स्टाफ के प्रभाव को सशक्त बनाने के उपाय | Ways to strengthen staff influence
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स्टाफ के प्रभाव को सशक्त बनाने के उपाय | Ways to strengthen staff influence
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स्टाफ के प्रभाव को सशक्त बनाने के उपाय 

स्टाफ अधिकारी का आदेश श्रृंखला में महत्वपूर्ण प्रभाव होते हुए भी कुछ हठी और सशक्त रेखाधिकारी उसकी राय की अवहेलना कर मनमानी निर्णय और कार्यवाही करने से नहीं चूकते। ऐसे अधिकारी स्टाफ की राय या तो बहुत विषम और उलझे हुए मामलों में लेते हैं या तब मान लेते हैं जब वह उनके अनुकूल होती है। अतः स्टाफ के विचारों और सुझावों को संगठन में वह महत्त्व नहीं मिल पाता जो उन्हें मिलना चाहिए। इसलिए स्टाफ के प्रभाव को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रेषित हैं।

(1) स्टाफ परामर्श की अनिवार्यता (Compulsory Staff Consultation) –

इस व्यवस्था में सटाफ का परामर्श लेना, कार्यवाही करने के पूर्व अनिवार्य कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, उपाध्यक्ष किसी कम्पनी के प्रसंविदे पर हस्ताक्षर तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि उसे कम्पनी के वकील ने पढ़कर अपनी स्वीकृति न दे दी हो। इसी प्रकार कम्पनी का कोई प्रतिनिधि सार्वजनिक भाषण तब तक नहीं दे सकता, जब तक उसे कम्पनी के जन सम्पर्क अधिकारी ने पढ़कर अनुमोदित न कर दिया हो। वस्तुतः स्टाफ परामर्श अनिवार्यता के अन्तर्गत किसी अधिकारी को अपने विवेक के अनुसार कार्य करने से रोका नहीं जाता, बल्कि उसे कुछ समय के लिए रूककर – एक दूसरे दृष्टिकोण से एक विशेषज्ञ के विचारों को सुनने के लिए कहा जाता है। यह अनिवार्यता परस्पर विचार-विमर्श का अवसर प्रदान करती है और रेखाधिकारी की अबाध स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाती है।

इसी के समानान्तर एक विधि यह भी है कि स्टाफ अधिकारियों से रेखा विभागों के सम्बन्ध में सामयिक रिपोर्ट किसी वरिष्ठ अधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत करने को कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कम्पनी का अध्यक्ष आन्तरिक अंकेक्षक से लेखाविभाग की कार्यविधि के सम्बन्ध में सामयिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कह सकता है। यह अनिवार्यता स्टाफ को बड़े धर्मसंकट में डाल देती है, क्योंकि बहुत बार वह निम्नस्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों की कमियों और त्रुटियों को पकड़ लेता है, किन्तु, वरिष्ठ अधिकारी से छिपाना चाहता है। यदि वह रिपोर्ट करता है तो उसे इस बात का भय उत्पन्न हो जाता है कि दोबारा आने पर लोग उसका स्वागत नहीं करेंगे और सम्भव है कि किसी जंजाल में फंसाकर उससे प्रतिशोध लें या उसे किसी मुसीबत में डाल दें। फिर रिपोर्ट से उसके किसी मित्र सहयोगी का स्थाईरूप से अहित भी हो सकता है। अतः वह रिपोर्ट करने में संकोच करता है। किन्तु दूसरी और रिपोर्ट न करके वह कम्पनी के हित और नियम के विरोध में कार्य करने का अपना उत्तरदायित्व भी बढ़ाता है। फिर वह अपना निरोधात्मक प्रभाव खो बैठता है और कर्मचारी उसकी तथा कार्य निष्पादन की अवहेलना करने लगते हैं। ऐसी धर्मसंकट की स्थिति से निकलने का एक मात्र रास्ता यही है कि स्टाफ अधिकारी कर्मचारी की भूलों और त्रुटियों को पकड़कर अपने ठोस सुझाव और विशिष्ट सम्मतियों द्वारा, कार्यरत कर्मचारियों से ही उन्हें दूर करा देना चाहिए। इसके लिए उसे अपनी सहानुभूति एवं सक्रिय सहयोग भी प्रदान करना चाहिए। इस प्रकार, न तो वह कम्पनी का, और न ही अपने मित्र सहयोगी का अहित करेगा और अपना सम्मान और प्रभाव भी संगठन में बनाए रख सकेगा।

