ज्ञान की प्रकृति एंव उद्देश्य | Nature of Knowledge in Hindi
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ज्ञान की प्रकृति (Nature of Knowledge)

विद्यालय में ज्ञान की प्रकृति की जानकारी होना भी अत्यन्त आवश्यक है। ज्ञान की प्रकृति को दो रूपों में व्यक्त किया जा सकता है-

1) ज्ञान एक साध्य के रूप में (Knowledge as a Doable) – ज्ञान को एक साध्य के रूप में तब प्रकट किया जाता है जब-

i) ज्ञान एक उद्देश्य के रूप में परिभाषित किया गया हो जिसे प्राप्त करना हमारा उद्देश्य हो, जैसे-कई प्रत्ययों का अर्थ, परिभाषा, विशेषता, गुण, दोष एवं सीमाएँ आदि।

ii) ज्ञान का परीक्षण किया जाना हो अर्थात् परीक्षा में सफल होने के लिए ज्ञान का संग्रहण ।

iii) ज्ञान को एक सिद्धान्त के रूप में लिया जाए, जैसे-शिक्षा का सिद्धान्त तथा समाजवाद का सिद्धान्त आदि।
ज्ञान एक साध्य के रूप में वह ज्ञान होता है जिसे हमें प्राप्त करना होता है। ज्ञान स्वतन्त्र रूप में उपस्थित होता है परन्तु जब तक उसका अर्जन न किया जाए तब तक उसको अपने लिए या समाज के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है। ज्ञान की प्राप्ति परम्परागत रूप में एक साध्य ही है जिसकी प्राप्ति प्राचीन काल में घर के सदस्यों द्वारा होती थी। प्रारम्भ में गुरुकुल प्रणाली के अन्तर्गत ज्ञान प्राप्ति के लिए मौखिक प्रणाली का प्रयोग किया जाता था तथा बाद में ज्ञान प्राप्ति के लिए लिखित प्रणाली का प्रयोग किया जाने लगा। आधुनिक समय में प्राचीनकाल की तुलना में मशीनों का प्रयोग होने के कारण ज्ञान प्राप्ति की पाठ्यचर्या में लगातार वृद्धि एवं परिवर्तन होता जा रहा है।

आज विद्यालयों में दिए जाने वाले ज्ञान का क्षेत्र पहले की तुलना में अधिक विस्तृत हो गया है अर्थात् ज्ञान एक साध्य के रूप में अधिक विस्तृत हो गया है। वर्तमान समय में ज्ञान की मात्रा में ही नहीं अपितु उसके स्वरूप में भी परिवर्तन आ गया है। आजकल कई नए तथा आधुनिक ज्ञान भी दिए जाने लगे हैं, जैसे-कम्प्यूटर का ज्ञान, विदेशी भाषाओं का ज्ञान, तकनीकी ज्ञान आदि।

विद्यालयी पाठ्यचर्या में प्राथमिक कक्षाओं से ही कम्प्यूटर का ज्ञान जोड़ दिया गया है। I.T.I. भी औद्योगिक व्यवसायों के रूप में विद्यालयी पाठ्यचर्या से इण्टरमीडिएट तक तकनीकी ज्ञान रखने वालों के लिए उपलब्ध हैं। ज्ञान एक साध्य के रूप में तब भी देखने को मिलता है जब कोई छात्र ज्ञान का अर्जन इसलिए करता है ताकि उच्चत्तर स्तर का ज्ञान प्राप्त कर सके। प्रत्येक स्तर पर दिया जाने वाला ज्ञान अपने से पहले स्तर पर दिए गए ज्ञान से अधिक व्यापक और एक-दूसरे से किसी न किसी रूप में सम्बन्धित होता है। साध्य के रूप में ज्ञान क्रमिक, व्यवस्थित पाठ्यचर्या का एक अंग बनाकर दिया जाता है।

2) ज्ञान एक साधन के रूप में (Knowledge as a Medium)- ज्ञान एक साधन के रूप में तब परिलक्षित होता है जब-

i) ज्ञान प्राप्त करके किसी प्रत्यय की समझ विकसित करनी हो। जैसे- अधिगम का सिद्धान्त ज्ञान के रूप में तब साधन बन जाता है जब इसका प्रयोग सीखने की प्रक्रिया को समझने के लिए किया जाए। जब हम कुछ सीखते या समझते हैं तब ज्ञान का प्रयोग एक साधन के रूप में करते हैं। समझने के लिए सैद्धान्तिक ज्ञान का प्रयोग करना पड़ता है। मानव में बोध उत्पन्न करने के लिए वैध ज्ञान का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि वैध ज्ञान की सहायता से ही किसी प्रत्यय नियमों को समझ सकते हैं।

