसरे तरीके को ‘पर स्थाने संरक्षण विधि’ कहते हैं।

1. स्व स्थाने संरक्षण विधियाँ – स्व-स्थाने संरक्षण विधियों में सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्रों की रक्षा तथा रक्षित-क्षेत्रों (In situ conservation Methods) के संजाल द्वारा उस स्थान के विशेष पारिस्थितिक तन्त्रों के समूह की रक्षा की जाती है।

कुछ स्थलीय एवं जलीय स्थान ऐसे क्षेत्र हैं जो जैव-विविधता तथा उससे सम्बन्धित प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक संसाधनों की संरक्षा एवं अनुरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इनकी व्यवस्था कानून एवं अन्य प्रभावी तन्त्रों द्वारा संचालित होती हैं। ‘राष्ट्रीय उद्यान’ एवं ‘वन्य प्राणी एकान्त क्षेत्र’ रक्षित क्षेत्रों (Protected Areas) उदाहरण हैं। विश्व संरक्षण निगरानी केन्द्र (World Conservation Monitoring Center) ने वैश्विक स्तर पर 37000 रक्षित क्षेत्रों को चिह्नित किया है। सितम्बर, 2002 की गणना के अनुसार भारत में 581 रक्षित क्षेत्र हैं जिनमें से 89 राष्ट्रीय उद्यान तथा 492 वन्य प्राणी एकान्त क्षेत्र हैं जो 10 प्रतिशत के अन्तर्राष्ट्रीय सुझाव की तुलना में कुल 47 प्रतिशत भू-सतह पर फैले हुए हैं। ‘जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान’ (The Jim Corbett National Park) भारत में सर्वप्रथम स्थापित होने वाला राष्ट्रीय उद्यान है।

रक्षित क्षेत्रों से अनेक लाभ है जिनमें से कुछ मुख्य लाभ इस प्रकार हैं-

(अ) रक्षित क्षेत्र स्थानिक जातियों एवं उपजातियों की जीवित आबादी का अनुरक्षण करते हैं।

(ब) समस्त रक्षित क्षेत्र समुदायों एवं आवासों की संख्या एवं वितरण का अनुरक्षण तथा समस्त उपस्थित जातियों की आनुवंशिकीय विविधता का संरक्षण करते हैं।

(स) रक्षित क्षेत्र मानवजन्य क्रियाकलापों द्वारा प्रतिकूल (Alien ) जातियों के प्रवेश से रक्षा करते हैं।

(द) रक्षित क्षेत्र पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति जातियों तथा आवासों के विस्थापन को सम्भव बनाते हैं।

जैव-मण्डल आरक्षित क्षेत्र स्थलमण्डल एवं तटीय पर्यावरण के रक्षित क्षेत्रों की एक विशेष श्रेणी है जहाँ मनुष्य भी व्यवस्था का एक अभिन्न घटक है। यह प्राकृतिक बायोंम तथा एक अकेला जैविक समुदाय का प्रतिनिधि नमूना है। मई, 2002 ई० तक विश्व के 94 देशों में 408 जैव मण्डल आरक्षितों को चिह्नित किया गया था। भारत में 13 जैव मण्डल आरक्षित हैं—

(1) नन्दा देवी, (2) नोकरेक, (3) मानस, (4) डिब्रू सीकोवा, (5) देइंग-दीवांग, (6) सुन्दर वन, (7) मन्नार की खाड़ी, (8) नीलगिरि, (9) ग्रेट निकोबार, (10) कंचनजंघा, (11) पंचमढ़ी, (12) सीमीलीपाल, (13) अगस्थ्यामलाई।

1. पर स्थाने संरक्षण विधियाँ- पर-स्थाने संरक्षण विधियों में चिड़ियाघर, वानस्पतिक उद्यान, संरक्षण स्थल एवं जीन, परागकण, बीज, नवोद्भिद् या बेहन, उत्तक संवर्धन एवं डी० एन० ए० बैंक सम्मिलित हैं। बीज जीन बैंक में जंगली एवं कृषि वाले पौधों के बीजाणु को ठंडे कमरे में निम्न तापमान पर सरलता से भण्डारित किया जाता है। सामान्य परिस्थितियों में जीव बैंक के आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण खेत में किया जाता है।

