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कबीर दास का जीवन परिचय | हिन्दी निबंध |
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कबीर दास का जीवन परिचय | हिन्दी निबंध |
कबीर दास का जीवन परिचय | हिन्दी निबंध |

नमस्कार दोस्तों हमारी आज के post का शीर्षक है कबीर दास का जीवन परिचय | हिन्दी निबंध | उम्मीद करतें हैं की यह आपकों अवश्य पसंद आयेगी | धन्यवाद |

रूपरेखा

  • जन्म कालीन परिस्थितियाँ
  • जीवन वृत्त
  • समाज सुधार
  • धार्मिक सिद्धांत
  • हिन्दी साहित्य में कबीर का स्थान
  • उपसंहार

जन्मकालीन परिस्थितियाँ

महात्मा कबीर के जन्म के समय भारतवर्ष की राजनीति तथा समाज और धर्म में सर्वत्र एक अशान्ति और अव्यवस्था का साम्राज्य था।

राजनीतिक दृष्टि से मुस्लिम आक्रांताओं के आतंक से पीड़ित भारतीय जनता राजाओं का भरोसा छोड़कर हताश हो चुकी थी और उसने अपने को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया था।

धार्मिक दृष्टि से नाथ पंथियों और सिद्धों ने रहस्यात्मक एवं चमत्कारपूर्ण तन्त्र-मन्त्र आदि .. दिया था।

तीर्थ यात्रा, व्रत, पर्व आदि की नि:स्सारता बताकर वे लोग हठयोग तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं द्वारा ही ईश्वर प्राप्ति का उपदेश दे रहे थे।

सामाजिक दृष्टि से हिन्दू और मुसलमानों में परस्पर कलह और कटुता, द्वेष और अविश्वास बढ़ता जा रहा था। वैचारिक संकीर्णता दोनों ओर छाई हुई थी।

ऐसी स्थिति में एक ऐसे पथ-प्रदर्शक की आवश्यकता थी, जो किंकर्तव्यविमूढ़ जनता का पथ-प्रदर्शन कर सके। महात्मा कबीर ऐसे ही महापुरुष थे।

उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों में सद्भावना और प्रेम उत्पन्न करने के लिये अनेक प्रयत्न किये।

जीवन वृत्त

महात्मा Kabir का जन्म संवत् 1453 में हुआ था। कबीर पंथियों ने इनके जन्म के सम्बन्ध में यह दोहा लिखा है-

चौदह सौ छप्पन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ भए ।

जेठ सुदी बरसाइत की, पूरनमासी प्रगट भए ।

किंवदंती के अनुसार kabir रामानन्द जी के आशीर्वाद के फलस्वरूप किसी विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।

लोक-लाज के कारण यह इन्हें लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ आई थी। वहाँ से नीमा और नीरू नामक जुलाहा दम्पति इन्हें ले आये, जिनके द्वारा इनका पालन-पोषण हुआ।

कबीर के बाल्यकाल का विवरण अभी तक अज्ञात ही है पर इतना अवश्य है। कि उनकी शिक्षा व्यवस्था विधिवत नहीं हुई थी। उन्होंने स्वयं लिखा है-

मसि कागद छुआँ नहिं कलम गही नहि हाथ।

समाज सुधार

कबीर बचपन से अपने पिता के काम में हाथ बँटाने लगे थे। अवकाश के क्षणों में ही वे हिन्दू साधू सन्तों की संगति करते और उनसे ज्ञानार्जन करते।

प्रारम्भिक काल से ही कबीर हिन्दू वेदान्त से प्रभावित थे। इसीलिये वह स्वामी रामानन्द के शिष्य हुए। कुछ लोग इन्हें सूफी कबीर शेख तकी का शिष्य मानते हैं।

kabir की स्त्री का नाम लोई था। वह एक बनखण्डी बैरागी को कन्या थी। उसके घर पर एक दिन संतों का समागम था, कबीर भी वहाँ थे।

सब संतों को दूध पीने को दिया गया, सबने दूध पी लिया, कबीर ने अपना दूध रखा रहने दिया। पूछने पर बताया कि एक संत आ रहा है।

उसके लिये रख दिया है। कुछ देर बाद एक संत उसी कुटी पर आ पहुँचा। सब लोग कबीर की भक्ति पर मुग्ध हो गये।

लोई तो उनकी भक्ति से इतनी प्रभावित हो गई कि वह उनके साथ रहने लगी। कोई लोई को कबीर की स्त्री कहते हैं, कोई शिष्या।

कबीर ने निःसन्देह लोई को सम्बोधित करते हुये पद लिखे हैं

कहत कबीर सुनहु री लोई, तुहि विनसी रहेगा सोई।

सम्भव है, लोई उनकी स्त्री ही हो, पीछे संत स्वभाव के कारण उन्होंने उसे शिष्या बना लिया हो। उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन के विषय में लिखा है

नारी तो हम भी करी, पाया नहीं विचार।

जब जानी तब परिहरी, नारी बड़ा विकार ।।

लोई से इनके दो संतानें थीं। एक कमाल नाम का पुत्र था और दूसरी कमाली नाम की पुत्री । मृत्यु के समय कबीर काशी से मगहर चले गये थे, उन्होंने लिखा है

सकल जन्म शिवपुरी गंवाया, मरति बार मगहर उठि धाया।

लोगों का यह विश्वास है कि काशी में मृत्यु से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त हो जाता है, परन्तु कबीर इस धार्मिक अन्धविश्वास के घोर विरोधी थे इसलिये वे काशी से मगहर चले आये थे।

यद्यपि लोगों ने कहा भी कि मगहर में मरने से नरक मिलेगा; आप काशी ही चले जाइये; परन्तु कबीर ने यही उत्तर दिया-

जो काशी तन तजे कबीरा, तो रामहि कौन निहोरा।

कबीर की मृत्यु माघ सुदी एकादशी संवत्1575 में हुई थी, जैसा कि इस दोहे से सिद्ध होता है-

संवत् पन्द्रह सौ पछत्तर, कियो मगहर को गौन।

माघ सुदी एकादशी, रलो पौन के पौन ।।

धार्मिक सिद्धांत

संक्रांतिकाल में पथ-प्रदर्शन करने वाले किसी भी व्यक्ति को जहाँ जनता के अंधविश्वासों और मूर्खतापूर्ण कृत्यों का खण्डन करना पड़ता है, वहाँ उसे समन्वय का एक बीच का मार्ग भी निकालना पड़ता है।

