मानव नेत्र की संरचना एवं उसके दोष
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मानव नेत्र ( Humen Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण
मानव नेत्र की संरचना एवं उसके दोष
मानव नेत्र ( Humen Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण
मानव नेत्र ( Humen Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण

मानव नेत्र में आज हम लोग मानव नेत्र की संरचना एवं उसके दोष के विषय में जानेंगे |

Table of Contents

मानव नेत्र के कार्य

हमारी शारीरिक रचना का एक ऐसा महत्त्वपूर्ण अंग है जो हैं इस सम्पूर्ण विश्व भर की सुन्दरता को देखने में सहायता प्रदान करता है जिसकी सहायता से हम सम्पूर्ण परकृतिक सौंदर्य का लुफ्त उठाते हैं क्या आप सोच सकते हैं की अगर हमारी ऑंखें ना होती तो हमारा जीवन कैसा होता ? नहीं क्यूंकि बिना नेत्र के हम एक अछे जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं | मानव नेत्र एक भुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है मानव शरीर का जिसका कार्य हमारे मस्तिष्क में किसी भी वस्तु के प्रतिबिम्ब का निर्माण करना है |

मानव नेत्र की संरचना (Structure of human eye)

मानव नेत्र ( Humen Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण
मानव नेत्र ( Humen Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण

 मानव नेत्र का सचित्र वर्णन

नेत्र का गोला बाहर से एक दृढ़ व अपारदर्शी श्वेत परत से ढका रहता है | जिसे दृढ़ पटल कहतें हैं | गोले के सामने का भाग पारदर्शी तथा उभरा हुआ होता है | इसे कार्निया कहतें हैं | नेत्र में प्रकाश इसी से होकर प्रवेश करता है | कार्निया के पीछे एक रंगीन अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है | जिसे आइरीस कहतें हैं | इस पर्दे के बीच में एक छोटा सा छिद्र होता है | जिसे पुतली या नेत्र तारा कहतें हैं | पुतली की एक विशेषता यह होती है कि यह अधिक प्रकाश में अपने-आप छोटी तथा अंधकार में अपने-आप बड़ी हों जाती हैं | अतः प्रकाश की सीमित मात्रा ही नेत्र में प्रवेश कर पाती हैं |

मानव नेत्र के द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना

किसी वास्तु से चली प्रकाश की किरणे कोर्निया पर गिरती हैं तथा अपवर्तित होकर नेत्र में प्रवेश करती हैं फिर ये क्रमशः जलीय द्रव , लेंस व कांच – द्रव से होते हुए रेटिना पर गिरती है जहाँ वास्तु का उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है |प्रतिबिम्ब बनने का सन्देश प्रकाश – शिरा द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचता है जिसे यह प्रतिबिम्ब अनुभव के अधर पर सीधा दिखाई देता है |

मानव नेत्र का दृष्टी क्षेत्र field of human eye view

मानव के एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टी क्षेत्र लगभग 150 डिग्री होता है | और हमरे दोनों नेत्रों का दृष्टी क्षेत्र 180 डिग्री होता है |

नेत्र लेंस की फोकस दूरी तथा समंजन क्षमता

जब नेत्र अनंत पर स्थित किसी वास्तु को देखता है तो नेत्र पर गिरने वाली समान्तर किरणे नेत्र लेंस द्वारा रेटिना R पर फोकस हों जाती है | {नीचे दिए गए चित्र (a) में } तथा नेत्र को वास्तु स्पष्ट दिखाई देती है |

नेत्र लेंस से रेटिना तक की दूरी नेत्र लेंस की फोकस दूरी कहलाती है | उस समय मांसपेशियां ढीली पड़ी रहती हैं तथा नेत्र लेंस की फोकस दूरी सबसे अधिक होती है |

नेत्र लेंस की फोकस दूरी तथा समंजन क्षमता
नेत्र लेंस की फोकस दूरी तथा समंजन क्षमता

महत्वपूर्ण

  • मानव नेत्र का लेंस 576 megapixel के बराबर होता है |

नेत्र दोष / दृष्टि दोष defects of visions

जब कभी हमारे आँखों में किसी भी प्रकार की समस्या आ जाती है जिससे हमें देखने में समस्या उत्पन्न होती है तो उन्हें दृष्टि दोष के नाम से जाना जाता है |

यदि हमें दूर या पास की चीजें साफ़ नही दिखाई देती तो उसके लिए हम चश्मों का प्रयोग करते है जिसमे लगा हुआ लेंस हमें देखने में सहायता प्रदान करता है एवं उन विकारों के लक्षणों को कम करने में सहायतार्थ होता है |

