निरीक्षण विधि (Observation Method) : गुण एंव दोष
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निरीक्षण विधि (Observation Method) : गुण एंव दोष

निरीक्षण विधि (Observation Method) 

निरीक्षण विधि भी आत्मनिरीक्षण विधि जितनी ही पुरानी (प्राचीन) है। इस विधि को बहिर्मुखी अवलोकन, बहिर्दर्शन विधि, प्राकृतिक अवलोकन या अनियन्त्रित अवलोकन के नाम से भी जाना जाता है।

इस अवलोकन के दो भाग होते हैं – नियन्त्रित अवलोकन (Controlled observation) तथा अनियन्त्रित अवलोकन (Uncontrolled observation) । नियन्त्रित अवस्थाओं में अवलोकन, नियन्त्रित अवलोकन कहलाता है। इसका दूसरा नाम प्रयोगात्मक अवलोकन भी है। अनियंत्रित अवलोकन, प्राकृतिक अवलोकन कहलाता है।

निरीक्षण, बहिर्दर्शन अथवा अवलोकन का शाब्दिक अर्थ है – किसी वस्तु या क्रिया को देखना मानव-व्यवहार के अध्ययन के सन्दर्भ में इसका अर्थ यह है कि मानव के बाह्य व्यवहार को देखना-समझना और उससे सम्बन्धित तथ्यों का पता लगाना। कॉलसेनिक के अनुसार “यह निरीक्षण दो रूपों में किया जाता है- एक औपचारिक रूप में (Formal Form) और दूसरा अनौपचारिक रूप में (Informal Form)” |

1) औपचारिक निरीक्षण (Formal Form) – औपचारिक निरीक्षण, वह निरीक्षण है जिसमें निरीक्षणकर्ता. (निरीक्षण करने वाला) विषयी (Subject) के व्यवहार का निरीक्षण नियंत्रित परिस्थितियों में योजनाबद्ध तरीके से सम्पादित करता है। इस निरीक्षण में विषयी को यह ज्ञात रहता है कि उसके व्यवहार का निरीक्षण किया जा रहा है। अतः इस स्थिति में विषयी अधिकतर कृत्रिम व्यवहार करते हैं।

2) अनौपचारिक निरीक्षण (Informal Form) – यह वह निरीक्षण है जिसमें निरीक्षणकर्ता, विषयी के व्यवहार का निरीक्षण बगैर किसी पूर्व निश्चित योजना के. अनियन्त्रित परिस्थियों में करता है। अतः इस निरीक्षण में व्यक्ति को यह ज्ञात नहीं होता है कि उसके व्यवहार का अवलोकन किया जा रहा है। अतः विषयी स्वाभाविक व्यवहार करता है। अतः उसके द्वारा कृत्रिम (बनावटी) व्यवहार करने का कोई प्रश्न नही उठता है।

निरीक्षण विधि के गुण (Merits of Observation Method)

यदि इस विधि का प्रयोग हम सावधानीपूर्वक करते हैं तो यह एक अत्यन्त अच्छी विधि साबित होती है।

1) वस्तुनिष्ठ तथा वैज्ञानिक (Objective and Scientific) – निरीक्षण विधि, आत्मनिरीक्षण विधि से ज्यादा वस्तुनिष्ठ तथा वैज्ञानिक है।

2) विश्वसनीय तथा प्रमाणिक (Reliable and Valid) – यह एक योजनाबद्ध विधि है, यह अन्तर्दर्शन विधि की तुलना में अधिक वस्तुनिष्ठ, वैध तथा विश्वसनीय है।

3) मितव्ययी (Economical) – निरीक्षण विधि अत्यंत संयमी विधि है क्योंकि इसमें प्रयोगशाला के कीमती उपकरणों की आवश्यकता ही नहीं होती है।

4) लचीली (Flexible) – यह विधि अत्यंत लचीली विधियों की श्रेणी में गिनी जाती है तथा इस विधि का प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में तथ्यों को संग्रहित करने के लिए करते हैं।

5) विभिन्न व्यक्तियों का व्यवहार (Behaviour of Different Individuals) – यह विधि व्यक्ति विशेष तथा व्यक्ति समूह, दोनों के ही व्यवहारों का अध्ययन करने में सक्षम है। इस विधि के माध्यम से व्यक्ति विशेष तथा व्यक्ति समूह के व्यवहारों का तुलनात्मक अध्ययन भी किया जा सकता है। साथ ही साथ इससे बच्चों, असाधारण मनुष्यों और जानवरों का व्यवहार देखने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