यही कार्य कबीर को भी करना पड़ा।

जहाँ इन्होंने पण्डितों, मौलवियों, पीरों, सिद्धों और फकीरों को उनके पाखण्ड और ढोंग के लिये फटकारा वहाँ उन्होंने एक ऐसे सामान्य धर्म की स्थापना की जिसके द्वार सबके लिए खुल गये थे।

एक ओर उन्होंने हिन्दुओं के तीर्थ, वृत, मठ, मन्दिर, पूजा आदि की आलोचना की तो दूसरी ओर मुसलमानों के रोजा, नमाज और मस्जिद की भी खूब निन्दा की।

माला फेरने वाले पण्डित पुजारियों के विषय में उन्होंने कहा

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर |

कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर।।

जप माला छापा तिलक, सरै न एको काम।

मन काँचे नाचे वृथा, साँचे राँचे राम ॥

कबीर निर्गुणवादी थे, साकार भक्ति में उन्हें विश्वास न था, इसलिए स्थान-स्थान पर उन्होंने मूर्ति-पूजा का विरोध किया –

पाहन पूजै हरि मिलें तो, मैं पूजूँ पहार।

चाकी कोई न पूजई, पीस खाय संसार ।

सिर मुंडाकर संन्यासी होने वाले पाखण्डियों पर एक तीक्ष्ण व्यंग्य देखिये –

केसन कहा बिगारिया, जो मँडो सौ बार।

मन को क्यों नहीं मॅड़िये जा में विषय विकार ।।

सिद्धों और नाथ पंथियों के तन्त्र मन्त्र के रहस्यों का विरोध करते हुए कबीर ने लिखा है –

जन्त्र मन्त्र सब झूठ है, मत भरमा जग कोय।

सार शब्द जाने बिना, कागा हंस न होय ॥

मुसलमानों की ईश्वर पूजा, मस्जिद में अजाँ के माध्यम से होती है। अजा देने वाला काफी जोर से चिल्लाता है। कबीर को यह अखरता था। वे कहते थे कि तुम्हारा खुदा क्या कुछ कम सुनता है-

कॉकरि पाथरि जोरि के, मस्जिद लई चुनाय।

ता चढ़ि मुल्ला वाँग दे, क्या बहिरा हुआ खुदाय ।।

माँस भक्षण का विरोध-प्रदर्शन करते हुए लिखा है-

बकरी पाती खात है, ताकि काढ़ी खाल।

जो बकरी को खात है, उनको कहा हवाल ||

दिन को रोजा रखत हैं, रात हनत हैं गाय।

यह तो खून, वह बन्दगी, कैसी खुशी खुदाय ।।

मुसलमानों की हिंसा के साथ-साथ उन्होंने हिन्दुओं की छुआछूत की भावना को भी बुरा बताया-

जो तू बामनु, बामनी जाया, आन बाट काहे नहीं आया।

एक वृन्द एक मल मूतर एक चाम, एक गूदा।

एक जाति से सब उपजाना का बामन को सूदा ॥

इस प्रकार दोनों की बुराइयों का दिग्दर्शन कराके उन्होंने कहा-

इन दोउन राह न पाई,

हिन्दुन की हिन्दुआई देखी, तुरकन की तुरकाई।

इसके साथ ही उन्होंने राम और रहीम को एक बताकर कहा-

अल्ला राम की गति नाहीं, तँह कबीर ल्यौ लाई।

अर्थात् अल्ला और राम से भी परे एक असामान्य शक्ति की ओर कबीर ध्यान लगाता है। कबीर स्वयं निम्न वर्ग के प्रतिनिधि बनकर रहे तभी वे अखण्ड व्यक्तित्व को लेकर जीवित रह सके। आजकल के उच्च वर्ग के नेताओं की तरह उन्होंने पीड़ितों का समर्थन नहीं किया। यदि वे ऐसी परिस्थिति में पैदा न हुए होते तो सम्भवतः वे युगांतर उपस्थित नहीं कर पाते थे। कबीर की ईश्वर विषयक धारणा भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों का समन्वय थी।

उन्होंने न तो अद्वैतवाद अथवा बहावाद का समर्थन किया और न सूफी तथा खुदाबाद का ही कबीर ने मानवता की सामान्य भूमि पर खड़े होकर सबसे ऊपर एक नये निराले आराध्य की कल्पना की और उसी कल्पना के आधार पर ऐसे सामान्य धर्म की प्रतिष्ठा की, जो धार्मिक क्षेत्र में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन ला सका।

कबीर ने अपने को कहीं “राम की बहुरिया” कहा, जिससे उन्हें कोई-कोई सखी भाव का भक्त बता बैठते हैं और भी कई स्थानों पर ऐसे ही वर्णन किये हैं-

हम घर आएँ हो राजा भरतार |

कहीं मुक्ति न माँगकर भक्ति की याचना करते हैं। कहाँ कहते सुने जाते हैं-

दशरथ सुत तिहूँ लोक बखाना।

राम नाम का मरम है आना ।।

परन्तु अन्त में कबीर यह सिद्ध कर देते हैं कि उनका राम ब्रह्म का पर्यायवाची है—

निर्गुन राम, जपहु रे भाई।

ज्यौ तिल माँही तेल है, ज्यों चकमक में आगि |

तेरा साँई, तुज्झ में, जागि सके तो जागि ।।

हिन्दी साहित्य में कबीर का स्थान

साहित्य के क्षेत्र में कबीर पण्डित तो थे परन्तु पुस्तकों के पण्डित नहीं थे। वे प्रेम का ‘ढाई अक्षर’ पढ़कर पण्डित हुए थे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई थी। उन्होंने स्वयं कहा है-

मसि कागद छुआँ नहि, कलम गही नहि हाथ |

कवि के लिए प्रतिभा, शिक्षा, अभ्यास ये तीनों बातें आवश्यक होती हैं।

कबीर ने न तो कहीं शिक्षा प्राप्त की थी और न किसी गुरु के चरणों में बैठकर काव्य शास्त्र का अभ्यास ही किया न था परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि वे ज्ञान से शून्य थे। भले ही उनमें परावलम्बी ज्ञान न रहा हो, परन्तु स्वावलम्बी ज्ञान की उनमें कमी नहीं थी।

