क्या भारत में जनाधिक्य है?
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क्या भारत में जनाधिक्य है? पवन तथा विपक्ष में तर्क दीजिए। अथवा उत्तर क्या भारत में जनसंख्या विस्फोट होगा? विवेचना कीजिए। क्या भारतवर्ष में जनाधिक्य है?

क्या भारत में जनाधिक्य है?

जनाधिक्य (Over Population) एक व्यापक शब्द है। साधारण भाषा में जनाधिक्य से तात्पर्य किसी राष्ट्र में इतनी जनसंख्या वृद्धि हो कि देश में अनगिनत आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न में होने लगें, तो उसे जनाधिक्य कहते हैं। भारत में इस विशिष्ट पहलू के दो प्रकार हैं-

( 1 ) आशावादी विचार (Optimistic Views) – आशावादी विचारकों को अनुकूलतम या इष्टतम जनसंख्यावादी कहते हैं, जो जनसंख्या वृद्धि को केवल जनाधिक्य की संज्ञा नहीं देते हैं, वरन् देश की आर्थिक प्रगति व सूचकांक के अनुसार जनसंख्या का निर्धारण करते हैं। इस प्रकार आशावादी अर्थशास्त्री जनसंख्या वृद्धि को देश के प्राकृतिक साधनों का उचित विदोहन न हो पाने तक न्यून जनसंख्या (Under Population) मानते हैं। लेकिन समग्र प्राकृति संसाधनों का विदोहन हो जाने के बाद आर्थिक विकास सर्वोच्च बिन्दू पर पहुँच जाता है। इस दशा में कार्यशील जनसंख्या को अनुकूलतम जनसंख्या (Optimum Population) कहते हैं। परन्तु जब देश में आर्थिक विकास की गुंजाइश न रहे, प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण विदोहन हो चुका हो, तो इस दशा को जनाधिक्य (Over-Population) कहते हैं।

इस दृष्टिकोण से भारतवर्ष में न्यून जनसंख्या (Under-Population) है, क्योंकि देश के प्राकृतिक संसाधनों का आंशिक विदोहन ही हो सका है।

प्रो. सैलिंगमैन (Saligman) ने कहा- “जनसंख्या की समस्या केवल आकार की समस्या नहीं है, वरन् कुशल उत्पादन व न्याय युक्त वितरण की समस्या है।” इसलिए आशावादी विचारकों की दृष्टि से भारत में जनाधिक्य नहीं है।

(2) निराशावादी विचार (Pessimistic Views) – प्रो. माल्थस (Malthus) का कथन है कि “जनाधिक्य वृद्धि ज्यॉमितीय व खाद्यान्न उत्पादन अंकगणितीय होने से कुछ समय बाद जनसंख्या व खाद्य-सामग्री के मध्य असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, फलतः असंतुलन से निपटने के लिए जनसंख्या पर नियन्त्रण लगते हैं। इस प्रकार प्राकृतिक नियंत्रण जनाधिक्य के प्रतीक है।”

भारतवर्ष में खाद्यान्न का अभाव, खाद्य पदार्थों के बढ़ते मूल्य खाद्यान्न आयात आदि तथ्यों से विदित है कि देश में जनसंख्या व खाद्यान्न के मध्य असन्तुलन है। दूसरी ओर भारतीय जनसंख्या 1941 से 1991 तक 50 वर्ष में 60 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। प्रसिद्ध विद्वान प्रो. स्टेम्स ने कहा है- ‘धरती का आकार व प्रकार तो छोटा नहीं हो रहा है, लेकिन जिस गति से विश्व की आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से वह छोटी होती जा रही है।’ डा. चन्द्रशेखर ने भी “भारतवर्ष में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति स्वीकार की है।” प्रसिद्ध विचारक चुनियन हक्सले का विचार है कि “यदि भारत अपनी जनसंख्या की समस्या को हल न कर सका, तो यह बड़ी राजनैतिक व सामाजिक दुर्घटना होगी।”

इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारतवर्ष में पूर्णतः जनाधिक्य हो चुका है। देश में जनाधिक्य नहीं है|

“भारत में जनाधिक्य नहीं है।” इस पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं-

