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जेरोम ब्रूनर का संरचनात्मक अधिगम सिद्धांत | Structural learning theory in Hindi | JERO BRUNAR KA SANRACHNATMAK ADHIGAM SIDDHANT |
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नमस्कार दोस्तों हमारी आज के post का जेरोमब्रूनर का संरचनात्मक अधिगम सिद्धांत | Structural learning theory in hindi | JERO BRUNAR KA SANRACHNATMAK ADHIGAM SIDDHANT | उम्मीद करतें हैं की यह आपकों अवश्य पसंद आयेगी | धन्यवाद |
Table of Contents
ब्रूनर के सिद्धांत के अन्यनाम
- संरचनात्मक अधिगम सिद्धांत |
- निर्मित्तवाद |
जेरोमब्रूनर का संरचनात्मक अधिगम सिद्धांत
इस सिद्धांत के प्रवर्तक ब्रुनर को कहा जाता है | संरचनात्मकता शब्द की उत्पत्ति मनोविज्ञान के संज्ञानात्मक क्षेत्र से हुयी है। इसलिए जोरोमब्रुनर का सिद्धान्त आधुनिक संज्ञानात्मक क्षेत्र की श्रेणी में आता है |
“ यदि बालक को कंप्यूटर का ज्ञान करवाना है तो बालक को कंप्यूटर के समस्त उपकरणों के निर्माण प्रक्रिया को बताते हुए अधिगम करवाना चाहिए। संरचनात्मक शब्द का तात्पर्य अधिगमकर्ता के द्वारा स्वयं के लिए ज्ञान की संरचना करना है। “
संरचनात्मक अधिगम का शैक्षिक महत्व
- स्व केन्द्रित क्रिया |
- स्वयं ज्ञान का सृजन |
- नवीन ज्ञान सृजन पूर्व ज्ञान के आधार पर |
- पूर्व ज्ञान के अनुभव पर बल |
- सक्रियता व तत्परता पर बल |
- अर्थपूर्ण अधिगम व अन्वेषणात्मक अधिगम पर बल |
- ज्ञान की जाँच पर पर्याप्तता की जाँच |
- बालकों में जिम्मेदारी व उत्तरदायित्व की भावना जाग्रत करता है।
- आपसी सहयोग व साझेदारी की भावना |
- शिक्षक की भूमिका – निर्देशक / पथ प्रदर्शक / सरलीकृत अथवा सुविधाप्रदान |
- शिक्षक बालको के संवाद कर सकता है।
- पाठ्यपुस्तक की सहायता नहीं ली जाती |
- चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न करना |
- तरीका – आगमनात्मक विधी |
- समूह बनाना – विषय सम्बन्धी समस्या देना |
- समाचार पर चर्चा |
- पूर्व ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान की अन्तः क्रिया |
- समस्या समाधान व निष्कर्ष |
निर्मित्तवाद के मुख्य प्रकार
इसके मुख्य तीन प्रकार हैं |
- संज्ञानात्मक निर्मित्तवाद |
- सामाजिक निर्मित्तवाद |
- त्रिज्यीय निर्मित्तवाद |
संज्ञानात्मक निर्मित्तवाद
जीन पियाजे के अनुसार –
“ बालक व वातावरण के बीच अन्तः क्रिया ज्ञान का निर्माण करती है | ”
सामाजिक निर्मित्तवाद
वाइगोत्सकी के अनुसार –
“ सामाजिक व सांस्कृतिक कारक, भाषा के द्वारा ज्ञान का निर्माण | ”
त्रिज्यीय निर्मित्तवाद
जेरोम ब्रूनर के अनुसार –
“ ज्ञान व्यक्तिगत रूप से निर्मित होता है जो की बालक को विशिष्ट परिस्थितियों में दिया जाता है | ”
Note – ज्ञान व्यक्तिगत व सामूहिक दोनों ही रूपों में दिया जाता है |
ब्रूनर के अनुसार संरचनात्मक अधिगम की अवस्थाएं
ब्रूनर के अनुसार संरचनात्मक अधिगम की अवस्थाएं निम्नलिखित हैं |
- क्रियात्मक अवस्था |
- प्रतिबिम्बात्मक अवस्था |
- सांकेतिक अवस्था |
क्रियात्मक अवस्था
इसे विधिनिर्माण आधारित अधिगम की अवस्था भी कहतें हैं यह अवस्था जन्म से लेकर 2 वर्षों के बालकों की होती है |इसे अन्य समाज शाश्त्रियों के अनुसार शैशवावस्था भी कहते हैं ?
प्रतिबिम्बात्मक अवस्था
इसे प्रतिमान आधारित अधिगम की अवस्था भी कहतें हैं यह अवस्था 3 वर्ष से लेकर 12 वर्ष के बालको की होती है | इसे balyavastha भी कहते है इसमें ये पूर्व balyavastha ०३-०६ वर्ष एवं उत्तर बाल्यावस्था ०६-12 वर्ष की मानी जाती है |
सांकेतिक अवस्था
इसे चिन्ह आधारित अधिगम की अवस्था भी कहतें हैं यह अवस्था 12 वर्ष के बाद शुरू होती है |यह किशोरा अवस्था से शुरू होती है
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संरचनात्मक अधिगम का शैक्षिक महत्व क्या है ?
चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न करना |
तरीका – आगनात्मक विधी |
समूह बनाना – विषय सम्बन्धी समस्या देना |
समाचार पर चर्चा |
पूर्व ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान की अन्तः क्रिया |
समस्या समाधान व निष्कर्ष |
जेरोमब्रूनर का संरचनात्मक अधिगम सिद्धांत क्या है ?
“यदि बालक को कंप्यूटर का ज्ञान करवाना है तो बालक को कंप्यूटर के समस्त उपकरणों के निर्माण प्रक्रिया को बताते हुए अधिगम करवाना चाहिए। संरचनात्मक शब्द का तात्पर्य अधिगमकर्ता के द्वारा स्वयं के लिए ज्ञान की संरचना करना है।“