उन्होंने सत्संग से पर्याप्त ज्ञान संचय किया था। वे बहुश्रुत थे, उनके काव्य में विभिन्न प्रतीकों तथा अलंकारों की छटा दिखाई पड़ती है।

उनके रूपक और उलटवासियों के विरोधाभास तो अद्वितीय हैं। भाषा सधुक्कड़ी होने पर भी अभिव्यक्तिपूर्ण है।

कुछ विद्वानों का आक्षेप है कि छन्द की दृष्टि से उनका काव्य अत्यन्त दोषपूर्ण है और वह ठीक भी है परन्तु कबीर का ध्येय कविता की रचना द्वारा महाकवि बनना या यश प्राप्त करना नहीं था।

कविता तो उनके लिए अपने विचारों तथा भावों को जनता तक पहुँचाने का माध्यम थी। यहीं कारण है कि सीधी हृदय से निकली हुई कबीर की कविता पाठक के हृदय पर चोट करती है इसीलिए यह कहा जाता है कि,

“चुभ-चुभ कर भीतर चुभै, ऐसी कहै कबीर”।

कबीर के हृदय में सत्यता थी, आत्मा में बल था, इसलिये उनकी वाणी में ओज था, शक्ति थी।

 रहस्यवादी कविता के वे स्थान जहाँ उन्होंने आत्मा के विरह और व्यथा का चित्रण किया है, किसी भी कोमल हृदय के व्यक्ति को रसमग्न करने के लिये पर्याप्त है।

कबीर ज्ञान सम्बन्धी रचनाओं में निःसन्देह सर्वश्रेष्ठ है। नीति काव्यकारों में भी कबीर का स्थान रहीम से पीछे नहीं है।

तुलसी और सूर की रचनाओं के बाद लोकप्रियता एवं प्रभावोत्पादकता में कबीर का ही काव्य आता है।

मिश्र बन्धुओं ने अपने ‘हिन्दी नवरत्न’ में कबीर को तुलसी और सूर के पश्चात् तीसरा स्थान प्रदान करके न्याय ही किया है।

उपसंहार

कबीर को कोई-कोई विद्वान् केवल समाज सुधारक और ज्ञानी मानते हैं, परन्तु कबीर में समाज सुधारक, ज्ञानी और कवि, तीनों रूप मिलकर एकाकार हो गये हैं।

वे सर्वप्रथम समाज सुधारक थे, उसके पश्चात् ज्ञानी और उसके पश्चात् कवि।

कबीर ने अपनी प्रखर भाषा और तीखी भावाभिव्यक्ति से साहित्यिक मर्यादाओं का अतिक्रमण भले ही कर दिया हो परन्तु उन्होंने जो काव्य-सृजन किया उसके द्वारा साहित्य तथा धर्म में युगान्तर अवश्य उपस्थित हुआ।

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यह भी जाने

कबीर दास की जन्मकालीन परिस्थितियाँ क्या थीं ?

महात्मा कबीर के जन्म के समय भारतवर्ष की राजनीति तथा समाज और धर्म में सर्वत्र एक अशान्ति और अव्यवस्था का साम्राज्य था।

राजनीतिक दृष्टि से मुस्लिम आक्रांताओं के आतंक से पीड़ित भारतीय जनता राजाओं का भरोसा छोड़कर हताश हो चुकी थी और उसने अपने को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया था।

धार्मिक दृष्टि से नाथ पंथियों और सिद्धों ने रहस्यात्मक एवं चमत्कारपूर्ण तन्त्र-मन्त्र आदि .. दिया था। तीर्थ यात्रा, व्रत, पर्व आदि की नि:स्सारता बताकर वे लोग हठयोग तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं द्वारा ही ईश्वर प्राप्ति का उपदेश दे रहे थे।

सामाजिक दृष्टि से हिन्दू और मुसलमानों में परस्पर कलह और कटुता, द्वेष और अविश्वास बढ़ता जा रहा था। वैचारिक संकीर्णता दोनों ओर छाई हुई थी। ऐसी स्थिति में एक ऐसे पथ-प्रदर्शक की आवश्यकता थी, जो किंकर्तव्यविमूढ़ जनता का पथ-प्रदर्शन कर सके। महात्मा कबीर ऐसे ही महापुरुष थे। उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों में सद्भावना और प्रेम उत्पन्न करने के लिये अनेक प्रयत्न किये।

कबीर दास का जीवन परिचय क्या है ?

महात्मा कबीर का जन्म संवत् 1453 में हुआ था। कबीर पंथियों ने इनके जन्म के सम्बन्ध में यह दोहा लिखा है-

चौदह सौ छप्पन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ भए ।
जेठ सुदी बरसाइत की, पूरनमासी प्रगट भए ।

किंवदंती के अनुसार कबीर रामानन्द जी के आशीर्वाद के फलस्वरूप किसी विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। लोक-लाज के कारण यह इन्हें लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ आई थी। वहाँ से नीमा और नीरू नामक जुलाहा दम्पति इन्हें ले आये, जिनके द्वारा इनका पालन-पोषण हुआ।

कबीर के बाल्यकाल का विवरण अभी तक अज्ञात ही है पर इतना अवश्य है। कि उनकी शिक्षा व्यवस्था विधिवत नहीं हुई थी। उन्होंने स्वयं लिखा है-

मसि कागद छुआँ नहिं कलम गही नहि हाथ।

हिन्दी साहित्य में कबीर का स्थान क्या है ?

