ऊन की भौतिक एवं रासायनिक विशेषतायें
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ऊन की विशेषताएं

ऊन की विशेषताओं को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। ये है भौतिक एवं रासायनिक विशेषतायें, जिनका वर्णन निम्नवर किया जा सकता है-

भौतिक विशेषतायें (Physical Properties )

1. संगठन (Composition )- इसमें प्रोटीन (कैराटिन प्रोटीन Karatin ) गन्धक (Sulphur), कार्बन 49% ऑक्सीजन 25% नाइट्रोजन 15% हाइड्रोजन 7% पाई जाती है। प्रोटीन युक्त रेशा है।

2. सूक्ष्मदर्शी रचना (Microscopic Structure )- अनुप्रस्थ काट (Transversally) यह कई कोषों का बना दिखाई देता है।

अनुदैर्ध्य काट ( Longitudinally )- इसके रेशे दोनों सिरों पर नुकीले तथा मध्य में थोड़े गोलाकार दिखाई देते हैं। ऊन रेशे में तीन पत्ते (Layer) होती है-

1. बाह्य सुरक्षात्मक पत ( Outer Protective Layer )- इस ऊपरी पर्त में कई छोटी-छोटी शल्क Scale) होते हैं। ये शल्क 1000-4000 होते हैं। ये एक-दूगी के ऊपर चढ़े रहते हैं। शल्कों की अधिकता ऊन की उच्च श्रेणी की पहचान है। सूक्ष्मदर्शी पत्र में देखने पर यह पर्त कटीली, एक-दूसरे में फंसी दिखाई देती है। इन शल्कों के कारण ही ऊनी धागा एक-दूसरे के ऊपर बट जाता है। इन शल्कों को लहरे या Crimps भी कहते हैं। ये शल्क ऊनी रेशों की दोहरी रचना के कारण होते हैं।

2. कार्टेक्स ( Cortex) – ऊनी रेशा कितना मजबूत होगा, कितना लचीलापन होगा यह इसी मध्य पर्त पर निर्भर करता है। यह पर्त ऊनी रेशों का मुख्य भाग होता है। इसी पर्त में रंग वर्णक (Colour Pigments) पाये जाते हैं।

3. मैडयूला (Medulla )- यह पर्त हर ऊनी रेशों में नहीं पाई जाती पतली ऊन में यह पर्त कम विकसित होती है जबकि मोटी ऊन में यह पर्त मोटी होती है। यह पर्त नमी सोखने का काम करती है। रेशों की रंगाई में भी सहायक होती है।

4. लम्बाई – 1-3 तक लम्बाई होती है। सामान्यतः ऊनी रेशे अधिक लम्बे नहीं होते हैं।

5. मजबूती- प्राकृतिक तन्तुओं में सबसे कमजोर तन्तु है। गीली अवस्था में अधिक कमजोर हो जाता है इसलिए इसके लिये उन धोने की विधियों का प्रयोग नहीं करते जिसमें अधिक रगड़ एवं दबाव का प्रयोग हो। सूखी अवस्था में पुनः शक्ति प्राप्त कर लेता है।

6. नमी सोखने की क्षमता (Absorbency )- ये वातावरण से 30% नमी सोखते है। कुछ गीला होने पर भी बाहर से बिना छुए गीलेपन का पता नहीं चलता। आर्द्रताको शीघ्र सोखता है सूखता धीरे-धीरे है।

7. ताप सावहकता (Heat Conductivity )- यह ताप का कुचालक है क्योंकि इसमें प्रोटीन उपस्थित है। ऊनी वस्त्र गर्म रहते हैं क्योंकि इनके रोएँ में बीच में जो खाली जगह होती है वहाँ वायु प्रवेश कर वायुमण्डल की अपेक्षा अधिक गरम हो जाती है।

8. प्रत्यास्थता (Elasticity)- ऊनी रेशों से बना ऊन खींचने पर अपनी वास्तविक मौलिक लम्बाई से 30% अधिक ‘खिंच जाता है इसलिए नाप का न होने पर भी ऊनी वस्त्र हर एक के शरीर पर फिट हो जाते हैं।

9. प्रतिस्कंदता (Resilency )- ऊन के रेशों पर दबाव डालकर हटाने पर वे पुनः अपनी पूर्व अवस्था में आ जाते हैं।

10. सिलवट प्रतिरोधकता ( Crease Resistency )- ऊन रेशों में प्रतिस्कंदता तथा प्रत्यास्थता की विशेषता होने के कारण इनमें सिलवट अवरोधक विशेषता पाई जाती है। अधिक गर्म इस्तिरी करने की आवश्यकता नहीं होती है।

11. सिकुड़ना (Shirnkage) – ये वस्त्र गीली अवस्थामें सिकुड़ते हैं इसलिए धोने के पहले ड्राफ्ट बनाना आवश्यक होता है। सिकुड़न अवरोधकता उत्पन्न करने के लिए विशेष परिसज्जायें की जाती हैं।

