चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति तथा भविष्य की सम्भावनाएँ
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चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति तथा भविष्य की सम्भावनाओं की विवेचना कीजिए।

चीनी उद्योग

भारत का चीनी उद्योग अत्यन्त प्राचीन उद्योग है, जिसे उपभोक्ता जगत का प्रमुख उद्योग कहते हैं। इस प्रकार भारत के चीनी उद्योग को बड़े पैमाने के संगठित उद्योग के रूप में गौरव प्राप्त है, क्योंकि भारतीय चीनी उद्योग का उत्पादन की दृष्टि से विश्व में द्वितीय स्थान है। चीनी उद्योग में लगभग 3 लाख गन्ना कृषक गन्ना उत्पादित करके अपनी आजीविका चलाते हैं, अतः गन्ना उत्पादन के क्षेत्र में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। इस समय देश के चीनी उद्योग में लगभग 900 करोड़ रु. की पूँजी विनियोजित है, जिससे उत्पादित शक्कर न केवल उपभोक्ताओं तक पहुँचती है, अपितु आवश्यकता पड़ने पर निर्यात भी की जाती है। इसलिए भारतीय चीनी उद्योग को अन्य उद्योगों की तुलना में प्रमुखता प्राप्त है।

चीनी उद्योग का ऐतिहासिक विवेचन

भारत का चीनी उद्योग अति प्राचीन है, जिसे सभ्यता का प्रतीक कह सकते हैं, लेकिन प्राचीन काल में चीनी उद्योग आज के बड़े पैमाने के उद्योगों के रूप में प्रचलित नहीं था, इस उद्योग को लघु उद्योग के रूप में चलाया जाता था। भारत में चीनी उद्योग का प्रारम्भ बिहार के डच जाति के लोगों ने किया है। लेकिन भारत के प्रसिद्ध प्राचीन अर्थशास्त्री श्री कौटिल्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में गन्ने के रस से गुड़ व चीनी तथा शीरे से शराब बनाने का वर्णन किया है।

इससे चीनी उद्योग की प्राचीनता का आभास मिलता है। अतः चीनी उद्योग 15वीं शताब्दी में ही प्रचलित था, जिसे 19वीं शताब्दी में विशेष ख्याति प्राप्त हुई। क्योंकि मानव जीवन में शक्कर, गुड़, खांडसारी आदि का उपयोग एक अभिन्न अंग बन चुका है। यदि मानव जीवन से शक्कर का उपयोग हटा लिया जाये तो मानव जीवन की नीरस हो जायेगा, इसलिए मीठे स्वाद की जननी चीनी (शक्कर) ही है।

भारतीय चीनी उद्योग का स्वतन्त्रता से पूर्व एवं स्वतन्त्रता के बाद दो भागों में विभाजित करके अध्ययन किया जा सकता है-

( 1 ) स्वतन्त्रता से पूर्व प्रथम विश्व युद्ध एवं द्वितीय विश्व युद्ध में चीनी उद्योग- भारत में आधुनिक तकनीक पर आधारित चीनी उद्योग 1900 में सर्वप्रथम बिहार में स्थापित किया गया। तत्पश्चात् 1904 में उत्तर प्रदेश में कुल 6 चीनी उद्योग 1913 तक स्थापित हुए। लेकिन चीनी उद्योग को उस समय खुली विदेशी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा, अतः 1911 में चीनी उद्योग को संरक्षण (Protection) प्रदान किया गया जिससे नये चीनी उद्योग स्थापित होने लगे। इस प्रकार 1932 ई. तक देश में 31 चीनी उद्योग संचालित हो गये। प्रथम विश्व युद्ध का चीनी उद्योग पर अनुकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि युद्ध के कारण विदेशों से चीनी का आगमन बन्द हो गया और उपभोक्ताओं द्वारा माँग बढ़ने पर चीनी उद्योग प्रोत्साहित हुए। इसी प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध भी चीनी उद्योगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ, उद्योगों की संख्या बढ़कर 182 हो गयी।