साहित्य के क्षेत्र में कबीर पण्डित तो थे परन्तु पुस्तकों के पण्डित नहीं थे। वे प्रेम का ‘ढाई अक्षर’ पढ़कर पण्डित हुए थे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई थी। उन्होंने स्वयं कहा है-

मसि कागद छुआँ नहि, कलम गही नहि हाथ |

कवि के लिए प्रतिभा, शिक्षा, अभ्यास ये तीनों बातें आवश्यक होती हैं। कबीर ने न तो कहीं शिक्षा प्राप्त की थी और न किसी गुरु के चरणों में बैठकर काव्य शास्त्र का अभ्यास ही किया न था परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि वे ज्ञान से शून्य थे। भले ही उनमें परावलम्बी ज्ञान न रहा हो, परन्तु स्वावलम्बी ज्ञान की उनमें कमी नहीं थी।

उन्होंने सत्संग से पर्याप्त ज्ञान संचय किया था। वे बहुश्रुत थे, उनके काव्य में विभिन्न प्रतीकों तथा अलंकारों की छटा दिखाई पड़ती है। उनके रूपक और उलटवासियों के विरोधाभास तो अद्वितीय हैं। भाषा सधुक्कड़ी होने पर भी अभिव्यक्तिपूर्ण है।

कुछ विद्वानों का आक्षेप है कि छन्द की दृष्टि से उनका काव्य अत्यन्त दोषपूर्ण है और वह ठीक भी है परन्तु कबीर का ध्येय कविता की रचना द्वारा महाकवि बनना या यश प्राप्त करना नहीं था।

कविता तो उनके लिए अपने विचारों तथा भावों को जनता तक पहुँचाने का माध्यम थी। यहीं कारण है कि सीधी हृदय से निकली हुई कबीर की कविता पाठक के हृदय पर चोट करती है इसीलिए यह कहा जाता है कि,

“चुभ-चुभ कर भीतर चुभै, ऐसी कहै कबीर”।

कबीर के हृदय में सत्यता थी, आत्मा में बल था, इसलिये उनकी वाणी में ओज था, शक्ति थी।  रहस्यवादी कविता के वे स्थान जहाँ उन्होंने आत्मा के विरह और व्यथा का चित्रण किया है, किसी भी कोमल हृदय के व्यक्ति को रसमग्न करने के लिये पर्याप्त है।

कबीर ज्ञान सम्बन्धी रचनाओं में निःसन्देह सर्वश्रेष्ठ है। नीति काव्यकारों में भी कबीर का स्थान रहीम से पीछे नहीं है। तुलसी और सूर की रचनाओं के बाद लोकप्रियता एवं प्रभावोत्पादकता में कबीर का ही काव्य आता है।

मिश्र बन्धुओं ने अपने ‘हिन्दी नवरत्न’ में कबीर को तुलसी और सूर के पश्चात् तीसरा स्थान प्रदान करके न्याय ही किया है।

अयोध्यासिंह उपाध्याय ' हरिऔध ' | हिन्दी निबंध | Ayodhya singh upadhyay |
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘ हरिऔध ‘ | हिन्दी निबंध | Ayodhya singh upadhyay |
अयोध्यासिंह उपाध्याय ' हरिऔध ' | हिन्दी निबंध | Ayodhya singh upadhyay |
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नमस्कार दोस्तों हमारी आज के post का अयोध्यासिंह उपाध्याय | हिन्दी निबंध | AYODHYA SINGH UPADHYAY | म्मीद करतें हैं की यह आपकों अवश्य पसंद आयेगी | धन्यवाद |

रूपरेखा

  • जीवन वृत्त
  • रचनाएं
  • काव्यगत विशेषताएं
  • प्राकृतिक चित्रण
  • भाषा
  • शैली
  • रस, छंद, अलंकार

“खड़ी बोली हिन्दी प्रथम महाकाव्य लिखने का श्रेय हरिऔध जी को ही है। हरिऔध जी अपनी शैली अकेले कवि थे। इनकी शैली इनसे पहले कोई कवि था और न इनके बाद कोई उस शैली का अनुगमन कर सका। आज तक अनुपम और अद्वितीय रहे हैं।“

जीवन वृत्त

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘ हरिऔध ‘ जी का जन्म आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में सन् 1865 ई० हुआ था। इनके पिता का नाम श्री भोपालसिंह था, ये धनाढ्य ब्राह्मण थे।

संस्कृत, उर्दू, फारसी ज्ञान इन्होंने घर पर ही प्राप्त किया। इनकी शिक्षा-दीक्षा की देख-रेख इनके चाचा पं० ब्रह्मानन्द ने की थी।

मिडिल एवं नॉर्मल की परीक्षायें पास करके ये निजामाबाद मिडिल स्कूल में अध्यापक हो गये। पाँच वर्ष के पश्चात् ये कानूनगो हो गये । सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त हो जाने पर ये काशी विश्वविद्यालय में हिन्दी अवैतनिक अध्यापक हो गये।

सन् 1941 ई० में ये विश्वविद्यालय छोड़कर घर लौट गये और आजमगढ़ में स्थायी रूप से रहने लगे। हरिऔध बड़े करुण हृदय, परोपकारी मधुर भाषी थे। धन एवं यश की इन्हें अभिलाषा नहीं थी, फिर भी समाज से पूर्ण सम्मान मिला था।

ये कवि होने के साथ-साथ अच्छे वक्ता, एवं समीक्षक भी थे। ‘प्रिय प्रवास’ महाकाव्य पर इन्हें 1200 रु० का मंगला प्रसाद पारितोषिक भी प्राप्त हुआ था।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के ये सभापति भी रहे। सम्मेलन में इन्हें ‘विद्यावाचस्पति’ की उपाधि से विभूषित किया था, कवि सम्राट की उपाधि इन्हें पहले से ही प्राप्त थी।

भारतीय संस्कृति का यह अनन्य अर्चक मार्च 1945 में गोलोक वासी हुआ |

रचनायें

हरिऔध जी प्रकाण्ड विद्वान् महाकवि एवं बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न गद्यकार थे।

इन्होंने आजीवन साहित्य की सेवा की और इस प्रकार अनेक ग्रंथों का निर्माण किया।

इनकी रचनायें निम्नलिखित हैं-

  • महाकाव्य- प्रिय प्रवास, वैदेही
  • मुक्तक काव्य संग्रह- रस कलश, ग्रामगीत, परिजात, गद्य प्रसून, कर्मवीर, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, हरिऔध सतसई, प्रेमाम्बु वारिधि, प्रेमाम्बु प्रवाह आदि २७ काव्य ग्रन्थ ।
  • नाटक- प्रद्युम्न विजय, रुक्मिणी परिणय ।
  • उपन्यास- ठेठ हिन्दी ठाठ, प्रेमकान्ता, अधखिला फूल |
  • आलोचना- कबीर वचनावली, हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, विभूतिमती ब्रजभाषा |
  • धार्मिक- उपदेश कुसुम ।
  • अनूदित वेनिस का बाँका, विनोद बाटिका आदि |