ii) ज्ञानार्जन करके इसका अनुप्रयोग करने के लिए उसका व्यावहारिक जीवन में प्रयोग किया जाए। इस प्रकार ज्ञान का किसी वास्तविक परिस्थिति में प्रयोग किया जाए। ज्ञान का सबसे उत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण पहलू यही है कि ज्ञान की सहायता से समझ विकसित करने के बाद यह जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में उत्पन्न स्थिति में इस ज्ञान का प्रयोग किया जा सकता है। जब हम ज्ञान का वास्तविक जीवन में प्रयोग करके अपने कार्य को आसान एवं उपयोगी बनाते हैं तब ज्ञान एक साधन के रूप में हमारी सहायता करता है। विज्ञान के नियमों को जब हम जीवन में प्रयोग करते हैं तब ज्ञान को एक साधन के रूप में समझा जा सकता है। भाषा के ज्ञान का प्रयोग हम व्यावहारिक संचार के रूप में करते हैं. इंजीनियरिंग से सम्बन्धित ज्ञान को व्यावहारिक रूप में मशीनों एवं घरों के निर्माण में प्रयोग करना आदि सिद्ध करता है कि ज्ञान एक साधन है।

iii) ज्ञान को विश्लेषण के लिए प्रयोग किया जाता है तो ज्ञान एक साधन के रूप में इसमें सहायक सिद्ध होता है। ज्ञान का प्रयोग कई बार हम परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी करते हैं। ऐसा ज्ञान जो विश्लेषण करने के लिए काम आता है, साधन के रूप में होता है।

iv) ज्ञान को संश्लेषण के लिए भी प्रयोग किया जाता है। संश्लेषण की प्रक्रिया कुछ नया सृजन करने से सम्बन्धित होती है। इस प्रक्रिया में ज्ञान एक साधन के रूप में सहायता प्रदान करता है। उदाहरणार्थ- हवा को उत्पन्न करने के जो नियम या सिद्धान्त हैं उसी का प्रयोग करके हवाई जहाज के उड़ने की प्रक्रिया को समझा जाए तो इस परिस्थिति में हवा से सम्बन्धित ज्ञान साधन बन जाता है और हमारे लिए पृष्ठात्मकता को जन्म देने वाली परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है।

v) ज्ञान को जब मूल्यांकन की प्रक्रिया में प्रयोग किया जाता है तो इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

ज्ञान के उद्देश्य (Objectives of Knowledge)

ज्ञान के उद्देश्य को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-

1) समस्याओं के समाधान की युक्ति प्रदान करना-ज्ञान, जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान के लिए युक्ति प्रदान करता है। बिना ज्ञान के न तो मनुष्य समस्याओं को पहचान सकता है और न ही इन समस्याओं का समाधान ही प्रस्तुत कर सकता है। ज्ञान के कारण, समस्याओं के समाधान में लगने वाले समय या अवधि में भी कमी आ जाती है। उदाहरण के लिए- शिक्षण सम्बन्धित समस्याओं का समाधान शिक्षा से सम्बन्धित ज्ञान से प्राप्त होता है। भाप की शक्ति के ज्ञान से भाप के रेल इंजन बनाने और यातायात सम्बन्धी समस्याओं का समाधान मिला।

2) किसी घटना और परिस्थिति को समझने में सहायक-ज्ञान का एक उद्देश्य यह भी होता है कि यह किसी घटना और परिस्थिति को समझने में सहायक होता है। किसी भी वस्तु, स्थिति का ज्ञान उन्हें समझने में सहायक हो सकता है।

3) क्रिया के लिए उपयुक्त क्षमता का विकास करना- किसी भी क्रिया को (स्वैच्छिक क्रिया को छोड़कर) उचित तरीके से करने के लिए उपयुक्त क्षमता का विकास करना भी ज्ञान का एक उद्देश्य होता है।

4) व्यक्तिगत विकास- ज्ञान का एक उद्देश्य यह भी होता है कि मनुष्य का व्यक्तिगत विकास किया जा सके। व्यक्तिगत विकास के सभी आयामों जैसे- भाषा, कौशल, संचार, व्यक्तित्त्व, व्यवहार, अभिवृत्ति आदि को विकसित करना ज्ञान का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।

5) सूचनाओं को निश्चित आकार देना– ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि सूचनाओं को एक निश्चित रूप दिया जाए। सूचनाएँ यहाँ-वहाँ बिखरी होती हैं अतः उनको सही एवं निश्चित रूप प्रदान करना ज्ञान का उद्देश्य है।