( 2 ) स्वतन्त्रता के पश्चात् चीनी उद्योग- स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत का चीनी उद्योग पंचवर्षीय योजनाओं में विशेष रूप से पोषित हुआ है क्योंकि 1947 तक देश में कुल 132 चीनी मिलें थीं, लेकिन भारत विभाजन पर 67 प्रतिशत चीनी मिलें भारत के हिस्से में रहने के कारण इस उद्योग पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। योजना काल के प्रारम्भिक वर्ष 1951 तक देश में 138 चीनी मिलों से 11.3 लाख टन चीनी का उत्पादन होता था, जो 1986-87 तक बढ़कर मिलों की संख्या 376 व उत्पादन 85 लाख टन हो गया, जो वर्तमान समय तक बढ़कर 274.30 लाख टन हो चुका है। इन आंकड़ों से सिद्ध होता है कि भारत चीनी उद्योग निरन्तर उत्पादकता में वृद्धि कर रहा है क्योंकि यह उद्योग जनजीवन से जुड़ा हुआ है। इस उद्योग में उत्पादकता वृद्धि का करण उपभोक्ताओं की बढ़ती हुई माँग, विदेशी निर्यात का प्रमुख अंग आदि है। अतः इस उद्योग को निरन्तर पोषित होने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

यदि चीनी उद्योगों की वर्तमान समय की स्थिति का मूल्यांकन करें तो सरकार इस उद्योग को विशेष छूटें प्रदान कर रही है जिससे 1986-87 में रिकार्ड उत्पादन हुआ, इसी प्रकार 1990-91 में गन्ने के उत्पादकों को उचित मूल्य प्रदान किया गया। इस समय तक चीनी मिलों में लगभग 1350 करोड़ रु. की पूँजी विनियोजित है जिनमें लगभग 3.5 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त हैं।

वर्तमान में चीनी उत्पादन की स्थिति (मिलियन टन)

वर्ष उत्पादन
2000-01 18.52
2007-08 26.33
2009-10 18.8
2010-11 24.35
2011-12 27.43
2013-14 26.6
2014-15 30.4
2015-16 27.5

Foreign Agriculture Service Report: 2016 के अनुसार वर्ष 2015-16. में भारत चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पाददक देश है जिसका विश्व में चीनी उत्पादन में 16.60 प्रतिशत हिस्सा है। देश में चीनी का उत्पादन वर्ष 2013-14 एवं 2014-15 में क्रमश: 26.6 एवं 30.4 मिलियन टन था, जबकि वर्ष 2015-16 में यह घटकर 27.5 मिलियन टन हो गया था। वर्ष 2015-16 में विश्व में चीनी की सर्वाधिक खपत वाले देशों में भारत का प्रथम तथा चीन, ब्राजील एवं USA का क्रमशः द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ स्थान है। चीनी उद्योग भारत में सबसे पहले बेतिया (बिहार) में 1840 में लगाया गया था। परन्तु इसका वास्तविक विकास 1931 से प्रारंभ हुआ था जिस समय सरकार द्वारा पहली बार इस उद्योग को संरक्षण दिया गया। 2013 में भारत में 691 चीनी मिले थीं, जिसमें सर्वाधिक सहकारी क्षेत्र (324) थीं।

चीनी उत्पादक शीर्ष चार राज्य (2014-15)

राज्य उत्पादन (% में)
महाराष्ट्र 105.1
उत्तर प्रदेश 72.0
कर्नाटक 49.8
तमिलनाडु 11.3

गन्ना उत्पादक शीर्ष तीन राज्य

राज्य उत्पादन ( % में) 2014-15
उत्तर प्रदेश 36.7
महाराष्ट्र 23.3
कर्नाटक 12.0

महाराष्ट्र में चीनी की अधिकतम रिकवरी (11.0 प्रतिशत) पायी जाती है। भारत में चीनी की औसत रिकवरी 10 प्रतिशत है, जबकि आस्ट्रेलिया में यह 14 प्रतिशत है। देश के भीतर भी रिकवरी 8.5 (बिहार) से, 11.16 (महाराष्ट्र) तक रहती है।

देश में में चीनी के सर्वाधिक कारखाने (234) पाये जाते हैं, तदोपरान्त उ.प्र. (158) में। गन्ने का सर्वाधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन तमिलनाडु में पाया जाता है। गन्ना उत्पादन के लिए आदर्श जलवायु उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में पायी जाती है। संसार में सर्वाधिक चीनी उत्पादक देश ब्राजील (2016) है। भारत में वस्त्रोद्योग के पश्चात् चीनी उद्योग दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है। भारत में 45 मिलियन गन्ना उत्पादक और भारी संख्या में ग्रामीण मजदूर अपनी आजीविका के लिये गन्ने और चीनी उद्योग पर निर्भर करते हैं।

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