12. सूर्य के प्रकाश तथा ताप का प्रभाव (Effect of Sunlight and Heat ) – सूर्य की तेज रोशनी रंग खराब कर देती है तथा अधिक देर तक सूर्य के तेज प्रकाश में रेशे कमजोर हो जाते हैं।

ऊनी कंपड़ों पर कभी सीधे गर्म इस्तरी नहीं की जाती है न करनी चाहिए। कपड़े पर सूती पतला, नम गीला कपड़ा रखकर इस्तिरी करनी चाहिए क्योंकि गर्म इस्तिरी से इनके रोयें जल जाते हैं जिससे रेशों को बाहरी सुरक्षात्मक पर्त नष्ट हो जाती है।

13. सफाई- ऊनी रेशों से धूल की गन्दगी सबसे अधिक होती है। ऊनी रेशों से बने वस्त्र साधारण गीली एवं शुष्क दोनों धुलाई से धोये जाते हैं। इस वस्त्र की विशेषता है कि धोने पर नमी तथा आर्द्रता के कारण यह सिकुड़कर जम जाता है तथा गीली अवस्था में इसकी मजबूती 25% कम हो जाती है। यही कारण है कि इन्हें कसकर निचोड़ते नहीं है, दबाकर पानी निकालते हैं। गीली अवस्थामें उसके मौलिक आकार की ड्राफ्टिंग पर फैलाकर सुखाना चाहिये। गीली अवस्था में खिंच जाता है, सूखी में नहीं।

रासायनिक विशेषताएँ (Chemical Properties)

1. अम्ल का प्रभाव (Effect of Acid)– गन्धक के तेजाब जैसे अम्ल के तीव्र घोल के प्रयोग में ऊनी रेशे क्षीण व नष्ट हो जायेंगे। जायेंगे। किन्तु साधारणतः धुलाई व रँगाई में प्रयुक्त साधारण घोल ऊन को कुछ हानि नहीं पहुँचाते, चाहे ऊन को उसी में सुखा भी दिया जाये। ऊनी रेशा अम्ल का कुछ भाग सोख लेता है। क्लोरीन तथा हाइपोक्लोराइटस (Clorine & Hypoclorite) ऊन के लिए हानिकारक है। इनके प्रभाव से ऊन छूने में कड़ी लगने लगती है। हाइड्रोजन-परॉक्साइड (Hydrogen Peroxide) सोडियम हाइड्रोसल्फाइड (Sodium hydrosulphide) तथा पोटैशियम परमैंगनेट ऊन के वस्त्रों को धोने के लिए उपयोगी है। ऊन वस्त्रों को ब्लीचिंग पाउडर से कभी नहीं धोना चाहिए।

2. क्षारों का प्रभाव (Effect of Alkali) —ऊन पर क्षार का हानिकारक प्रभाव होता है। क्षार के प्रभाव से रेशा पीला पड़ जाता है, कड़ा हो जाता है तथा उनके रोयें फैल व जकड़ जाते हैं। उच्च तापक्रम में तो इस प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव और शीघ्र होता है। उबलता हुआ पाँच प्रतिशत कास्टिक सोडे का घोल ऊन कुछ ही मिनटों में बिल्कुल घोल सकता है। कास्टिक सोडे के हल्के घोल से भी सदैव के लिए आघात पहुँच सकता है। यदि रेशे को सोडियम कार्बोनेट के तेज घोल में गरम किया जाये, तो इसका रेशों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। यदि पानी में इस प्रतिकर्मक (Reagent) का लेशमात्र भी अंश आवश्यकता से अधिक होगा तो वह रेशों का रंग उड़ा देगा तथा उसे कड़ा बना देगा, किन्तु बोरेक्स और अमोनिया से ऊन को कोई विशेष हानि नहीं पहुँचती।

3. स्वच्छ करने की सामग्रियों का प्रभाव ( Effect of Laundry Reagents ) तीव्र पदार्थ जैसे सोडियम हाइपोक्लोरेट आदि का प्रयोग धोने में नहीं करना चाहिए, परन्तु हाइड्रोजन परॉक्साइड को धोने तथा ब्लीचिंग (Leaching) के काम में लाया जा सकता है।

4. रंगों के प्रति सादृश्य ( Affinity to Dyeing ) – रंगों के प्रति ऊनी रेशों का अच्छा सादृश्य है। इन्हें क्रोम रंगों से रँगने से सभी स्थान पर एक समान और पक्का रंग चढ़ता है।

5. पसीने का प्रभाव (Effect of Sweat) ऊनी वस्त्रों को अगर पसीने युक्त बिना धोये ही संगृहीत करके रखा जाए तो इस पर बुरा असर पड़ता है। लगातार पसीने के सम्पर्क में आकर वस्त्र जम जाते हैं। रंग भी बदरंग हो जाता है। अगर पसीने की प्रकृति क्षारीय है तो ऊनी रेशे निर्बल हो जाते हैं। अम्लीय प्रकृति वाले पसीनों का कोई हानिकारक प्रभाव वस्त्रों पर नहीं पड़ता है।

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