विभिन्न स्थानों के नामों को लेने के लिए उनकी विधि एवं उनमें बरती जाने वाली सावधानियाँ
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विभिन्न स्थानों के नामों को लेने के लिए उनकी विधि एवं उनमें बरती जाने वाली सावधानियाँ
विभिन्न स्थानों के नामों को लेने के लिए उनकी विधि एवं उनमें बरती जाने वाली सावधानियाँ
विभिन्न स्थानों के नामों को लेने के लिए उनकी विधि एवं उनमें बरती जाने वाली सावधानियाँ
विभिन्न स्थानों के नामों को लेने के लिए उनकी विधि एवं उनमें बरती जाने वाली सावधानियाँ
विभिन्न स्थानों के नामों को लेने के लिए उनकी विधि एवं उनमें बरती जाने वाली सावधानियों का वर्णन कीजिये।

परिधान की सिलाई करने से पहले शरीर के विभिन्न भागों की नाप लेने के लिये निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना जरूरी होता है ये निम्न हैं-

कमर की नाप –

कमर की नाप, कमर वाले स्थान से ली जाती है। इस नाप को लेते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इसमें भी फीते को पकड़ने और पीछे की ओर घुमाकर आगे लायें तथा फिर तीन अंगुली भीतर डालकर अंक नोट करने का काम किया जाता है। याद रहे कि कमर के सबसे अधिक सकरे भाग से लेनी चाहिए। इसके साथ-साथ फीता ठीक से चारों ओर घूमा हो तथा सीधा हो।

गले की माप –

गले की माप प्रायः पुरुषों और बच्चों के लिए आवश्यक है क्योंकि महिलाओं में गले की नाप फैशन के आधार पर बदलती रहती है। इस नाप में व्यक्ति के अनुसार ही टेप के अंक पढ़े जाते हैं। इस नाप को लेने के लिए बायें हाथ में फीता के सिरे को लेकर गले में आगे की तरफ मध्य बिन्दु पर रखना चाहिए। शेष फीते को ग्रीवा के पीछे घुमाते हुए उस स्थान तक ले जाना चाहिए।

वक्ष की नाप –

इस नाप को बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिए। शरीर के ऊपरी भाग में पहने जाने वाले कपड़े की आवश्यकतानुसार इस नाप में पड़ती है। यह नाप वक्ष पर उस स्थान से लेनी चाहिए जहाँ पर सबसे चौड़ा और उभरा भाग होता है। इसमें बायें हाथ से टेप को वक्ष पर व्यक्ति के दाहिने हाथ की ओर एक स्थान पर रखना चाहिए शेष फीते को पीठ की तरफ घुमाकर व्यक्ति की बायीं बगल से होते हुए उस स्थान तक लाना चाहिए जहाँ पर बायें हाथ में फीते का सिरा हो। परन्तु वस्त्र वक्ष पर कसने न पाये और श्वास-प्रश्वास क्रिया स्वतंत्र रूप से हो सके, इसके लिए नाप को थोड़ा रखना अनिवार्य है।

पीठ की नाप-

पीठ की नाप लेते समय गले के पीछे के भाग के ठीक मध्य बिन्दु से जहाँ गले की गाँठ होती है वहाँ से कमर तक लिया जाता है। कुछ वस्त्र ऐसे भी होते हैं जिनमें पीठ की नाप गले-कंधे से जोड़ के पास से कमर तक ली जाती है।

मोहरी की नाप –

मोहरी की नाप कमीज कुर्ते, बुशर्ट, ब्लाउज आदि में ली जाती है। मोहरी की नाप लेते समय व्यक्ति जितनी आस्तीन रखना चाहता है उसी आधार पर नाप ली जाती है क्योंकि कोई पूरी आस्तीन कोई आधी तो कोई आस्तीन रखना ही नहीं चाहता । व्यक्ति बांह कितनी लम्बी चाहता है उसकी इच्छा अनुसार नाप लेना अच्छा रहता है। साथ ही दर्जी को मोहरी पर आस्तीन कितनी ढीली या कितनी कसी रहेग इसके सिलवाने वाले व्यक्ति की इच्छा के अनुसार ही रखना चाहिए।

नितंब की नाप –

यह नाप नितंब के उस सिरे से शुरू की जाती है जहाँ पर नितंब चौड़ा एवं उभरा हो। इस नाप में सबसे ध्यान देने वाली यह बात है कि फीता नाप लेते समय एक सा सीधा रहे। फीते को आगे लाकर इसके अंकों को तीन अंगुली फीतर कर नोट करना चाहिए। इसके वक्ष और कमर की तरह फीते के अंकों को बहुत ध्यान से पढ़ना चाहिए नहीं तो फिटिंग उचित ढंग से नहीं आ पायेगी।

क्रास बैक की नाप –

यह नाप एक मोढ़े से दूसरे मोढ़े तक गले की पिछली गाँठ से लगभग 5 इंच नीचे के भाग से ली जाती है। इसमें जिसकी नाप लेनी हो उस व्यक्ति को दोनों हाथों को आगे की तरफ मोड़कर देना चाहिए जिससे कि पीठ को ऊपरी चौड़ाई को आराम से नापा जा सके। यदि बाहें ढीली रह जायेंगी तो परिधान पीछे की ओर थोड़ा सा ढीला एवं तना रह जायेगा जो कि पहनने पर भद्दा दिखाई देगा।

क्रास की नाप –

यह नाप वक्ष के केवल सामने वाले भाग की नाप का किन्हीं वस्त्रों के निर्माण में काम पड़ सकता है। यह सामने से एक मोढ़े से दूसरे मोढ़े तक लिया जाता है।

कंधे से नितंब की नाप-

इस पर भी नाप के लिए कुछ अन्य वस्त्रों की आवश्यकता पड़ती हैं। खासकर कमीज और बुशर्ट में इस नाप की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु यह नाप फैशन के ऊपर ऊपरी तरह से निर्भर होती है। इसके लिये फीते के सिरे को कंधे एवं ग्रीवा के संधि स्थल पर रखना आवश्यक होता है। इसमें वक्ष के उभार पर से लेते हुए नितंब के उस भाग तक लाना चाहिए जहाँ तक लम्बाई का वस्त्र पहनना हो ।

पूरी लम्बाई की नाप –

इनसे चूँकि विभिन्न वस्त्रों की लम्बाई विभिन्न प्रकार की होती है अतः वस्त्र की लम्बाई नापने के लिए यदि ऊपर का वस्त्र है तो कंधे एवं ग्रीवा स्थल पर फीता का पहला सिरा रखना होता है और यदि नीचे पहनने वाला वस्त्र है तो कमर पर रखना चाहिए। इसके बाद फीते की लम्बाई के अनुसार नीचे तक लाना चाहिए। ऊपर के वस्त्रों के लिए फीते को वक्ष के अन्य उभार से निकालना चाहिए।

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