बाबू गुलाब राय | हिन्दी निबंध | BABU GULAB ROY |
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नमस्कार दोस्तों हमारी आज के post का बाबू गुलाब राय | हिन्दी निबंध | BABU GULAB ROY |म्मीद करतें हैं की यह आपकों अवश्य पसंद आयेगी | धन्यवाद |

रूपरेखा

  • परिचय
  • जीवन वृत्त
  • साहित्य सेवा
  • रचनाएँ
  • विषय
  • भाषा
  • शैली

बाबू गुलाब राय का परिचय

निबन्धों के क्षेत्र में द्विवेदी युग से लेकर वर्तमान युग तक उतार-चढ़ाव का स्पष्ट चित्र यदि एक ही लेखक में आप देखना चाहें तो बाबू गुलाबराय के निबन्ध साहित्य को देखें।

इन्होंने भारतीय प्राचीन साहित्य-सिद्धान्तों के साथ-साथ पाश्चात्य साहित्य-सिद्धान्तों से भी छात्र समाज का परिचय कराया।

निःसन्देह हिन्दी छात्र जगत गुलाबराय जी का चिरऋणी रहेगा।

बाबू गुलाब राय की जीवन वृत्त

बाबू गुलाबराय का जन्म इटावा में सन् 1887 ई० में हुआ था। इनके पिता श्री भवानी प्रसाद मैनपुरी की जजी कचहरी में एक उच्च अधिकारी एवं धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।

इनकी माता कृष्ण भक्त थीं। माता-पिता की धार्मिक प्रवृत्ति का बालक गुलाबराय पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था।

अतः बाल्यकाल से ही इनकी प्रवृत्ति धार्मिकता की ओर थी और आगे चलकर दर्शन शास्त्र के अध्ययन के लिए प्रवृत्त हुए।

इन्होंने मैनपुरी के मिशन हाई स्कूल से सन् 1904 में हाई स्कूल की परीक्षा पास की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये ये आगरा चले आये और आगरा कालेज से बी० ए० तथा सेन्ट जॉन्स कालेज से दर्शन शास्त्र में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की।

इसके पश्चात् इन्होंने एल-एल० बी० पास किया, परन्तु वकालत की ओर इनकी रुचि न थी। छतरपुर के महाराज को दर्शनशास्त्र का अध्ययन कराने के लिये इनकी नियुक्ति हुई।

चार वर्ष बाद महाराजा ने इन्हें अपना प्राइवेट सेक्रेटरी बना लिया। छतरपुर निवास के17 वर्षों में इन्होंने सचिव, दीवान तथा प्रधान न्यायाधीश आदि प्रमुख पदों पर कार्य किया।

वहाँ से लौटने के पश्चात् इन्होंने साहित्य-सृजन को अपना व्यवसाय बनाया। ये बहुत समय तक सेन्ट जॉन्स कालेज आगरा के हिन्दी विभाग में अवैतनिक रूप से कार्य करते रहे।

आगरा से प्रकाशित ‘साहित्य-निर्देश’ नामक पत्र का भी इन्होंने विद्वत्तापूर्वक सम्पादन किया। सन् 1963 में इनकी मृत्यु हो गयी।

बाबू गुलाब राय का साहित्यिक परिचय

गुलाबराय जी निम्नलिखित तीन रूपों में हिन्दी जगत् के समक्ष आते हैं—

  • दार्शनिक,
  • निबन्धकार,
  • आलोचक।

इनमें से निबन्धकार और आलोचक इनके मुख्य रूप हैं। हिन्दी में इनकी ख्याति सर्वप्रथम यद्यपि आलोचक के रूप में ही हुई फिर भी इनका निबन्धकार का रूप सर्वोत्कृष्ट है।

इनके वैयक्तिक एवं आत्माभिव्यक्तिपूरक निबन्ध वर्तमान युग में महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।

बाबू गुलाब राय की रचनाएँ

बाबू गुलाबराय जी ने अनेक ग्रन्थों की रचना की है, कुछ ग्रन्थों का सम्पादन भी किया है। रचनायें निम्नलिखित हैं-

  • दार्शनिक ग्रन्थ –  ‘तर्क शास्त्र’, ‘कर्तव्य शास्त्र’ ।
  • साहित्य-ग्रन्थ-  ‘सिद्धान्त और अध्ययन’, ‘काव्य के रूप’ आदि।
  • इतिहास एवं आलोचनात्मक ग्रन्थ-  ‘हिन्दी नाट्य विमर्श’ ‘प्रसाद की कला’ ‘हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास’ आदि।
  • निबन्ध ग्रन्थ- ‘मेरी असफलतायें’, ‘मेरे निबन्ध’, “कुछ उथले कुछ गहरे’, ‘अध्ययन और आस्वाद’, ‘फिर’ निराश क्यों’ आदि ।

विषय

गुलाबराय जी की विषय सामग्री में विविधता के पर्याप्त दर्शन होते हैं। जहाँ इन्होंने एक ओर तर्कशास्त्र और दर्शन को अपना विषय बनाया वहाँ दूसरी ओर साहित्यशास्त्र पर भी पर्याप्त लिखा।