काव्यगत विशेषताएं

हरिऔध जी की काव्य प्रतिभा बड़ी प्रभावपूर्ण थी। इनकी कविता का क्रमिक विकास हुआ। इनके काव्य पर भारतेन्दुकालीन एवं द्विवेदीकालीन प्रवृत्तियाँ स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं।

इन्होंने एक ओर ‘सामाजिक भावनाओं का चित्रण किया तो दूसरी ओर प्राचीन भक्ति-कालीन विषयों का।

यदि एक ओर उर्दू छंदों में रोचक रचनायें तो दूसरी ओर संस्कृत के वर्ण-वृत्तों में इनका ‘प्रिय प्रवास’ महाकाव्य इन्हें महाकवि के आसन पर विराजमान करता है।

दूसरा महाकाव्य “वैदेही बनवास” है। “प्रिय प्रवास” के नायक और नायिका, राधा और ‘वैदेही बनवास’ के सीता और राम हैं।

हरिऔध जी ने राधा और कृष्ण के चित्रण में प्राचीन कृष्ण तथा भक्ति-कालीन विचारधाराओं का अन्धानुकरण न करके मौलिकता का परिचय दिया है।

उनके सभी पात्र उदार एवं मानवीय गुणों से ओत-प्रोत हैं। की कुँजों और यमुना के तीर को पार करने वाले कृष्ण ‘प्रिय प्रवास’ में समाज सेवक और संग्रही के रूप में अवतरित हुए हैं तथा राधा केवल प्रेमिका न रहकर त्याग, साधना और विश्व प्रेम की मूर्ति बन गई है।

प्रियतम कृष्ण के चले जाने पर राधा न रोती है न बिलखती है, केवल इतना कह देती है-

प्यारे जीवें, जग-हित करें,

गेह आवें न आव,

समाज की सेवा के लिए राधा का यह अद्वितीय त्याग है। राधा का चरित्र चित्रण हरिऔध ने निम्न पंक्तियों मे किया है,-

वे छाया थी सुजन-शिर की,

शासिका थीं खलों की,

कंगालों की परम निधि थीं,

औषधी पीड़ितों की,

दीनों की थीं भागिनी,

जननी थीं अनाथाश्रितों की,

आराध्या थीं बज अवनि की

प्रेमिका विश्व की थीं।

लोक सेवक के रूप में कृष्ण के उद्गार

विपत्ति से रक्षण सर्वभूत का,

सहाय होना असहाय जीव का,

उबारना संकट से स्वजाति का

मनुष्य का सर्वप्रधान कृत्य है।

पवन को दूत बनाकर कृष्ण के पास भेजते समय भी लोकोपकार भुलाया नहीं गया

कोई क्लान्ता कृषक ललना खेत में जो दिखावे,

धीरे-धीरे परस उसकी क्लांतियों को मिटाना।

जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला,

छाया द्वारा सुखित करना, तप्त भूतांगना को ।

राधा के अन्तर की पीड़ा, मर्यादा तथा सहृदयता- तीनों की अभिव्यक्ति भी देखने योग्य है

कोई प्यारा कुसुम कुम्हला गेह में जो पड़ा हो,

तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसी को।

यों देना ए पवन ? बतला फूल-सी एक बाला,

प्लाना होकर कमल-पंग को चूमना चाहती है।

पुत्र वियोग में माँ के हृदय का भाव पूर्ण चित्र देखिए

छीना जावे लकुट न कभी, वृद्धता में किसी का,

ऊधो! कोई न बल-छल से, लाल ले ले किसी का।

प्रकृति चित्रण

कवि परम्परा निर्वाह के लिए जहाँ हरिऔध जी केवल वृक्षों की नामावली गिनाने लगते हैं, वहाँ उनका प्रकृति-चित्रण नीरस अवश्य हो उठता है, परन्तु प्रायः इनका प्रकृति-चित्रण संवेदनशील, स्वाभाविक एवं सरस होता है।

संध्या का एक चित्र देखिए-

दिवस का अवसान समीप था, गगन था कुछ लोहित हो चला।

तुरु-शिखा पर श्री जब राजती, कमलिनी-कुल-बल्लभ की प्रभा ।।

अचल के शिखरों पर जा चढ़ी, किरण पादप-शीश विहारिणी।

तरुणि बिम्ब तिरोहित हो चला गगन मण्डल मध्य शनैः शनैः ॥

भाषा

हरिऔध की भाषा इनके भावों की अनुगामिनी है। वे जब चाहते हैं तब भाषा के स्वरूप और गति को परिवर्तित कर देते हैं।

इनकी भाषा को चार रूपों में विभक्त किया जा सकता है–

  • बज भाषा
  • उर्दू शैली से प्रभावित भाषा
  • संस्कृत-निष्ठ भाषा
  • सरल भाषा

संस्कृत-निष्ठ भाषा में कहीं-कहीं क्रिया-पद भी हिन्दी के आते हैं।

रूपोद्यान प्रफुल्ल प्राय: कलिका केन्द्र बिम्बानना ।

तन्वंगी कल हासिनी सुरसिका क्रीड़ा कला पुत्तली ||

शोभा वारिधि की अमूल्य मणि-सी लावण्य लीलामयी।

श्री राधा मृदु-भाषिणी मृगहगी माधुर्य सन्मूर्ति थीं ॥

हरिऔध की भाषा सर्वत्र सरस, प्रभावपूर्ण और सुव्यवस्थित है।

संस्कृत-निष्ठ भाषा में संस्कृत का लालित्य है; तो बज भाषा में बज का माधुर्य उर्दू में चंचलता और रोचकता है, तो सरल बोली में सरलता।

लोकोक्तियों और मुहावरों का भी सरल प्रयोग किया गया है।

शैली

अपनी शैली के हरिऔध स्वयं जन्म-दाता थे। इनके बाद भी इनकी शैली के अनुसरण में कोई सक्षम नहीं हुआ।

कुल मिलाकर इन्होंने चार शैलियों में रचना की है

  • संस्कृत काव्य शैली – (प्रिय प्रवास)
  • रीतिकालीन शैली- (रस कलश) ।
  • उर्दू की मुहावरेदार शैली (चौपदों में)।
  • वर्तमान शैली – (वैदेही बनवास तथा पारिजात में) ।

रस, छन्द एवं अलंकार

महाकाव्यकार होने के नाते इनके काव्य में सभी रसों का पूर्ण परिपाक हुआ। फिर भी ये मूल रूप से करुण रस के कवि हैं।