6) व्याख्या करना– ज्ञान व्याख्या करता है। ज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों में से एक उद्देश्य उद्देश्य यह भी है कि यह किसी भी प्रक्रिया, घटना या अवलोकन की व्याख्या कर सकता है। ज्ञान के ही माध्यम से जटिलता की व्याख्या की जाती है।

7) व्यक्तिगत अनुभवों को सुदृढ़ करना-ज्ञान, व्यक्तिगत अनुभवों के सुदृढ़ीकरण का कार्य करता है। हमारे व्यक्तिगत अनुभव जब तक किसी ज्ञान के सम्पर्क में नहीं आते तब तक व्यक्तिगत अनुभवों को ठोस रूप में नहीं कहा जा सकता।

8) सिद्धान्त व नियमों का निर्माण-प्रत्येक क्षेत्र में सूचनाओं के माध्यम से सिद्धान्ती का निर्माण किया जाता है जो सामान्यीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित होते है। इन सिद्धान्तों व नियमों का निर्माण करना ज्ञान के महत्त्वूपर्ण कार्यों में से एक है।

9) मानसिक विकास के लिए अवसर उत्पन्न करना-ज्ञान मानसिक विकास के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान करता है। ज्ञान हमारे मस्तिष्क के सामने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है जिससे हमारी बुद्धि की सहायता से मानसिक क्षमताओं का विकास होता है। जैसे- तर्क (Reason), अंकगणित (Arithmatic), प्रश्न (Questions) एवं विश्लेषण (Analysis) आदि के कारण हमारी मानसिक क्षमताओं में लगातार वृद्धि होती रहती है।

10) प्रत्ययों का निर्माण-कोई भी प्रत्यय हमारे समक्ष ज्ञान के कारण ही आता है। प्रत्यय ही हमारी समझ को विकसित करते हैं। ये प्रत्यय ही सम्पूर्ण समाज में सीखने के लिए उद्देश्य के रूप में रखे जाते हैं। ज्ञान का यह प्रमुख उद्देश्य है कि सभी महत्त्वपूर्ण अवलोकनों (Observations), तथ्यों (Facts) और वस्तुओं (Objects) से सम्बन्धित प्रत्ययों का निर्माण करे।

11) शब्दों का निर्माण- ज्ञान का एक उद्देश्य यह भी है कि व्याख्या एवं पहचान के लिए उपयुक्त शब्दों का निर्माण करे क्योंकि बिना शब्दों के ज्ञान का हस्तांतरण सम्भव नही होता है।

12) समाज का विकास- समाज का समुचित विकास ज्ञान का प्रमुख उद्देश्य होता है । कोई भी समाज अपने विकास के लिए समाज द्वारा संचित ज्ञान पर ही निर्भर करता है। जितना उन्नत ज्ञान होगा एवं जितनी ज्ञान की विभिन्नता होगी वह समाज उतना ही ज्यादा विकसित होगा। ज्ञान का संचय और उसका प्रयोग समाज के विकास के लिए अनिवार्य शर्तों में से एक है।

13) इतिहास और संस्कृति का विकास– इतिहास के द्वारा संस्कृति का आगे की पीढ़ी में हस्तान्तरण होता है। पर इतिहास को समझने के लिए एक विशेष प्रकार का ज्ञान आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए- पुरातत्त्व सम्बन्धी ज्ञान के विकसित होने से पहले इतिहास तो विद्यमान था परन्तु इतिहास का विकास नहीं हो पाया था। इतिहास के तथ्यों का विश्लेषण करने में ज्ञान महत्त्वपूर्ण है। संस्कृति ज्ञान पर निर्भर है।

बिना ज्ञान के संस्कृति की प्रगति सम्भव नहीं है। कार्य करने का ढंग, व्यवहार का तरीका आदि संस्कृति से सम्बन्धित पहलुओं का विकास ज्ञान का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।

14) सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विश्लेषण- ज्ञान, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक विश्लेषण करता है। सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक परिस्थितियों का विश्लेषण करना, विकास एवं वृद्धि की मात्रा एवं दिशा निर्धारित करने में सहायक होता है।

15) बौद्धिक सम्पदा का उत्पादन– मनुष्य जो भी सोचता है उसे करता है एवं उसका विकास करके मस्तिष्क में सृजित करता है, वो उसकी अपनी बौद्धिक सम्पदा माना जाता है। इस बौद्धिक सृजन को सम्पदा के रूप में विकसित करना ज्ञान का प्रमुख उद्देश्य होता है। ऐसी बौद्धिक सम्पदाएँ, सम्पूर्ण समाज के कल्याण के काम आती है और व्यक्तिगत बौद्धिक सम्पदा के रूप में स्थापित रहती हैं।

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