( 1 ) प्राकृतिक साधनों का अपूर्ण विदोहन (Imperfect Exploitation of Natural Resources) – देश के प्राकृतिक साधनों को पूर्ण विदोहन नहीं हुआ है, भारत में अब तक 30 प्रतिशत भूमि पर खेती, 25 प्रतिशत वनों का उपयोग व 10 प्रतिशत जल सम्पदा का प्रयोग हो। सका है। इस प्रकार हमें विशाल प्राकृतिक भण्डार के उपयोग की आवश्यकता है। अतः भारत में जनाचिदव या जनसंख्या विस्फोट की संज्ञा देना विक्षिप्त मानसिकता का प्रतीक है।

(2) प्रति व्यक्ति आय व उत्पादन में वृद्धि (Growth in Per Capita Income and Production)- आशावादी लोगों का मत है कि, भारतवर्ष में प्रति व्यक्ति आय निरन्तर बढ़ी है। प्रचलित मूल्यों के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति आय औसतन 1951 ई. में 264 रु. जो 2013-14 तक बढ़कर 74,380 रु. हो चुकी है जबकि खाद्यान्न उत्पादन 1960-61 में 82 मिलियन टन था, जो 2013-14 तक बढ़कर 264.4 मिलियन टन तक पहुँच चुका है। (Source Ministry of Agriculture, Economic Servey 2013-14), इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय व राष्ट्रीय आय उत्पादन में प्रगति देखकर भारत में जनाधिक्य की बात अन्यायपूर्ण है।

(3) भारतीय जन्म र में कमी (Diminishing Indian Birth Rate)- भारत वर्ष में जन्म दर अत्यन्त तीव्र नहीं है, क्योंकि विगत 300 वर्षों में विश्व की जनसंख्या 5 गुनी बढ़ी है जबकि भारत की जनसंख्या केवल तीन गुनी बढ़ी है। इसके अलावा देश में जन्म दर निरन्तर कम होती जा रही है जैसे-1901 में भारत की जन्म दर 49.2 प्रतिशत थी, जो 2012 में घटकर 21.6 प्रतिशत रह गई है। इससे सिद्ध होता है कि देश में जन्म दर तीव्र वृद्धि के स्थान पर कमी हो रही है।

( 4 ) भारत का जनसंख्या घनत्व अपेक्षाकृत कम है (Density of Indian Population is Comparatively Less)- भारत में जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत कम है। यदि भारतीय जनसंख्या के घनत्व की तुलना अन्य देशों से करें, तो विदित होता है कि भारत में अति जनसंख्या की बात केवल भ्रम है, क्योंकि भारत में 2001 की जनगणना के अनुसार 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. सिंगापुर में 3761 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. निवास करते हैं। इसलिए भारत में जनाधिक्य नहीं है।

(5) माल्थसवादी विचार निराधार (Baseless Malthusian Views ) – इष्टतम जनसंख्या का सिद्धान्त माल्थसवादी विचारधारा पर एक सुधार है, क्योंकि किसी देश की जनसंख्या में अधिकता का प्रश्न तब तक नहीं उठता है, जब तक विकास की गुंजाइश हैं। व्यक्ति केवल मुँह लेकर पैदा नहीं होता है, बल्कि उसके दो हाथ भी होते हैं, जिनसे वह कार्य करके पेट भर सकता है। अतः भारत में जनाधिक्य नहीं है।

देश में जनाधिक्य है

प्रो. माल्वस के विचारों के अनुसार भारत में जनाधिक्य से सम्बन्धित निम्नलिखित प्रस्तुत हैं

( 1 ) जनसंख्या वृद्धि की तुलना में खाद्य सामग्री का कम उत्पादन (Low Production of Food in Comparision with Population Growth)- भारतवर्ष में जनसंख्या वृद्धि का अनुपात अत्यन्त ऊँचा होने के कारण खाद्य सामग्री व जनसंख्या के मध्य असंतुलन उत्पन्न हो गया है। देश में खाद्य समस्या, खाद्य पदार्थों के बढ़ते मूल्य, खाद्यान्न आयात आदि ऐसे ज्वलन्त प्रश्न हैं, जो भारत में जनाधिक्य के लक्षण है। भारतवर्ष में खाद्य सामग्री के सम्बन्ध में एस. के. पाटिल ने कहा है-“प्रतिदिन प्रति व्यक्ति को 2300 कैलोरी के हिसाब से यदि भारत का वर्तमान खाद्यान्न कुल जनसंख्या में वितरित किया जाय, तो 1 अरब 2 करोड़ में से 11 करोड़ 98 लाख व्यक्ति बिल्कुल भूखे रह जायेंगे।” इस दृष्टि से भारत वर्ष में जनाधिक्य सिद्ध होता है।