“वैदेही बनवास” उनका करुण रस प्रधान काव्य है, इसी प्रकार ‘प्रिय प्रवास’ भी करुण रस एवं वात्सल्य में डूबा हुआ है।

श्रृंगार रस भी इनका अत्यन्त श्रेष्ठ एवं मौलिक रस है। ‘रस कलश’ शृंङ्गार रस में भीगा हुआ काव्य है। हरिऔध की छंद योजना बड़ी विस्तृत है ।

प्राचीन एवं नवीन छंदों पर इनका एकाधिकार था। दोहे, कवित्त, सवैये आदि लिखकर इन्होंने संस्कृत के छन्दों- मालिनी, मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, इन्द्रवज्रा, वंशस्थ आदि में अतुकान्त रचना की ।

उर्दू छन्दों का भी प्रयोग किया तथा आधुनिक छन्दों का भी।

अलंकार हरिऔध जी की भाषा को बहुत प्रिय थे, परन्तु उनका प्रयोग उचित समय पर ही आवश्यकतानुसार किया गया, है।

अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक, सन्देह, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का हरिऔध जी ने सफल, सार्थक एवं यथेष्ट प्रयोग किया है।

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अयोध्यासिंह उपाध्याय की रचनाएँ कौन-कौन सी हैं ?

इनकी रचनायें निम्नलिखित हैं-
महाकाव्य- प्रिय प्रवास, वैदेही
मुक्तक काव्य संग्रह- रस कलश, ग्रामगीत, परिजात, गद्य प्रसून, कर्मवीर, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, हरिऔध सतसई, प्रेमाम्बु वारिधि, प्रेमाम्बु प्रवाह आदि २७ काव्य ग्रन्थ ।
नाटक- प्रद्युम्न विजय, रुक्मिणी परिणय ।
उपन्यास- ठेठ हिन्दी ठाठ, प्रेमकान्ता, अधखिला फूल |
आलोचना- कबीर वचनावली, हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, विभूतिमती ब्रजभाषा |
धार्मिक- उपदेश कुसुम ।
अनूदित – वेनिस का बाँका, विनोद बाटिका आदि |

अयोध्यासिंह उपाध्याय की जीवन वृत्त क्या थी ?

जी का जन्म आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में सन् 1865 ई० हुआ था। इनके पिता का नाम श्री भोपालसिंह था, ये धनाढ्य ब्राह्मण थे।
संस्कृत, उर्दू, फारसी ज्ञान इन्होंने घर पर ही प्राप्त किया। इनकी शिक्षा-दीक्षा की देख-रेख इनके चाचा पं० ब्रह्मानन्द ने की थी।
मिडिल एवं नॉर्मल की परीक्षायें पास करके ये निजामाबाद मिडिल स्कूल में अध्यापक हो गये। पाँच वर्ष के पश्चात् ये कानूनगो हो गये।
सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त हो जाने पर ये काशी विश्वविद्यालय में हिन्दी अवैतनिक अध्यापक हो गये।
सन् 1941 ई० में ये विश्वविद्यालय छोड़कर घर लौट गये और आजमगढ़ में स्थायी रूप से रहने लगे।
हरिऔध बड़े करुण हृदय, परोपकारी मधुर भाषी थे। धन एवं यश की इन्हें अभिलाषा नहीं थी, फिर भी समाज से पूर्ण सम्मान मिला था।

अयोध्यासिंह उपाध्याय की भाषा क्या थी ?

इनकी भाषा को चार रूपों में विभक्त किया जा सकता है–
बज भाषा
उर्दू शैली से प्रभावित भाषा
संस्कृत-निष्ठ भाषा
सरल भाषा

अयोध्यासिंह उपाध्याय की शैली कैसी थी ?

अपनी शैली के हरिऔध स्वयं जन्म-दाता थे। इनके बाद भी इनकी शैली के अनुसरण में कोई सक्षम नहीं हुआ।
कुल मिलाकर इन्होंने चार शैलियों में रचना की है
संस्कृत काव्य शैली – (प्रिय प्रवास)
रीतिकालीन शैली- (रस कलश) ।
उर्दू की मुहावरेदार शैली (चौपदों में)।
वर्तमान शैली – (वैदेही बनवास तथा पारिजात में) ।

