जीवन – इतिहास विधि (Case History / Study Method) : गुण एंव दोष
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जीवन - इतिहास विधि (Case History / Study Method) : गुण एंव दोष
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जीवन - इतिहास विधि (Case History / Study Method) : गुण एंव दोष
जीवन – इतिहास विधि (Case History / Study Method) : गुण एंव दोष

जीवन-इतिहास विधि (Case History / Study Method)

किसी भी बालक व्यक्ति या प्रौढ़ की विलक्षणताओं अथवा सामान्य व्यवहार के कारणों का पता लगाने हेतु और उसके व्यवहार को उचित दिशा प्रदान करने हेतु हम इस विधि का प्रयोग करते हैं।

क्रो एवं क्रो के अनुसार, “जीवन इतिहास- विधि का मुख्य उद्देश्य किसी कारण का निदान करना है।”

इस विधि को नैदानिक विधि भी कहते है।

ट्रेक्सलर के अनुसार, “व्यक्ति अध्ययन एक व्यक्ति का विस्तृत अध्ययन है जिसका प्रयोग अध्ययन किए जाने वाले व्यक्ति के समायोजन में सुधार करना है।”

प्रायः देखा जाता है कि विभिन्न प्रकार के व्यक्ति (अपराधी, मानसिक रोगी, झगड़ालू, समाज विरोधी कार्य, करने वाला आदि) विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के सम्पर्क में आते हैं। ऐसे व्यक्तियों के अवांछनीय व्यवहारों के कारण एवं मानसिक असंतुलन की स्थिति के वास्तविक कारणों का पता लगाने के लिए मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के पूर्व इतिहास की विभिन्न कड़ियों को आपस में जोड़ता है।

इसके लिए वह विभिन्न लोगों से (विषयी के माता-पिता, शिक्षकों, सम्बंधियों, पड़ोसियों आदि) सम्पर्क कर पूछताछ करता है, और व्यक्ति से सम्बन्धित कई तथ्यों का संकलन करता है तथा इन्ही तथ्यों के द्वारा उन कारणों का पता लगाता है जिसके कारण विषयी मनोविकारों का शिकार बनकर अनुचित व्यवहार करने लगता है। इस प्रकार इस विधि का उद्देश्य व्यक्ति के किसी विशिष्ट व्यवहार के कारण की खोज करना है।

जीवन- इतिहास विधि के गुण (Merits of Case History / Study Method)

इस विधि के निम्न गुण हैं-

1) निदानात्मक अध्ययन की सर्वोत्तम विधि – इस विधि के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार विशेष के विभिन्न कारणों की विस्तृत एवं बिल्कुल सही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अतः यह निदानात्मक अध्ययन की सर्वोत्तम विधि है।

2) वैध एवं विश्वसनीय – इस विधि में अत्यंत व्यापक तरीके से विभिन्न स्रोतों के माध्यम से तथ्यों का संकलन किया जाता है। अतः इस विधि के द्वारा प्राप्त निष्कर्ष वैध एवं विश्वसनीय होते हैं।

3) विकासात्मक दोषों का पता लगाने में – विभिन्न अवस्थाओं में विकास की विशेषताओं को जानने के लिए विकासात्मक विधि अति उपयोगी है जबकि विकासात्मक दोषों को ज्ञात करने के लिए यह विधि अत्यंत उपयोगी है।

4) समय और आकलन – जीवन इतिहास विधि उचित समय आकलन कौशल का विकास करती है। यह मानव इतिहास के विभिन्न पीरियड को समय के संदर्भ में स्थापित करके और महत्वपूर्ण घटनाओं के समय-सीमाओं को समझकर उचित समय अनुसंधान करने में मदद करती है।

ये गुण जीवन इतिहास विधि के महत्वपूर्ण तत्व हैं जो उच्चतम स्तर के इतिहासिक अनुसंधान को संभव बनाते हैं। इन गुणों का अध्ययन करके हम मानव सभ्यता की समझ में आगे बढ़ सकते हैं और गतिविधियों के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझ सकते हैं।

जीवन-इतिहास विधि के दोष (Demerits of Case History / Study Method)

1) संकट के लिए अनुकरण: कई बार जीवन-इतिहास विधि में एक इतिहासकार या विद्वान किसी विशेष संकट की तुलना में अनुकरण कर सकते हैं, जिससे पूरी तथ्यात्मकता खतरे में पड़ सकती है। ऐसे मामलों में जीवन-इतिहास विधि निष्पक्षता और तथ्यों की विश्वसनीयता को खो सकती है।

2) पक्षपात: कई बार जीवन-इतिहास विधि में पक्षपात और अयोग्य विश्लेषण के दोष हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, विश्लेषण और अद्यावधिकार के दौरान विभाजन और भ्रांति की स्थिति पैदा हो सकती है। इससे सामाजिक एवं सांस्कृतिक विषयों पर गलत प्रभाव पड़ सकता है।

3) संकेतों के बदलते अर्थ: कई बार जीवन-इतिहास विधि में संकेतों और प्रमाणों के अर्थ में बदलाव हो सकता है, जो सही समय की गणना करने में कठिनाई पैदा कर सकता है। इसके कारण गलत तारीखों, संदर्भों, और आधारों का उपयोग किया जा सकता है, जिससे गवाही और समय-सीमाओं में गलतियाँ हो सकती हैं।

4) विनश्वरता: जीवन-इतिहास विधि के दोषों में एक विनश्वरता हो सकती है, जिसमें अन्य देशों, समाजों, या समुदायों की इतिहास को अनदेखा किया जाता है और केवल अपने संक्षिप्त देशियों को प्रमुखता दी जाती है। इससे एक अद्यायवत और निष्ठुर दृष्टिकोण विकसित हो सकता है।

ये दोष जीवन-इतिहास विधि में उठ सकते हैं, और यह आवश्यक है कि इतिहासकारों, अध्यापकों, और अन्य अध्ययनकर्ताओं को इन दोषों से बचने के लिए सतर्क रहना चाहिए और विश्वसनीय और प्रमाणित नतीजों की प्राप्ति के लिए उचित प्रयास करने चाहिए।

अतः हम कह सकते हैं कि यह विधि पिछड़े, अपराधी एवं अत्यंत उद्दण्ड बालकों के व्यवहार के कारणों का पता लगाने, उनका अध्ययन करने एवं उनका समाधान खोजने में अत्यंत सहायक सिद्ध होती है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका अपना अलग महत्व है।

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