( 2 ) प्राकृतिक नियंत्रण (Natural Checks) – माल्थस के मतानुसार “जब किसी देश में जनसंख्या व खाद्य सामग्री के मध्य असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, तो असंतुलन से निपटने के लिए, जनसंख्या पर प्राकृतिक नियंत्रण लगते हैं, जिससे जनसंख्या पुनः उसी बिन्दु पर आ जाती है। इस दृष्टि से भारत वर्ष में प्राकृतिक अवरोधों की मैं कमी नहीं है, क्योंकि देश में युद्ध, बाढ़, मुखा, अतिवृष्टि, आतंकवादी घटनायें एवं दुर्घटनाएं व महामारी आदि समय-समय पर घटित होकर जनसंख्या को नियंत्रित करते हैं।

( 3 ) भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता दबाव ( Increasing Pressure of Population)- भारत में जनसंख्या तीव्र गति से वृद्धि हो रही है, इस तथ्य की पुष्टि देश की भूमि पर जनसंख्या के निरन्तर बढ़ते विश्व की 15 प्रतिशत निवास करती जनसंख्या कृषि पर आश्रित है। भारत की अधिकतर जनसंख्या कृषि पर आश्रित है।

( 4 ) बेरोजगारी में वृद्धि (Growth in Unemployment) – विश्व में भारतवर्ष ही एक ऐसा देश है, जहाँ सर्वाधिक बेरोजगार युवक हैं। भारत में आर्थिक नियोजन में रोजगार के अतिरिक्त अवसर उत्पन्न हुए, किन्तु बेरोजगारी संख्या रोजगार अवसरों की अपेक्षा कई गुनी अधिक है। इस प्रकार देश में शिक्षित व अशिक्षित अनुमानतः 10 करोड़ युवक बेरोजगार हैं। भारत में प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ से अधिक बच्चे जो आज जन्म ले रहे हैं, 20 वर्ष बाद जब काम के योग्य होकर रोजगार माँगेंगे, उस समय भारत की आर्थिक दशा क्या होगी ?

( 5 ) ऊँची जन्म व मृत्यु दर (High Birth and Mortality Rate) – भारतवर्ष में जन्म-दर व मूल्य दर अन्य देशों की तुलना में ऊंचे होने के कारण जनाधिक्य है, लेकिन जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर में भारी कमी सम्भव हुई है। 2012 में जन्म दर 21.6 प्रतिशत प्रति हजार और मृत्यु पर वटकर 7.0 प्रात हजार हो जाने के कारण जनसंख्या में वृद्धि हो रहा है, क्योंकि देश में प्रति हजार मृत्यु-दर की तुलना में जन्म दर 3 गुनी ऊँची है। क्या भारत में जनसंख्या विस्फोट होगा?

देश की जनसंख्या, जीवन स्तर की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से बढ़ रही है। यदि देश की जनसंख्या वृद्धि दर एक प्रतिशत वार्षिक है, तो राष्ट्रीय उत्पादन या प्रति व्यक्ति आय न्यूनतम 4 प्रतिशत तक बढ़नी चाहिए ताकि जनसंख्या एक उचित जीवन-स्तर बनाये रख सके। किन्तु भारत में इसके विपरीत स्थिति के कारण ‘जनसंख्या-विस्फोट’ की स्थिति बनी रही है, अतः निकट भविष्य में जनसंख्या विस्फोट तो नहीं होगा, लेकिन इसी गति से जनसंख्या वृद्धि हुई, तो अगले 50 वर्ष बाद भारत गंभीर आर्थिक समस्याओं के जाल में फंस जायेगा।

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