(2) संयुक्त या समानान्तर अधिकार प्रदान करना (Granting Concurrent Authority) –

स्टाफ अधिकारी की स्थिति को सशक्त बनाने के लिए कभी-कभी उसे भी संयुक्त, समानान्तर या समधिकारी अधिकार प्रदान कर दिया जाता है। इससे कोई भी कार्यवाही बिना उसकी सहमति के सम्भव नहीं होती। ऐसे संयुक्त अधिकार का प्रयोग गुणवत्ता नियंत्रण के क्षेत्र में बहुत प्रचलित है। जब तक गुणवत्ता निरीक्षक कच्चे या अर्द्धनिर्मित माल की गुणवत्ता को स्वीकृति प्रदान नहीं कर देता, माल को आगे प्रेषित नहीं किया जा सकता। किसी प्रसंविदे पर उपाध्यक्ष के साथ कम्पनी के वकील के हस्ताक्षर, किसी कर्मचारी को रखने के पूर्व विभागाध्यक्ष के साथ सेविवर्गीय अबन्धक की स्वीकृति, किसी क्रय अधिकारी द्वारा पूँजीगत व्यय करने के पूर्व वित्ताधिकारी की स्वीकृति, संयुक्त या समानान्तर अधिकार के अन्य उदाहरण हैं। इस व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह रेखाधिकारी की अबाध स्वतन्त्रता पर अंकुश लगाकर, उसे बिना सोचे-विचारे कार्यवाही करने से रोकती है। फिर वरिष्ठ अधिकारी रेखा और स्टाफ दोनों ही अधिकारियों को उत्तरदायी ठहरा सकता है। किन्तु इस व्यवस्था का प्रथम दोष यह है कि इसमें उत्तरदायित्व के खिसकाने का भय उत्पन्न हो जाता है। दूसरे, इसमें संयुक्त अधिकार के कारण विलम्ब और अवरोध का भय भी रहता है। इसलिए संयुक्त अधिकार केवल तभी प्रदान किया जाना चाहिए जबकि स्टाफ की राय बहुत ही महत्वपूर्ण हो। संयुक्त अधिकार का चलन सरकारी विभागों में बहुत है। व्यावयसायिक संगठनों में इसका प्रयोग बहुत ही सीमित है।

(3) क्रियात्मक अधिकार प्रदान करना (Granting Functional Authority) –

आदेश श्रृंखला में स्टाफ के प्रभाव को बढ़ाने का सबसे अधिक औपचारिक तरीका स्टाफ अधिकारी को क्रियात्मक अधिकार प्रदान कर देना है। क्रियात्मक अधिकार के प्रदान करने से तात्पर्य यह है कि स्टाफ अधिकारी अपने नाम से रेखाधिकारियों और कर्मचारियों को सीधे आदेश और निद्रेश दे सकता है और उसे फिर अपने सुझावों की वरिष्ठ रेखाधिकारियों के पास भेजने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके निर्देशों में फिर वही शक्ति हो जाती है जो कि एक आदेश श्रृंखला के वरिष्ठ अधिकारी के आदेश में होती है। लेकिन उसे यह अधिकार केवल अपने विशिष्ट कार्य क्षेत्र में ही प्राप्त होता है। किसी भी स्थिति में आदेश श्रृंखला के कर्मचारी और अधिकारी न तो उसके नियंत्रण में आ जाते हैं और न ही उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं। इसलिए उसे बिना दाँत का अधिकारी (Authority without Teeth) कहा जाता है, क्योंकि वह कोई कार्यवाही अधीनस्थ के विरूद्ध सीधे नहीं कर सकता। इस व्यवस्था में स्टाफ के प्रभाव में वृद्धि के साथ-साथ समय की बचत भी होती है। यह अधिकार स्टाफ को तभी दिया जाता है जब उसे किसी क्षेत्र में विशिष्ट तकनीकी ज्ञान और अनुभव प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, सेविवर्गीय प्रबन्धक को कर्मचारियों के चयन, प्रशिक्षण और सुरक्षा के सम्बन्ध में, या चिकित्सा अधिकारी को शारीरिक परीक्षा के सम्बन्ध में, या वित्ताधिकारी को खर्च के सम्बन्धम क्रियात्मक अधिकार दिया जा सकता है और अपने आदेश से वे सभी विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों को उस क्षेत्र में बाध्य कर सकते हैं।

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