नेत्र दोष के प्रकार

नेत्र में दृष्टि संबंधी दो मुख्य दोष हो सकतें हैं | इनका निवारण चश्मा लगाकर किया जाता है | ये दोष दो प्रकार के होतें हैं-

  • निकट दृष्टि दोष ( Myopia or Short – Sightedness )
  • दूर दृष्टि दोष ( Hypermetropia or Long – sightedness )

निकट दृष्टि दोष Myopia

इस दोष में नेत्र निकट की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है | परन्तु अधिक दूरी पर रखी वस्तु स्पष्ट दिखायी नहीं देती हैं | अर्थात नेत्र का दूर बिंदु अनन्त पर न होकर कम दूरी पर आ जाता है | यह दोष 10-16 वर्ष की आयु में होता है |

mayopia desies in humen eye in hindi
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निकट दृष्टी दोष के कारण

इस दोष के दो कारण मुख्य हैं –

  • नेत्र लेंस की वक्रता बढ़ जाए जिससे उसकी फोकस दूरी कम हो जाये |
  • नेत्र लेंस और रटीना के बीच की दूरी बढ़ जाए अर्थात नेत्र के गोले का व्यास बढ़ जाए |

निकट दृष्टी दोष का निवारण

इस दोष को दूर करने के लिए एक ऐसे अवतल लेंस के चश्मे का प्रयोग किया जाता है जिसमे अनन्त पर रखी वस्तु से चलने वाली किरणें इस लेंस से निकलने पर नेत्र के दूर बिंदु f से चली हुई प्रतीत हो |

तब ये किरणें अपवर्तित हो कर रेटीना आदि पर मिलतीं हैं जहां वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब बन जाता है और वस्तु दिखाई देने लगती है |

दूर दृष्टि दोष Hypermetropia

इस दोष में नेत्र को दूर की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखायी देती हैं | परन्तु पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती अर्थात नेत्र का निकट बिंदु 25cm से अधिक दूर हो जाता है | अतः जिस मनुष्य के नेत्र में यह दोष होता है | उसे पढ़ते समय पुस्तक 25cm से अधिक दूर रखनी पड़ती है |

दूर दृष्टि दोष Hypermetropia
दूर दृष्टि दोष Hypermetropia

दोष का कारण

इस दोष के दो कारण हों सकतें हैं-

  • नेत्र लेंस की वक्रता कम हो जाये जिससे उसकी फोकस दूरी बढ़ जाए |
  • नेत्र लेंस तथा रेटीना के बीच की दूरी कम हो जाये अर्थात नेत्र के गोले का व्यास कम हो जाये |

निवारण

इस दोष को दूर करने के लिए एक ऐसे उत्तल लेंस के चश्में का उपयोग किया जाता है की दोषित नेत्र से 25cm की दूरी पर रखी वस्तु से चली किरणें इस लेंससे निकलने पर नेत्र के निकट बिंदु से आती हुयी प्रतीत होती है |

तब ये किरणें नेत्र में अपरिवर्तित होकर रेटीना पर मिल जाती है | जिससे वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगती है |

जरा दूरदृष्टिता Prispbyopia

आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती है | अधिकांश व्यक्तियों का निकट बिंदु दूर हट जाता है | ऐसे व्यक्तियों को पास की वस्तुओं को देखने में कठिनाई होती है | इस दोष को ज़रा दूरदृष्टिता कहतें हैं |

यह मांश्यपेशियों के दुर्बल होने तथा नेत्र लेंस के लचीलेपन में कमी आजाने के कारण उत्पन्न होता है | कभी-कभी व्यक्ति के नेत्रों में दोनों ही प्रकार के दोष उत्पन्न हो जातें हैं |

ऐसे व्यक्तियों को वस्तुओं को स्पष्ट देखने के लिए द्विफोकसी लेंसों का उपयोग करना होता है | द्विफोकसी लेंस में अवतल और उत्तल दोनों लेंस होतें हैं |

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चश्में का ऊपरी भाग अवतल लेंस होता है जो दूर की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायता करता है तथा नीचे का भाग उत्तल लेंस होता है जो पास की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायता करता है |

आबिन्दुक्ता  

नेत्र का वह दोष जिसमे एक ही दूरी पर रखी क्षैतिज या ऊर्ध्दवाधर वस्तुयें रेटीना पर एक साथ फोकसित नहीं होती आबिन्दुक्ता कहलाता है |

यह दोष तब उत्पन्न होता है, जब कार्निया की आकृति गोलीय नहीं होती, यदि आबिन्दुक्ता दोषयुक्त नेत्र किसी जाली अथवा क्षैतिज या ऊर्ध्दवाधर रेखाओं वाली एक कमीज को देखता है तो रेटीना पर क्षैतिज या ऊर्ध्दवाधर रेखाए सामान रूप से फोकसित नहीं होती है |