पात्रे संरक्षण विधि पर-स्थाने संरक्षण विधियों में विशेष स्थान रखती है। यह विशेष तौर पर – 196 डिग्री सेल्सियस पर द्रव नाइट्रोजन में क्रायोप्रेजर्वेशन द्वारा किया जाता है। यह विधि आलू जैसी उगाई जाने वाली फसलों के संरक्षण के लिए विशेष उपयोगी है। क्रायोप्रेजर्वेशन विधि अतिन्यून तापमान पर जैविक पदार्थों का भण्डारण है जो या तो एकाएक ठण्डा करके (जैसा बीजों के भण्डारण में उपयोग होता है) अथवा क्रमशः ठण्डा करते हुए निम्न तापमान पर जलक्षय (जो उत्तक संवर्द्धन में उपयोग होता है) द्वारा किया जाता है। अनेक पदार्थों को लम्बे समय तक बन्द एवं निम्न अनुरक्षण शीतकारी इकाइयों द्वारा भण्डारित किया जा सकता है।

वानस्पतिक उद्यानों में जैव-विविधता संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। विश्व में 1500 से अधिक वानस्पतिक उद्यान एवं वृक्षोद्यान हैं जहाँ वृक्ष एवं झाड़ीदार जातियों को विशेष रूप से उगाया जाता है। और उनमें 800 से अधिक जातियाँ संरक्षित की गयी हैं। इनमें से अनेक उद्यानों में अब बीज बैंक, उत्तक संवर्द्धन प्रयोगशालाएँ तथा पर-स्थाने तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

आज विश्वभर में लगभग 800 से अधिक व्यावसायिक प्रबन्ध वाले चिड़ियाघर विद्यमान हैं जहाँ स्तनधारी जीव, पक्षी, सरिसृप एवं उभयचरों की लगभग 3000 जातियाँ संरक्षित हैं। इसमें से अनेक चिड़ियाघर ऐसे हैं जहाँ सक्षम प्रजनन कार्यक्रम पूर्णरूप से विकसित है। फसली पौधों के जंगली सम्बन्धियों के संरक्षण तथा फसली प्रजातियों के पर-स्थाने संरक्षण अथवा सूक्ष्मजीवी का संवर्द्धन प्रजननकर्त्ताओं एवं आनुवंशिक अभियन्ताओं को आनुवंशिक पदार्थों का एक प्रचुर व स्वस्थ स्रोत प्रदान करता है जो नयी-नयी किस्मों को तैयार करने में उपयोग किया जाता है। वानस्पतिक उद्यान, वृक्षोद्यान, चिड़ियाघर एवं जलीयधर के पौधों एवं जन्तुओं का संरक्षण कर क्षरित भूमि की पुनर्स्थापना, वन में जातियों का पुनः प्रवेश एवं घटती आबादी का पुनर्भण्डारण के लिए उपयोग किया जाता है।

आज हम सभी का दायित्व है कि हम अपनी आगामी पीढ़ियों के लिए जैव-विविधता से प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभों एवं मनोहारी दृश्यों एवं संरचनाओं को सुरक्षित रखें। आज हमारे द्वारा स्वयं अथवा समाज के रूप में लिया गया निर्णय भविष्य में वंशों, जातियों एवं पारितन्त्रों की विविधता का निर्धारक बनेंगी। अब समाज द्वारा की जाने वाली आवासों की आगामी क्षति एवं गिरावट को रोकने के लिए जैव-विविधता संरक्षण का अत्यन्त प्रभावी व कारगर कदम उठाये जाने जरूरी हैं। मानव गतिविधियों के बढ़े दबाव एवं घटते आवासीय परिस्थितियों में जैव-विविधता संरक्षण के उचित प्रयास करने के लिए अधिकतम जानकारियों की आवश्यकता है।