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WriterTheir Books
पी.वी.नरसिंह राव द.इंसाइडर 
श्रीदत्त रामफल इन्सेपेरेबल ह्यूमैनिटी 
डा.सादिक हुसैन तारीख-ए-मुजाहिद्दीन 
स्टेनले कल्पागे  मिशन टू इंडिया 
अरुणा शौरी इंडियन कंट्रोवार्सीज : एसोज ऑन रिलीजन 
मैडोना सेक्स 
ब्रिया लैपिंग्स एंड ऑफ़ एम्पायर 
मिखाइल गोर्वाचोव पीस हिज नो आल्टरनेटिव 
डेरेक वाल्कट एनदर लाइफ 
तस्लीमा नसरीन लज्जा,फोरेशी प्रेमिका 
गीता मेहता ए रिवर सूत्र 
वेद मेहता द स्टोलेन लाइट 
मदर टरेसा डाउन द मेमोरी लेन 
जगमोहन माई फ्रोजेन टर्बुलेंस इन कश्मीर 
एम.एफ.हुसैन संसद उपनिसद 
टी.एन.शेषन डीजेनेरेशन ऑफ़ इंडिया 
यु.आर.अन्नतमूर्ती संस्कार 
डा.सीताकांत महापात्र बियोंड द वार 
सलमान रूश्दी सैटेनिक वर्सेज , फ्यूरी 
सोनिया गांधी राजीव 
आंग सान सू की फ्रीडम फ्रॉम फीयर 
लाल कृष्ण आडवाणी माई कंट्री माई लाइफ 
कपिल देव स्ट्रेट फ्रॉम द हार्ट 
टॉम आल्टर द लांगेस्ट रेस 
रोमिला थापर सोमनाथ : द मेनी वायस ऑफ़ ए हिस्ट्री 
मनोहर जोशी स्पीकर्स डायरी 
अनीता देसाई फास्टिंग , फीस्टिंग 
टाइगर वुड्स हाऊ आई प्ले गोल्फ 
एपीजे अब्दुल कलाम इग्नाइटेड माइंडस 
मारग्रेट थैचर द पाथ टू पॉवर 
एम.एस.स्वामीनाथन टू ए हंगर फ्री वर्ल्ड 
एच.जी.वेल्स द इनभिजिबुल मैंन, द टाइम मशीन 
लेसी फासवर्थ इंडिया गेट 
अटल बिहारी बाजपेयी राजनीति की रपटीली राहें, संसद के तीन दशक 
अरुंधती राय द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग 
डेरेक  वाल्कट इन ए ग्रीन नाईट , ओमेरास 
एम.जे.अकबर इंडिया द सीज विदिन 
तारिक अली कैन पाकिस्तान सर्वाइव 
शशि अहलुवालिया नेताजी एंड गांधी 
डोमिनिक लैपियर द सिटी ऑफ़ जॉय 
विक्रम सेठ सूटेबल बॉय, गोल्डेन गेट 
एन.एस.सक्सेना इंडिया टुवर्ड्स एनार्की 
थॉमस कोनोली शिनडलर्स  लिस्ट 
नवीन चावला मदर टरेसा 
डा.हरिवंश राय  बच्चन दश द्वार से सोपान तक 
वी.पी.मलिक कारगिल : फ्रॉम सरप्राइज टू विक्ट्री 
जनरल के सुंदरजी ब्लाइंड मेन ऑफ़ हिन्दुस्तान 
पी.सी.अलेक्जेंडर द पेरिल्स ऑफ़ डेमोक्रेसी 
के.गोविन्दन  कुट्टी शेषन : ए इंटीमेंट स्टोरी 
मेनका गांधी हेड्स एंड टेल्स 
नेल्सन मंडेला लॉन्ग वाक टू फ्रीडम 
बोरिस येल्तसिन अगेंट्स द ग्रेन 
खालिद मोहम्मद टू बी और नॉट टू बी 
हिलेरी रॉथम क्लिंटन लिविंग हिस्ट्री 
तुषार गांधी लेट्स किल गांधी 
खुशवंत सिंह बुरियल एट सी 
झुम्पा लाहिड़ी द नेमसेक, इंटरप्रेटर ऑफ़ मेलोडीज 
व्लादिमीर पुतिन फर्स्ट पर्सन 
अमित चौधरी ए न्यू वर्ल्ड 
वी.एस.नायपाल हाफ ए लाइफ 
सतीश गुजराल ए ब्रुश विद लाइफ 
मेघनाद देसाई रीडिस्कवरी ऑफ़ इंडिया 
बेनजीर भुट्टो डॉटर ऑफ़ द ईस्ट 
स्टीफन हाकिंग द ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम 
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34 foreigner writer and their books

WriiterTheir books
एडम स्मिथ वेल्थ ऑफ़ नेशंस 
अलबर्ट आइन्स्टीन द वर्ल्ड एज आई सी इट 
आर्थर हेले एयरपोर्ट 
सैमुअल हर्ष प्राइस ऑफ़ पावर 
दांते डिवाइन कॉमेडी 
होमर ओडीसी, इलियड 
हेनरी मिलर ट्रोपिक ऑफ़ कैंसर 
न्यूटन प्रिन्सीपिया 
जॉन मिल्टन पैराडाइज लास्ट 
प्लेटो रिपब्लिक 
गुन्नार मिर्डल अगेंस्ट द स्ट्रीम, एशियन ड्रामा 
जॉर्ज आर्बिल फार्म हाउस, एनीमल पार्क 
शेक्सपियर कॉमेडी ऑफ़ एरर्स, एज यु लाइक  इट, ए मिड समर नाइट्स ड्रीम, हैमलेट, किंग लियर, ओथेलो 
जेड.ए.भुट्टो ग्रेट ट्रेजडी 
जार्ज बर्नार्ड शा मैंन एंड सुपर मैंन, एपिल कार्ट, आर्म्स एंड द मैंन, सीजर एंड क्लीयोपेट्रो 
हेराल्ड जे. लाश्की डाईलेमा ऑफ़ आवर टाइम, ग्रामर ऑफ़ पोलिटिक्स 
मैक्सिकम गोर्की मदर 
माओ-त्से-तुंगऑन कंट्राडिक्सन 
एडोल्फ हिटलर मीन केम्फ़ 
ए.एल.बाशम द वंडर दैट वाज इंडिया 
अरस्तू पॉलिटिक्स 
डायना मोस्की द लाइफ ऑफ़ कंट्रास्ट 
ई.एम.फोस्टर ए पैसेज टू इंडिया 
लियो टाल्सटाय वार एंड पीस 
हेराल्ड माइकमिलन राइजिंग द स्ट्राम 
कैथरीन मेयो मदर इंडिया 
जे.एम.बेरी हिन्दू सिविलाईजेसन 
रूसो द सोशल कांट्रैक्ट 
मैकियाबेली द प्रिंस, ऑन द आर्ट ऑफ़ वार 
चार्ल्स डार्विन डिसेंट ऑफ़ मैंन
चार्ल्स डिकिंग ए टेल टू सिटीज , पिकनिक पेपर्स , ओलिवर ट्विस्ट,डेविड कापरफील्ड 
एडवर्ड थामसन फेयरवेल टू इंडिया 
जे.के.गालब्रेथ द चाइना पैसेज , द नेचर ऑफ़ मास पावर्टी एम्बेसडर्स जनरल , दि ट्राम्फ 
विंसेट चर्चिल गैदरिंग स्टोर्म्स , हिस्ट्री ऑफ़ द सेकेण्ड वर्ल्ड वार 
एच.डब्लू. लागफेलो साम ऑफ़ लाइफ 
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FAMOUS WRITERS AND THEIR BOOKS { प्रसिद्ध लेखक व उनकी पुस्तकें }
60 FAMOUS WRITERS AND THEIR BOOKS { प्रसिद्ध लेखक व उनकी पुस्तकें }
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नमस्कार पाठकों आज हम आपके लिए एक नयी post लेकर आए हैं जिसका नाम है 60 FAMOUS WRITERS AND THEIR BOOKS { प्रसिद्ध लेखक व उनकी पुस्तकें }} उम्मीद करते हैं की ये post आपको बहुत पसंद आएगी |