6) व्यक्ति तथा समूह का व्यवहार (Behaviour of Individual and Group) – इस विधि के द्वारा व्यक्ति तथा समूह के व्यवहार का निरीक्षण किया जा सकता है।

7) प्रयोगात्मक विधि के लिए स्थान (Ground for Experimental Method) – यह विधि प्रयोगात्मक विधि के लिए आधार प्रस्तुत करती है। क्योंकि प्रयोग कठोर, नियन्त्रित या प्रयोगशाला की परिस्थितियों में बहिर्मुखी अवलोकन के अलावा और कुछ भी नहीं होता।

8) शिक्षा स्थितियों में लाभदायक (Useful in Educational Situations) – इस विधि की मदद से बच्चे के कमरे में पढ़ाई की निगरानी आसानी से की जा सकती है। समस्यात्मक बालकों, पिछड़े बालकों तथा प्रतिभाशाली बालकों का व्यवहार इस विधि के माध्यम से देखा जा सकता है तथा शिक्षा का परिणाम निकाला जा सकता है।

निरीक्षण विधि के दोष (Demerits of Observation Method)

इस विधि में अनेकोनेक गुण होने के बावजूद इस विधि की अपनी कुछ सीमाएँ या दोष भी हैं। जो निम्न हैं-

1) अप्रशिक्षित निरीक्षक (Untrained Observer)- इस विधि में सही अवलोकनार्थ हेतु प्रशिक्षित दर्शकों का मिलना कठिन है और अनट्रेंड दर्शक व्यर्थ तथा अनुचित तथ्यों को एकत्रित कर सकते हैं। अतः इस विधि का प्रयोग प्रशिक्षित एवं अनुभवी व्यक्ति ही कर सकते हैं।

2) अन्तर्मुखी ( Introvert ) – यह विधि एक प्रकार से अन्तर्मुखी ही है। क्योंकि कभी-कभी दर्शक नर्म हो सकता है अर्थात् वह विषयी को रियायत दे देता है जबकि कभी-कभी वह कठोर हो जाता है और विषयी को किसी प्रकार की रियायत प्रदान नहीं कर सकता है।

3) बनावटीपन (Artificiality) – औपचारिक निरीक्षण में चूँकि विषयी को यह ज्ञात होता है कि उसके व्यवहार का निरीक्षण किया जा रहा है अतः वह सावधान (सजग) हो जाता है और कृत्रिम व्यवहार करने लग जाता है। उस समय यह विधि अर्थहीन हो जाती है। इसके अलावा कई बार व्यवहार में स्वतः ही बनावटीपन आ जाता है, जैसे- स्त्रियों के व्यवहार में अजनबी को देखकर स्वतः बनावटीपन आ जाता है।

4) व्यवहार घटित होने के लिए लम्बी प्रतीक्षा (Long Wait for Re-occurrence of Behaviour)— इस विधि में कई बार अमुक घटना के घटने के बाद उस घटना के पुनः घटने के लिए लम्बा इन्तजार करना पड़ता है, जैसे- यदि किसी बच्चे के क्रोध के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए हमें उसके पुनः क्रोध में आने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

5) व्यक्तिगत समस्याएँ (Personal Problems) – व्यक्ति की कुछ समस्याएँ तथा अनुभव ऐसे भी होते हैं जिन्हें देखा नहीं जा सकता है, जैसे लिंग अनुभव ।

6) आन्तरिक व्यवहार (Internal Behaviour) – अवलोकन द्वारा किसी मनुष्य के आन्तरिक व्यवहार का पता नहीं कर सकते हैं क्योंकि किसी भी व्यक्ति के आन्तरिक व्यवहार को देखा नहीं जा सकता है।

7) अचेतन मन (Unconscious Mind) – किसी भी व्यक्ति के अचेतन मन को हम निरीक्षण विधि द्वारा नहीं जान सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

यद्यपि प्राकृतिक अवलोकन की विधियों में बहुत सी कमियाँ हैं परन्तु आज भी इसका प्रयोग शिशु-मनोविज्ञान तथा शिक्षा मनोविज्ञान में काफी होता है।

दूसरी तरफ निरीक्षण विधि काफी सीमा तक वस्तुनिष्ठ, वैध तथा विश्वसनीय भी है, बशर्ते कि इस विधि में निरीक्षण क्रमबद्ध रूप में सावधानीपूर्वक किया जाए, तथा प्राप्त तथ्यों को सावधानीपूर्वक लिखा जाए और आँकड़ों का वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण करें।

यदि निरीक्षणकर्ता विषयी के व्यवहार को विडियों द्वारा रिकॉर्ड करके उसका धैर्यपूर्वक निरीक्षण करे तो यह विधि और अधिक उपयोगी साबित होगी।

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