जैव-विविधता का महत्त्व

जैव-विविधता के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है-

1. जैव-विविधता जीवन के लिए सुखमय आधार— जैव-विविधता हमारे जीवन के लिए सुखमय आधार है। पृथ्वी पर की सभी चीजें जो हमें निरापद रूप में मिल पाती हैं उसका श्रेय जैविक विविधता को जाता है। पीने योग्य पानी, स्वच्छ वायु, उपजाऊ मिट्टी जिससे हमें अन्न मिलता है इसी की देन है। पेड़ों से ऑक्सीजन का मिलना, फैक्ट्रीज से निकली कार्बन डाइ ऑक्साइड को आत्मसात करना, घर और कार्यालय को शुद्ध हवा उपलब्ध कराना, खेतों में अनेक जीवों से अन्न को सुरक्षित रखना, अनेक कीड़े-मकोड़ों की सहायता से मिट्टी को उपजाऊ बनाना आदि विविध कार्य जैविक विविधता की महत्ता को ही बताते हैं। एक प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि यह हमारे सुखमय जीवन के विभिन्न आयामों का स्रोत केन्द्र है।

2. भोजन एवं कृषि में जैव-विविधता का महत्त्व – आधुनिक कृषि में खाद्य एवं उन्न प्रजातियों के स्त्रोत के रूप में जैव-विविधता मानव समुदाय के लिए तीन प्रकार से उपयोगी है-

  1. यह नवीन फसलों का अच्छा स्रोत है।
  2. यह उन्नति प्रजातियों के प्रजनन के लिए प्रचुर भण्डार रखता है।
  3. यह जैविक अपघटन वाली रोगनाशियों (Pesticides) का उत्तम स्रोत है।

खाद्य पौधों की हजारों जातियों से मात्र 20 पौधों की जातियाँ (Plant Species) ऐसी हैं जिनकी खेती वैश्विक खाद्य माँग का लगभग 85 प्रतिशत उत्पादन के लिए उत्तरदायी हैं। मानव समाज की इतनी बड़ी आबादी को जीवित रहने के लिए गेहूँ, धान, बाजरा, मक्का व चावल जैसी प्रमुख कार्बोहाइड्रेट वाली फसलें कुल खाद्य आवश्यकता का लगभग दो तिहाई भाग का उत्पादन करती हैं।

खाने की मेज पर उपलब्ध भोज्य सामग्री, अन्न, दूध-दही, घी, मांस, मछली, अण्डे, मक्खन, फल, सब्जियाँ, अचार और अन्य सामग्री सभी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जैविक विविधता का प्रतिफल है। खेतों से आहार, पशुओं से दूध, समुद्र से मांसाहारी पदार्थ, मुर्गियों से अण्डे आदि जीव विविधता से निरन्तर मिलती रहती हैं। आवास हेतु लकड़ी, कपड़ों के लिए रुई, ऊन आदि की उपलब्धता जैव विविधता का ही परिणाम है।

3. जैव-विविधता स्वास्थ्य के लिए उपयोगी— जैव-विविधता का हमारे स्वास्थ्य के लिए विशेष महत्त्व है। जैविक विविधता का एक और महत्त्वपूर्ण योगदान इसके द्वारा प्रतिपादित जंगल और वन्य प्रजाति से सम्बन्धित है। एक समय था जब कि विश्व की शत-प्रतिशत औषधियाँ केवल पेड़-पौधों अथवा विभिन्न पशुओं और जीव-जन्तुओं से ही प्राप्त होती थीं और आज से कोई 50 वर्ष पूर्व भी कोई 3 अरब मनुष्य जंगली जड़ी-बूटियों और उनसे निर्मित विभिन्न दवाइयों पर ही आधारित थे। आज भी अनेक शोधों के बावजूद इन विविध प्रजातियों को नकारा नहीं गया है। चीन में 5100 प्रजातियों, अमेरिका में 3000 प्रजातियों का आज भी उपयोग एण्टीबायोटिक तथा अन्य दवाइयों में प्रयोग होता है। भारत में तो पूरी आयुर्विज्ञान उपचार-प्रणाली इन घरेलू और जंगली पेड़-पौधों पर आधारित है। अनेक एलोपैथिक उपचारों में केवल नाम अंग्रेजी के हैं जबकि दवाई में अन्तर्वस्तु सभी सामान्य पौधों के सत्व हैं। वर्तमान में 25% दवाएँ मात्र 120 पादप जातियों से तैयार की जाती हैं। पौधों को हजारों प्रकार के संश्लेषित उत्पादों के निर्माण में भी उपयोग किया जाता है जो वानस्पतिक रसायन कहलाते हैं।