इतिहास और आलोचना भी इनके प्रिय विषय रहे। ‘सिद्धान्त और अध्ययन तथा ‘काव्य के रूप’ ये दोनों ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।

निबन्ध के क्षेत्र में वैयक्तिक एवं आत्माभिव्यक्ति पर निबन्ध लिखने में गुलाबराय जी का महत्वपूर्ण स्थान है।

इन्होंने इतिहास, राजनीति, मनोविज्ञान, धर्मदर्शन, समाज, पर्व-त्यौहार तथा सामयिक घटनाओं को भी अपने निबन्धों का विषय बताया है।

भाषा

गुलाबराय जी की भाषा परिष्कृत एवं परिमार्जित विशुद्ध हिन्दी है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों तथा पारिभाषिक शब्दावली की प्रधानता है।

पर इस गम्भीर भाषा का प्रयोग आलोचनात्मक समीक्षाओं में तथा विचारात्मक निबन्धों में ही किया गया है। भाषा का दूसरा रूप सरल है।

इसको बोधगम्य बनाने के लिये उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी के व्यावहारिक शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

मुहावरों और कहावतों के प्रयोग ने भाषा के सौन्दर्य को और भी अधिक बढ़ा दिया है। शब्द चयन सुन्दर तथा वाक्य विन्यास व्यवस्थित है। भाषा भावों और विचारों के साथ परिवर्तित होती रहती है ।

शैली

बाबू गुलाबराय की रचनाओं को तीन शैलियों में विभक्त किया जा सकता है—

विचारात्मक भावात्मक तथा वैयक्तिक शैली।

विचारात्मक शैली

इस शैली के निबन्धों तथा आलोचनाओं तथा अन्य साहित्य सिद्धान्त सम्बन्धी लेखों की भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त है।

वाक्यविन्यास, लोकोक्तियों का सुन्दर प्रयोग, उपयुक्त स्थलों पर व्यंग-विनोद का पुट इस शैली की विशेषतायें हैं, जिनमें गम्भीर विषय भी दुर्बोध नहीं होने पाते ।

भावात्मक शैली

यद्यपि भावात्मक शैली की रचनायें गुलाबराय जी की कम ही हैं फिर भी जो हैं उनमें अनुभूति की गहराई तथा संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं।

इस शैली में इनके वे निबन्ध आते हैं, जो स्वतन्त्र रूप से लिखे गये हैं जिनमें किसी साहित्य दर्शन अथवा कला की समीक्षा नहीं है।

इस शैली में काव्यमयता है, भाषा की निर्मलता, वाक्य-विन्यास की सरलता तथा अभिव्यक्ति की प्रभावोत्पादकता है।

तीव्र व्यंग्य-विनोद इस शैली के प्राण हैं।

वैयक्तिक शैली

इस शैली के निबन्धों से लेखक का अस्तित्व एवं व्यक्तित्व, उसका सामाजिक सम्पर्क और जीवन और जगत् के प्रति उसकी अनुभूतियाँ पाठक के निकट आ जाती हैं।

इस शैली के निबन्धों की भाषा सरल, सुबोध, व्यावहारिक एवं रमणीय है। हास-परिहास एवं व्यंग्य-विनोद की भाषा भी पर्याप्त है।

इस शैली में रोचकता एवं रमणीयता के साथ विचारोत्तेजकता भी सर्वत्र विद्यमान है। निस्सन्देह गुलाबराय जी की यह शैली बड़ी सशक्त एवं आकर्षक है।

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यह भी जाने

बाबू गुलाब राय का परिचय दीजिये |

निबन्धों के क्षेत्र में द्विवेदी युग से लेकर वर्तमान युग तक उतार-चढ़ाव का स्पष्ट चित्र यदि एक ही लेखक में आप देखना चाहें तो बाबू गुलाबराय के निबन्ध साहित्य को देखें।
इन्होंने भारतीय प्राचीन साहित्य-सिद्धान्तों के साथ-साथ पाश्चात्य साहित्य-सिद्धान्तों से भी छात्र समाज का परिचय कराया।
निःसन्देह हिन्दी छात्र जगत गुलाबराय जी का चिरऋणी रहेगा।

बाबू गुलाब राय का साहित्यिक परिचय |

गुलाबराय जी निम्नलिखित तीन रूपों में हिन्दी जगत् के समक्ष आते हैं—
दार्शनिक,
निबन्धकार,
आलोचक।
इनमें से निबन्धकार और आलोचक इनके मुख्य रूप हैं। हिन्दी में इनकी ख्याति सर्वप्रथम यद्यपि आलोचक के रूप में ही हुई फिर भी इनका निबन्धकार का रूप सर्वोत्कृष्ट है।
इनके वैयक्तिक एवं आत्माभिव्यक्तिपूरक निबन्ध वर्तमान युग में महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।

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