पाठ्यचर्या का चयन | Selection of Curriculum in Hindi
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पाठ्यचर्या का चयन (Selection of Curriculum)

पाठ्यचर्या का चयन शिक्षा का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। पाठ्यचर्या के अन्तर्गत ऐसी पाठ्यवस्तु का निर्धारण किया जाए जिससे पाठ्यचर्या का विकास हो सके। पाठ्यचर्या का स्वरूप पाठ्यवस्तु तथा विषय के चयन को निर्धारित करता है। किसी भी पाठ्यचर्या की विषयवस्तु के चयन के तीन स्तर होते हैं-

प्रथम स्तर

इस स्तर का सम्बन्ध विषयवस्तु के क्षेत्र से होता है जिसके अन्तर्गत विषयवस्तु के मानदण्ड तथा अपनी सीमाओं के साथ पाठ्यचर्या में सम्मिलित की जाती है।

द्वितीय स्तर

यह स्तर तथ्यों तथा प्रत्ययों से सम्बन्धित होता है। इसमें पाठ्यचर्या में आवश्यक पाठ्यवस्तु में सम्मिलित तथ्यों तथा प्रत्ययों के विकास पर ध्यान दिया जाता है। अर्थात् इसमें उपयोगी तथा आवश्यक तथ्य तथा प्रत्ययों को ही स्थान देकर उसके लिए उपयुक्त शिक्षण सामग्री तथा विधियों को रखा जाता है।

तृतीय स्तर

यह स्तर सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इसमें सहायक शिक्षण सामग्री तथा शिक्षण विधियों का विश्लेषण तथा सरल व्याख्या की जाती है जिससे यह ज्ञात होता है कि ये शिक्षण सामग्रियाँ तथा विधियाँ छात्रों के लिए कितनी उपयोगी सिद्ध होती हैं।

पाठ्यचर्या तथा उसकी विषयवस्तु के चयन के उपरोक्त स्तर होते हैं किन्तु इसमें कुछ आधारों को भी जोड़ा गया है। वे आधार निम्नलिखित हैं-

  1. मानव मस्तिष्क की क्षमता के अनुसार चयन।
  2. बालकों की आवश्यकताओं के अनुसार चयन।
  3. बालकों की समस्याओं के अनुसार चयन।
  4. बालकों के लिए उपयोगिता के स्तर के अनुसार चयन।
  5. शैक्षिक उद्देश्य के आधार पर चयन।
  6. समय तथा परिस्थितियों के अनुसार चयन।
  7. आधुनिकता व जागरूकता के आधार पर चयन।
  8. पाश्चात्य देशों की शिक्षा के प्रभाव के आधार पर चयन।
  9. शिक्षण विधियों, छात्रों की रुचियों, क्षमताओं तथा योग्यता के स्तर के अनुसार चयन।
  10. सृजनात्मकता के आधार पर चयन।

चयन की परिस्थितियों में उपरोक्त तत्त्वों को आधार बनाया गया है। यह आज की बात ही नहीं, बल्कि प्राचीन काल से ही अन्तरविषयों का निर्धारण उपरोक्त में से कुछ तत्त्वों के आधार पर किया जाता रहा है। यद्यपि इस क्षेत्र तथा दिशा में अनेक विधिवत् प्रयास किए जाने लगे हैं।

अमेरिका में आधुनिक काल के प्रारम्भ से ही इस दिशा में उपयोगी कार्य हुआ है। इन प्रयासों का विद्यालयी गतिविधियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। संयुक्त राज्य अमेरिका की शैक्षिक संस्था “नेशनल एजूकेशन एसोसिएशन” (NEA) (राष्ट्रीय शैक्षिक संगठन) की पाठ्यचर्या समिति ने पाठ्यचर्या की अर्न्तवस्तु के अतिरिक्त शिक्षण विधियों, विद्यालय प्रबन्धन, शिक्षण संस्थाओं का स्वरूप, ढाँचा, शिक्षा में अवरोधक तत्त्वों के समाधान आदि की व्याख्या की है। वर्तमान समय या आधुनिक काल में सामाजिक रूप से बालकों को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो बालकों में कुशलता, ज्ञान, नागरिकता के गुण, देशभक्ति के भाव, सृजनात्मकता, नैतिकता, चारित्रिक गुण, व्यक्तित्व का विकास, आर्थिक विकास आदि में अधिक से अधिक वृद्धि कर सके। अतः छात्रों हेतु पाठ्यचर्या में अच्छी विषयवस्तु का चयन किया जाना चाहिए जिससे छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

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