60 FAMOUS WRITERS AND THEIR BOOKS { प्रसिद्ध लेखक व उनकी पुस्तकें } , ये एक ऐसा प्रकरण है जो हर जगह पूछा जाता है | प्रसिद्ध पुस्तक व उनके लेखक के विषय में 10 ,11 ,12 और GRADUATION में | उसके बाद यदि आप किसी भी परीक्षा की तैयारी करते हैं तो वहां भी पूछा जाता है |

ऐसा क्यूँ है ? की हम जल्दी याद नहीं कर पाते इन पुस्तकों व उनके लेखकों के नाम :-

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आजकल छोटे – बड़े दोनों जल्दी किसी चीज पर जादा देर तक ध्यान नही लगा पाते , ऐसा क्यूँ ? ऐसा इसलिए होता है | क्या ? हम दिमाग में कई चीजों को लेकर बैठे हुए होते हैं |और जादा चीजों को सोचने के कारण कैसे ? हम चीजों को रटना शुरू कर देते हैं ,और हमें पता तक नहीं चलता | और हम सोचते हैं की हम सही कर रहे है | पर यही सबसे गलत आदत होती है | क्यूंकि इससे आप चीजों को थोड़ी देरमें भूल जाएँगे |

किसी चीज को जल्दी कैसे याद करें ?

  • पढ़ाई पूरे FOCUS के साथ करें |
  • सारे अधूरे कार्यो को पहले पूरा कर लें | अन्यथा आपका ध्यान वहीं लगा रहेगा |
  • प्रकरण को पढ़े और उसे समझें अपनी भाषा में | उसे एक निश्चित समयांतराल में दोहराते रहें |

FAMOUS WRITERS AND THEIR BOOKS { प्रसिद्ध लेखक व उनकी पुस्तकें }
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60 FAMOUS WRITERS AND THEIR BOOKS { प्रसिद्ध लेखक व उनकी पुस्तकें }

विष्णू शर्मा  पंचतंत्र 
रसखान  रसखान 
शूद्रक  मृच्छकटिम (मिट्टी का खिलौना)
वात्सयायन  कामसूत्र 
जीमूतवाहन  दायभाग 
प्लिनी  नेचुरल हिस्ट्री 
दंडी  दशकुमारचरितम , अवंती सुन्दरी 
अश्वघोस  बुद्धचरितम 
बाणभट्ट  कादम्बरी 
अमर सिंह  अमरकोष 
फिरदौसी  शाहनामा 
सूरदास  साहित्यलहरी , सूरसागर 
गुलबदन बेगम  हुमायूँनामा 
भर्त्रीहरि  नीति-शतक,श्रृंगार-शतक,वैरन्य-शतक 
नीरद चन्द्र चौधरी  हिंदूइज्म, पैसेज टू इंग्लैण्ड, ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ एन अननोन इंडियन, कल्चर इन द वैनिटी बैग 
रविन्द्र नाथ टैगोर  चित्रांगदा, गीतांजली,विसर्जन,गार्डनर, हंग्री स्टोंस, गोरा, चंडालिका 
मैथिली शरण गुप्त  भारत-भारती 
अमृता प्रीतम  डेथ ऑफ़ ए सिटी, कागज़ ते कैनवास, फोर्टी नाइन डेज 
खुशवंत सिंह  इंदिरा गांधी रिटर्न्स, द कंपनी ऑफ़ वीमेन, दिल्ली 
विजय तेंदुलकर  सखाराम बाइंडर 
वेदव्यास  भगवदगीता, महाभारत 
इंदिरा गांधी  इन्टरनल इंडिया 
जयशंकर प्रसाद  कामायनी, आंसू,लहर 
अरविन्द घोष  लाइफ डिवाइन, ऐशेज ऑन  गीता 
सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला  अनामिका, परिमल 
महादेवी वर्मा  यामा 
नयनतारा सहगल  ए वाइस ऑफ़ फ्रीडम 
वी.एस.नायपाल  एरिया ऑफ़ डार्कनेस 
विशाखदत्त  मुद्रा राक्षस 
पाणिनी  अष्टाध्यायी 
डॉ.एस.राधाकृष्णन  इंडियन फिलोसफी 
विज्ञानेश्वर  मिताक्षरा 
कल्हण  राजतरंगिणी 
चाणक्य  अर्थशास्त्र 
कालिदास  कुमारसंभवम 
जयदेव  गीतगोविन्द 
भवभूति  मालती माधव, उत्तररामचरित 
मालिक मो.जायसी  पद्मावत 
अबुल फजल  आईने अकबरी, अकबर नामा 
कबीर दास  बीजक,सबद,रमैनी 
अलबरूनी  किताबुल हिन्द 
मुल्कराज आनंद  कुली,कांसफैशंस ऑफ़ ए लवर,द डेथ ऑफ़ ए हीरो 
कुलदीप नैयर  जजमेंट, डिस्टेंट नेवर्स, इंडिया द क्रिटिकल इयर्स, इन जेल, इंडिया आफ्टर नेहरू, वियोंड दि लाइंस (आत्मकथा)
काजी नजरूल इस्लाम  अग्निवाणी 
शिवानन्द  डिवाइन लाइफ 
प्रेमचंद  गोदान,गबन,कर्मभूमि,रंगभूमि 
बी.एम.कौल  अनटोल्ड स्टोरी,कंफेंडरेशन विद पकिस्तान 
अज्ञेय  कितनी नावों में कितनी बार 
सरोजिनी नायडू  गोल्डन थ्रेसहोल्ड, ब्रोकन विंग्स 
यशपाल  दादा कॉमरेड 
सुमित्रा नंदन पन्त ` पल्लव,चिदंबरा 
रामधारी सिंह दिनकर  कुरुक्षेत्र,उर्वशी 
आर.के.नारायण  द डार्क रूम, मालगुडी डेज,गाइड,माई डेज 
मोरारजी देसाई  नेचर क्योर 
देवकी नंदन खत्री  चन्द्र कांता 
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय   चरित्रहीन, देवदास 
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यूँ तो ये post हमलोग केवल ज्ञान के लिए करते है लेकिन इनमें से कुछ post ऐसी भी होती हैं जिसे हम अपने आप से थोडा बढ़ा चढ़ा कर लिखते है | अगर किसी भी प्रकार की post से सम्बंधित किसी भी प्रकार का संदेह या सुझाव आपके पास हों जो आप हमें देना चाहते हैं तो हमारे कांटेक्ट page में जाकर हमें जरुर बताएं |

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