4. पारिस्थितिकी-तन्त्र को स्थायित्व प्रदान करने में उपयोगी- किसी भी आबादी तथा प्रजाति का अस्तित्व आवास विशेष में निर्जीव वस्तुओं से इनकी पारस्परिक संक्रिया से ही सम्भव है जिससे उनके पारिस्थितिक तन्त्र की स्थिरता सुनिश्चित होती हैं। जैविक विविधता इन सभी पारिस्थितिक तन्त्रों को नियमित रूप से चलते रहने में और उनको स्थायित्व प्रदान करने की महती भूमिका का निर्वाह करती है।

पारिस्थितिक तन्त्रों एवं उनमें स्थित जातियों से विभिन्न प्रकार की सामग्रियाँ एवं सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं। इन्हें लगातार प्राप्त करने के लिए जैव-विविधता के अनुरक्षण की आवश्यकता पड़ती है। इनके द्वारा उपलब्ध सेवाओं में वनों एवं सागरीय परितन्त्रों द्वारा जलवायु- नियन्त्रण, प्राकृतिक रोगकारी नियन्त्रण, अम्लीय गैस का अनुरक्षण, कीटों एवं पक्षियों द्वारा फूलों का परागण, मिट्टी का निर्माण तथा संरक्षण, जल का संरक्षण और शुद्धीकरण तथा पोषक चक्रों का नियन्त्रण आदि प्रमुख हैं।

5. सौन्दर्यात्मक एवं सांस्कृतिक लाभ- मानव विकास के प्रारम्भ से ही मनुष्य का सांस्कृतिक लाभों एवं धार्मिक भावनाओं द्वारा जैव विविधता से सम्बन्ध रहा है। चिड़ियाघर, वन्यजीवन, पशुपालन, बागवानी इत्यादि पर्यावरणीय पर्यटन सहित सौन्दर्यात्मक एवं मनोरंजक लाभ के उदाहरण हैं, जो जैव विविधता से ही प्राप्त होते हैं। भारत के प्रमुख ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी तुलसी, पीपल, खेजरी तथा अनेक अन्य वृक्षों को लोग पवित्र मानते हुए उगाते हैं तथा इनकी पूजा भी करते हैं। हमारी संस्कृति में अनेक पक्षियों तथा साँप जैसे विषैले जन्तुओं को भी पवित्र माना जाता है। आज हम लोग वनस्पतियों एवं जन्तुओं को राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक एवं सांस्कृतिक विरासत के रूप में मानने लगे हैं।

6. जैव-विविधता द्वारा व्यक्तित्व में नयापन – हमारी पारम्परिक गतिविधियों में विविधताओं की समाविष्टि ने मनुष्य के जीवन में अनेक परिवर्तन किये हैं। केवल भोजन, आवास और कपड़ा ही नहीं बल्कि आमोद-प्रमोद की विविधता, रीति-रिवाजों में से पारम्परिक एकाकीपन का अलगाव, रहने सहने के नये रंग-ढंग, स्वस्थ और स्वच्छ जीवन शैली की पद्धति, वार्तालाप का उल्लसित और उमंग भरा तरीका आदि सभी ने मनुष्य के व्यक्तित्व में एक ऐसा नयापन ला दिया है जिससे जीवन-दर्शन का स्वरूप प्रसन्नतामय, सुखमय और शान्तिपूर्ण हो गया है। अप्रत्यक्ष रूप से यह सब जैविक विविधता के फलस्वरूप ही है।

उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त जैव-विविधता हमारा सम्बन्ध पारंपरिक शैलियों से जोड़े रहती है, हमारी आर्थिक सम्पन्नता में वृद्धि करती है, हमारी पृथ्वी की सुरक्षा करती है, पृथ्वी को स्वच्छ रखती है। और जीवन के हर क्षेत्र में वृद्धि करती है।

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