यदि वह ऊर्ध्वाधर रेखाओं पर फोकस करता है तो क्षैतिज रेखाएं विकृत प्रतीत होतीं हैं, और वह क्षैतिज रेखाओं पर फोकस करता है तो ऊर्ध्दवाधर रेखाएं विकृत प्रतीत होती हैं |

आनुवंशिक कूट या जेनेटिक कोड

यह दोष निकट तथा दूर दृष्टि दोष दोनों के साथ होता है | इस दोष को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का प्रयोग होता है |

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मानव नेत्र ( Human Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण

कैसी लगी आपको हमारी यह नई post ” मानव नेत्र ( Human Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण “अगर आपके पास कोई सुझाव या प्रश्न हों तो आप हमें कांटेक्ट कर सकते हैं – admin@quisansar.com

मौलिक अधिकार क्या है ? हमारे पास कौन कौन से मौलिक अधिकार हैं ?

मानव नेत्र प्रश्न उत्तर

नेत्र लेंस होता है ?

नेत्र लेंस अभिसारी होता है |

स्वस्थ्य नेत्र के लिए स्पष्ट दृष्टी की न्यूनतम दूरी होती है ?

25 cm

मनुष्य के स्वस्थ्य नेत्र में प्रतिबिम्ब बनता है ?

रेटिना पर |

निकट दृष्टी दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए उपयुक्त लेंस ?

अवतल लेंस

दूर दृष्टी दोष से पीड़ित व्यक्ति के चश्मे में प्रयोग किया जाने वाला लेंस ?

उत्तल लेंस

दूर दृष्टी दोष के कारण प्रतिबिम्ब बनता है ?

रेटिना के पीछे

दूर दृष्टी दोष से पीड़ित व्यक्ति का निकट बिंदु स्थित होगा |

25 cm से अधिक दूरी पर |

मानव नेत्र के कार्य

मानव नेत्र हमारी शारीरिक रचना का एक ऐसा महत्त्वपूर्ण अंग है जो हैं इस सम्पूर्ण विश्व भर की सुन्दरता को देखने में सहायता प्रदान करता है जिसकी सहायता से हम सम्पूर्ण परकृतिक सौंदर्य का लुफ्त उठाते हैं क्या आप सोच सकते हैं की अगर हमारी ऑंखें ना होती तो हमारा जीवन कैसा होता ? नहीं क्यूंकि बिना नेत्र के हम एक अछे जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं | मानव नेत्र एक भुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है मानव शरीर का जिसका कार्य हमारे मस्तिष्क में किसी भी वस्तु के प्रतिबिम्ब का निर्माण करना है |

मानव नेत्र का सचित्र वर्णन

मानव नेत्र ( Humen Eye ) का कार्य , संरचना , दोष एवं निवारण

नेत्र का गोला बाहर से एक दृढ़ व अपारदर्शी श्वेत परत से ढका रहता है | जिसे दृढ़ पटल कहतें हैं | गोले के सामने का भाग पारदर्शी तथा उभरा हुआ होता है | इसे कार्निया कहतें हैं | नेत्र में प्रकाश इसी से होकर प्रवेश करता है | कार्निया के पीछे एक रंगीन अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है | जिसे आइरीस कहतें हैं | इस पर्दे के बीच में एक छोटा सा छिद्र होता है | जिसे पुतली या नेत्र तारा कहतें हैं | पुतली की एक विशेषता यह होती है कि यह अधिक प्रकाश में अपने-आप छोटी तथा अंधकार में अपने-आप बड़ी हों जाती हैं | अतः प्रकाश की सीमित मात्रा ही नेत्र में प्रवेश कर पाती हैं |

humen eye in megapixel

576 mp

मानव नेत्र लेंस कितने mega pixel का होता है ?

576 mega pixel

नेत्र दोष के प्रकार

नेत्र में दृष्टि संबंधी दो मुख्य दोष हो सकतें हैं | इनका निवारण चश्मा लगाकर किया जाता है | ये दोष दो प्रकार के होतें हैं-
निकट दृष्टि दोष ( Myopia or Short – Sightedness )
दूर दृष्टि दोष ( Hypermetropia or Long – sightedness )

निकट दृष्टी दोष या निकट नेत्र दोष किसे कहते हैं ?

इस दोष में नेत्र निकट की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है | परन्तु अधिक दूरी पर रखी वस्तु स्पष्ट दिखायी नहीं देती हैं | अर्थात नेत्र का दूर बिंदु अनन्त पर न होकर कम दूरी पर आ जाता है | यह दोष 10-16 वर्ष की आयु में होता है |

धन्यवाद


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